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नाटककार कालिदास]
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[नाटककार कालिदास
वाक्य अपनी जगह पर बिंधा रखा है और कथा को आगे बढ़ाने में अनिवार्य कड़ी का काम कर रहा है। शब्दों के चुनाव में एक ऐसे पारखी का हाथ दीख पड़ता है, जिसकी दृष्टि में शब्द और अर्थ घुल-मिल कर एक हो चुके हैं और जिसकी चुटकी में अर्थ-रहित शब्द-पुष्प बाने ही नहीं पाता" डॉ० सूर्यकान्त शास्त्री-भारतीय नाव्यसाहित्य, नामक ग्रन्थ में 'संस्कृत नाटककार' निबन्ध पृ० १४० ।
कालिदास ने जीवन के विस्तृत क्षेत्रों से पात्रों का चयन किया है। राजकीय जीवन, तपोवन एवं निम्न श्रेणी के जीवन को स्पर्श कर कवि ने अपनी विशाल जीवनदृष्टि का परिचय दिया है। कग्य तपोनिष्ठ ऋषि हैं किन्तु वे स्नेहशील पिता का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। 'शकुन्तला' के तृतीय अंक के विष्कम्भक में अत्यन्त निम्न श्रेणी के पात्र चित्रित किये गए हैं तथा तत्कालीन पुलिस वर्ग का सुन्दर चित्र उपस्थित किया गया है। मालविका राजकन्या होकर भी एक साधारण परिचारिका के रूप में अंकित है। उर्वशी एक दैवी चरित्र के रूप में उपस्थित की गयी है तो शकुन्तला तपोवन की अबोध बाला का प्रतिनिधित्व करती है । इनके सभी नाटकों के नायक राजा हैं, जो प्रेमी के रूप में अंकित हैं।
कालिदास की नाट्यकला की उत्कृष्टता का बहुत बड़ा कारण उनकी काव्य कला है । यों तो कहीं भी कवि अपने कवित्व के बोझ से नाटकीय-विधान को भाराकान्त नहीं करता और काव्य तथा नाटक के शिल्ल में सदा औचित्य एवं सन्तुलन बनाये रहता है पर उसका कवित्व उसके नाटकों को गरिमामय बना देता है, इसमें किसी प्रकार की द्विधा नहीं है। इसके अतिरिक्त कालिदास की नैसर्गिक अलंकार-योजना उनकी रसव्यंजना में उपस्कारक सिद्ध होती है। कालिदास के नाटक इसी काव्यात्मकता के कारण भावनावादी अधिक हैं, और काव्य की भांति वे आदर्शवादी वातावरण की सृष्टि करते हैं, किन्तु यथार्थ से अछूते नहीं हैं भले ही मृच्छकटिक जैसी कठोर यथार्थता वहां न मिले । भारतीयनाट्य-साहित्य पृ० २१५ ।
कालिदास ने अपने नाटकों में कोरा शृङ्गारी वातावरण ही नहीं उपस्थित किया है, अपितु वर्णाश्रमधर्म की व्यवस्था करने वाले राजाओं का चित्रण कर एक नया आदर्श उपस्थित किया है। इनके पात्र जीवन्त प्राणी हैं और वे इसी धरती की उपज हैं। कवि का मुख्य लक्ष्य रसव्यंजना है अतः उसके चरित्रचित्रण में मनोवैज्ञानिक स्थिति एवं अन्तर्द्वन्द्व के संघर्ष का अभाव दिखाई पड़ता है। इसका मुख्य कारण भारतीय नाटकों का रसात्मक होना ही है । 'कालिदास मुख्यतः शृङ्गार रस के कवि हैं किन्तु उन्होंने हास्य, करुण, भयानक एवं वीररसों का भी अत्यन्त सफलता के साथ प्रयोग किया है । कवि विदूषक की व्यंग्यपूर्ण एवं हास्यप्रधान उक्तियों के द्वारा हास की योजना करने में दक्ष सिद्ध होता है। दुष्यन्त के डर से भाग कर जाते हुए हरिण के चित्रांकन में भयानक रस का मार्मिक रूप दिखलाया गया है । शकुन्तला की विदाई का दृश्य तो करुणा से सिक्त है ही।
इनके नाटकों में शिष्ट एवं पुरुष पात्र संस्कृत का प्रयोग करते हैं. बोर शेष पात्र