________________
प्रतिमा नाटक ]
( २९५ )
सफल नाटक है । कवि ने कथावस्तु का विन्यास इस प्रकार किया है कि सारी घटनाएँ अत्यन्त त्वरा के साथ घटती हुई दिखाई गयी हैं । कथा की शीघ्रता को प्रदर्शित करने के लिए इसमें सूच्यांशों का आधिक्य है । इसके सभी चरित्र अत्यन्त आकर्षक हैं । उदयन कलाप्रेमी, रूपवान् तथा शौयं के प्रतीक के रूप में चित्रित है तो यौगन्धरायण नीतिविशारद के रूप में ।
[ प्रतिमा नाटक
m
•
प्रतिमा नाटक - इसके रचयिता महाकवि भास हैं । इसमें कवि ने रामवनगमन से लेकर रावणवध तक की घटना को स्थान दिया है । यह नाटक सात अंकों में विभक्त है । प्रथम अंक में प्रतीहारी और कंचुकी की बातों से राजा दशरथ द्वारा रामचन्द्र के राज्याभिषेक की तैयारी का वर्णन है । उसी समय कंचुकी आकर राम को बतलाता है कि कैकेयी ने राज्याभिषेक को रोक दिया है और महाराज इस समाचार को सुनकर च्छित हो गए हैं और आप को बुला रहे हैं । लक्ष्मण यह सुनकर राम को भड़काते हैं, पर रामचन्द्र सबको शान्त कर देते हैं । रामचन्द्र के साथ सीता और लक्षमण बन को प्रयाण करते हैं । द्वितीय अंक में राजा दशरथ राम को वन जाने से विरत करने से असमर्थ होकर उनके वियोग में प्राण त्याग करते हैं । तृतीय अंक में कंचुकी से ज्ञात होता है कि अयोध्या में मृत इक्ष्वाकुवंशीय राजाओं की प्रतिमा स्थापित होती है और महाराज दशरथ की भी प्रतिमा स्थापित की गयी है । उसका दर्शन करने के लिए कौशल्यादि रानिय आने वाली हैं । उसी समय भरत रथारूढ़ होकर नगर में प्रवेश करते हैं । भरत सूत से अयोध्या का समाचार पूछते हैं। उसने राजा की मृत्यु के सम्बन्ध में नहीं बताया और उनको कृत्तिका नक्षत्र के व्यतीत होने पर नगर में प्रवेश करने को कहा । वे राजाओं के प्रतिमागृह में ठहर जाते हैं। वहाँ उसका संरक्षक उन्हें इक्ष्वाकुवंशीय मृत नृपतियों का परिचय देता है और बतलाता है कि यहाँ केवल मृत नृपतियों को ही प्रतिमायें रखी जाती हैं । अचानक भरत की दृष्टि दशरथ की और वे शोक से मूच्छित हो जाते हैं। उन्हें देवकुलिक से ही घटनायें ज्ञात हो जाती हैं । चतुथं अंक में भरत सुमन्त्र के साथ मनाकर अयोध्या लौटाने के लिए जाते हैं, पर राम उन्हें पिता के करने की बात करते हैं। भरत इस शर्त पर उनकी बात मान लेते हैं वर्ष के बाद आकर अपना राज्य लोटा लें और मैं न्यास के रक्षक के रूप में रहूंगा । पंचम अंक में स्वर्णमृग की कथा तथा रावण द्वारा सीताहरण, सुग्रीव की मैत्री, वालिवध आदि घटनायें कहलायी गयी हैं । भरत यह सुन कर अपनी सेना तैयार कर लंका में आक्रमण करना चाहते हैं । सप्तम अंक में एक तापस द्वारा यह सूचना प्राप्त होती है कि राम ने सीता का हरण करने वाले रावण का संहार कर दिया है और वे सदल-बल अयोध्या आ रहे हैं। राम भरत का मिलन होता है और सबकी इच्छा से अमात्य राम का अभिषेक करते हैं। भरतवाक्य के बाद नाटक समाप्त हो जाता है ।
प्रतिमा पर जाती है अयोध्या की सारी राम-लक्ष्मण को वचन को सत्य
कि आप चौदह
इस नाटक का नामकरण इक्ष्वाकुवंशीय मृत राजाजों के प्रतिमा निर्माण के महत्त्व पर आश्रित है। भरत ने राजा दशरथ की प्रतिमा को देखकर ही उनकी मृत्यु की कल्पना कर लो । प्रतिमा को अधिक महत्व देने के कारण इसकी अभिधा उपयुक्त सिद्ध