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माध]
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[माष
महाभारतीय कथा है, जिसे महाकवि ने अपनी प्रतिभा के द्वारा विशद रूप दिया है [विशेष विवरण के लिए दे. शिशुपालवध ]। माघ का व्यक्तित्व पण्डित कवि का है । इनका आविर्भाव संस्कृत महाकाव्य की उस परम्परा में हुआ था जिसमें शास्त्र, काव्य एवं अलंकृत काव्य की रचना हुई थी। इस युग में पाण्डित्य-रहित कवित्व को कम महत्त्व प्राप्त होता था; फलतः माघ ने स्थान-स्थान पर अपने अपूर्व पाण्डित्य का परिचय दिया। ये महावैयाकरण, दार्शनिक, राजनीतिशास्त्र-विशारद एवं नीतिशास्त्री भी थे। 'शिशुपालवध' के द्वितीय सगं में उदव, श्रीकृष्ण एवं बलराम के संवाद के माध्यम से अनेक राजनीतिक गुत्थियां सुलझाई गयी हैं तथा राज्यशास्त्र के सिद्धान्तों का भी प्रतिपादन किया गया है। राजनीतिशास्त्रानुसार राजा के बारह भेदों का वर्णन, सात राज्यांगों तथा शत्रुपक्ष के अठारह तीर्थों का वर्णन इनके प्रगाढ़ अनुशीलन का परिणाम है । सम्राट् के गुणों का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि 'बुद्धि ही जिसका शास्त्र है, स्वामी, अमात्य आदि प्रकृतियां ही जिसके अङ्ग हैं, मन्त्री ही जिसका दुर्भध कवच है, गुप्तचर ही जिसके नेत्र हैं और दूत ही जिसका मुख है, ऐसा पृथ्वीपति विरला ही देखने को मिलता है।' बुद्धिशास्त्रः प्रकृत्यंगो धनसंहृतिकन्चुकः। चारे क्षणो दूतमुखः पुरुषः कोऽपि पार्थिवः ।। माष का पाण्डित्य सर्वगामी है और वे वेद, वेदान्त, सांख्य, बौद्ध प्रभृति दर्शनों के प्रकाण्ड पण्डित ज्ञात होते हैं। प्रातःकाल के समय अग्निहोत्र का वर्णन, हवनकर्म में आवश्यक सामधेनी ऋचाओं का उल्लेख तथा वैदिक स्वरों का ज्ञान इनके वैदिक साहित्य-विषयक ज्ञान का परिचायक है [ 'शिशुपालवध' ११।४१ ] । स्वर-भेद के कारण उपस्थित होने वाले अर्थ-भेद का भी विवरण इन्होंने दिया है-संशयाय दधतोः सरूपतां दूरभिन्नफलयोः क्रियां प्रति । शन्दशासनविदः समासयोविग्रहं व्यवससुः स्वरेण ते ॥ १४॥२४ । शब्दितामनपशब्दमुच्चकैक्यिलक्षणविदोऽनु वाच्यया । याज्यया यजनकर्मिणोऽस्यजन् द्रव्यजातमपदिश्य देवताम् ॥ १४॥२०। प्रथम सगं में नारदकृत श्रीकृष्ण की स्तुति में सांख्य-दर्शन के अनेक तत्वों का विवेचन है । उदासितारं निगृहीतमानसैगृहीतमध्यात्मशा कथम्चन । बहिर्विकारं प्रकृतेः पृथग्विदुः पुरातनं त्वां पुरुषं पुराविदः ॥ १।३३ तस्य साख्यं पुरुषेण तुल्यतां विभ्रतः स्वयमबकुवंतः क्रियाः । कर्तृता तदुपलम्भतोऽभवद् वृत्तिभाजि करणे यत्विपि ॥ १४॥४९ । योगशास्त्र के भी कई परिभाषिक शब्दों का वर्णन माघ ने किया है-चित्त-परिकम, सबीज. योग, सत्त्वपुरुषान्यताख्याति । मैश्यादिचित्तपरिकमंदिको विधाय. क्लेशप्रहाणमिह लब्ध सबीजयोगः । । ख्याति च सस्वपुरुषाऽन्यतयाधिगम्य वाच्छन्ति तामपि समाधिभूतो निरोदम् ४।४५ बौद्ध-दर्शन के सूक्ष्म भेदों का भी इन्हें ज्ञान पा-सर्वकार्यशरीरेषु मुक्त्वाङ्गस्कन्धपंचकम् । सौगतानामिवात्मान्यो नास्ति मन्त्रो महीभृताम् ।। २२२८ । इसमें एक ही श्लोक के अन्तर्गत राजनीति एवं बौर-दर्शन के मूल सिदान्तों का विवेचन है। बौदों ने पांच स्कन्धों-रूप, वेदना, विज्ञाम, संज्ञा तथा संस्कार के समूह को बारमा कहा है उसी प्रकार राजाओं के लिए भी अंगपंचक-सहाय, साधनोपाय, देशकाल. विभाग, विपत्ति,प्रतिकार एवं सिदि-महामन्त्र माने गए हैं। इन छात्रों के अतिरिक