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काव्यालंकारसूत्रवृत्ति ]
( १२१ )
[काव्यालंकारसूत्रवृत्ति
पर्याय, विषम, अनुमान, दीपक, परिकर, परिवृत्ति, परिसंख्या, हेतु कारणमाला, व्यतिरेक, अन्योन्य, उत्तर, सार, सूक्ष्म, लेश, अवसर, मीलित, एकावली । इस अध्याय में १११ श्लोक हैं। अष्टम अध्याय में ११० श्लोक हैं और औपन्यमूलक २१ अलंकारों का विवेचन है। वर्णित अलंकार हैं-उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अपहृति, संशय, समासोक्ति, मत, उत्तर, अन्योक्ति, प्रतीप, अर्थान्तरन्यास, उभयन्यास भ्रान्तिमान्, आक्षेप, प्रत्यनीक, दृष्टान्त, पूर्व, सहोक्ति, समुच्चय, साम्य, स्मरण । नवम अध्याय में अतिशयगत १२ अलंकारों का वर्णन है। इस अध्याय में ५५ श्लोक हैं। अलंकारों के नाम हैं-पूर्व, विशेष, उत्प्रेक्षा, विभावना, तद्गुण, अधिक, विरोध, विषम, असंगति, पिहित, व्याघात, अहेतु । दशम अध्याय में अर्थश्लेष का विस्तृत वर्णन है तथा उसके दस भेद वर्णित हैं-अविशेषश्लेष, विरोधश्लेष, अधिकश्लेष, वक्रश्लेष, व्याजश्लेष, उक्तिश्लेष, असम्भवश्लेष, अवयवश्लेष, तत्त्वश्लेष, विरोधाभासश्लेप । इसमें २९ श्लोक हैं। एकादश अध्याय में अर्थदोष वर्णित हैं-अपहेतु, अप्रतीत, निरागम, बाधयन्, असम्बद्ध, ग्राम्य, विरस, तद्वान्, अतिमात्र, उपमादोष । इस अध्याय में श्लोकों की संख्या ३६ है। द्वादश अध्याय में काव्य-प्रयोजन, काव्य में रस की अनिवार्यता, लौकिकरस, काव्य-रस, शृङ्गाररस, नायक-नायिकाभेद, नायक के चार प्रकार तथा अगम्य नारियों का विवेचन है। इस अध्याय में ४७ श्लोक हैं । त्रयोदश अध्याय में संयोग श्रृंगार, देशकालानुसार नायिका की विभिन्न चेष्टाएँ, नवोढ़ा का स्वरूप तथा नायक की शिक्षा वणित है । इस अध्याय में १७ श्लोक हैं। चतुर्दश अध्याय में विप्रलम्भ श्रृंगार के प्रकार, काम की दस दशा, अनुराग, मान, प्रवास, करुण, शृंगाराभास एवं रीति-प्रयोग के नियम वर्णित हैं। इसमें ३८ श्लोक हैं। पंचदश अध्याय में वीर, करुण, बीभत्स, भयानक, अद्भुत, हास्य, रौद्र, शान्त एवं प्रेयान् तथा रीति-नियम वणित हैं। इस अध्याय में २१ श्लोक हैं। षोडश अध्याय में वर्णित विषयों की सूची इस प्रकार है-चतुर्वर्गफलदायक काव्य की उपयोगिता, प्रबन्धकान्य के भेद, महाकाव्य, महाकथा, आख्यायिका, लघुकाव्य तथा कतिपय निषिद्ध प्रसंग । इस अध्याय में ४२ श्लोक हैं।
रुद्रटकृत 'काव्यालंकार' की एकमात्र टीका नमिसाधु की प्राप्त होती है। ५ ग्रन्थ टीका सहित निर्णयसागर प्रेस से प्रकाशित हुआ था। सम्प्रति इसकी दो टि. व्याख्याएं उपलब्ध हैं
क-डॉ. सत्यदेव चौधरीकृत व्याख्या वासुदेव प्रकाशन, दिल्ली १९६५ ई. . खनमिसाधु की टीका सहित काव्यालंकार का हिन्दी भाष्य-श्री रामदेव शुक्ल, खम्बा विद्या भवन, वाराणसी १९६६ ई० । वल्लभदेव एवं आशाधर नामक काव्यालंकार के दो संस्कृत टीकाकार भी हैं किन्तु इनके ग्रन्थ प्राप्त नहीं होते।।
बाधारग्रन्थ-क. दोनों ही ( हिन्दी भाष्य )। ख. काव्यालङ्कार ( नमिसाधु की टीका) निर्णयसागर प्रेस । ग. संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास-डॉ० पा० वा. काणे ।
काव्यालंकारसूत्रवृत्ति-रीतिसम्प्रदाय ( काव्यशास्त्र का एक सिद्धान्त ) का युगविधायक ग्रन्थ । इसके रचयिता आ० वामन हैं। [ दे० वामन ] इस ग्रन्थ का