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वैदिक साहित्य]
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[वैदिक साहित्य
सौर की किरणों की तरह, उषा की प्रभा एवं विद्युत की छटा की भांति कहा गया है। उनके भोजन हैं-काष्ठ और घृत तथा आज्य पीनेवाले पदार्थ। उन्हें कभी तो द्यावापृथिवी का पुत्र कहा गया है और कभी वे द्यौः के सूनु कहे गए हैं। उनका निवासस्थान स्वर्ग है जहां से मातरिश्वा ने मानव-कल्याण के लिए उन्हें भूवल पर उतारा है।
सोम–सोम की स्तुति १२० सुक्तों में गयी है। उसका निवासस्थान स्वर्ग माना गया है पर कहीं उसे पर्वत से उत्पन्न होने वाला माना गया है। इसका पान कर इन्द्र मदमत्त होकर वृत्रासुर से युद्ध करते हैं। इसे स्वर्ग का पुत्र, स्वर्ग का दूध तथा स्वर्ग का निवासी कहा गया है । यह अमृत-प्रदायी है। इसे वनस्पति भी कहते हैं । __आधारग्रन्थ-१. वैदिक दर्शन-(२ भागों में )ए० बी० कीथ (हिन्दी अनुवाद)। २. वैदिक मैथोलॉजी (हिन्दी अनुवाद) मैकडोनल एवं कोष-अनु० श्री रामकुमार राय । ३. वैदिक देवताशास्त्र-वैदिक मैथोलॉजी का हिन्दी अनुवाद, अनु० डॉ० सूर्यकान्तशास्त्री। ४. वैदिक साहित्य और संस्कृति-पं. बलदेव उपाध्याय । ५. संस्कृत साहित्य का इतिहास-मैक्डोनल (हिन्दी अनुवाद भाग १) ६. ऋग्वेदिक माय-महापण्डित राहुल सांकृत्ययायन ।
वैदिक साहित्य-वेद और वैदिक साहित्य दो भिन्न अर्थों के द्योतक हैं। वेद से केवल चार मन्त्र संहिताओं का ज्ञान होता है-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद, तो वैदिक साहित्य वेद-विषयक समस्त वाङ्मय का द्योतक है जिसके अन्तर्गत संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद एवं वेदांग आते हैं। वेद के चार विभाग हैसंहिता, ब्राह्मण, मारण्यक और उपनिषद् । संहिता भाग में मन्त्रों का संग्रह है, जिसमें स्तुतियां हैं। इनमें विभिन्न ऋषि मुनियों के अनुभवसिद आध्यात्मिक विचार संगृहीत हैं। संहिताभाग के चार खण्ड है-ऋक्, साम, यजुः और अथवं । आगे चलकर कर्मकाण्ड, उपासनाकाण्ड एवं मानकाण के आधार पर ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् अन्यों का निर्माण हुआ। ब्राह्मणग्रन्थों में मन्त्रों के विधिभाग की व्याख्या की गयी है या याज्ञिक अनुष्ठानों एवं विधि-विधानों का वर्णन किया गया है। आरण्यक ग्रन्थ उन व्यक्तियों के लिए उपयोगी हैं जो वीतराग होकर अरण्य का सेवन करते हुए शान्त वातावरण में भगवद् उपासना में लीन रहते हैं। इनमें ब्राह्मण अन्यों में वर्णित वैदिक को या याशिक कार्यों के आध्यात्मिक पक्ष का उद्घाटन किया गया है। उपनिषद् वेदों के अन्तिम भाग हैं और वे जानकारी से सम्बन हैं । इनमें वैदिक मन्त्रों की दार्शनिक व्याख्या है।
ऋग्वेद-यह वैदिक साहित्यका सुमेरु है। अन्य तीन वेद किसी-न-किसी रूप से ऋग्वेद से प्रभावित हैं। प्रारम्भ में इसकी पांच शाखाएं थीं-शाकल, बाष्कल, आश्वलायन, शांखायन और माण्डक्य पर इस समय केवल शाकल शाखा ही उपलब्ध है। इसके दो क्रम है-अष्टक एवं मण्डल । प्रथम क्रम के अनुसार सम्पूर्ण प्रन्य आठ अष्टकों में विभक्त है और प्रत्येक अष्टक में माठ अध्याय हैं तथा प्रत्येक अध्याय वर्गा में विभाजित है। अध्यायों की संख्या ६४ एवं वर्गों की संख्या २०६ है। मंडलक्रम