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महानारायणोपनिषद् ]
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[महावीराचार्य
में तीन मार्ग बताये गए हैं-पुष्टिमार्ग, प्रवाहमार्ग तथा मर्यादामागं। इनमें सर्वोत्तम पुष्टिमार्ग है । मर्यादामार्ग में वेद-विहित को एवं ज्ञान का संपादन किया जाता है। सांसारिक लौकिक प्रवाह में पड़े रहने को प्रवाहमार्ग कहते हैं। पुष्टिमार्ग का सम्बन्ध साभात् पुरुषोत्तम से है । मर्यादामार्ग की उत्पत्ति अक्षरब्रह्म की वाणी से हुई है जिसके साधक को सायुज्य मुक्ति की प्राप्ति होती है। पुष्टिमार्ग का साधक मानन्द के धाम परमेश्वर के प्रति आत्मसमर्पण कर उनके अधरामृत का पान करना अपना मुख्य लक्ष्य मानता है। भक्ति दो प्रकार की होती है-मर्यादाभक्ति एवं पुष्टिभक्ति । भगवान् के चरणारविन्द की भक्ति मर्यादाभक्ति कही जाती है, पर उनके अधरारविन्द की भक्ति को पुष्टिभक्ति कहते हैं। मर्यादाभक्ति में साधक को फल की अपेक्षा रहती है पर पुष्टि भक्ति में नहीं रहती। मर्यादाभक्ति के द्वारा सायुज्य मुक्ति की प्राप्ति होती है पर पुष्टिभक्ति में अभेदबोधन का प्राधान्य होता है।
आधारपन्थ-१. भारतीयदर्शन-पं० बलदेव उपाध्याय । २. भागवत सम्प्रदायपं० बलदेव उपाध्याय । ३. वल्लभाचार्य और उनका सिद्धान्त-पं० सीताराम चतुर्वेदी। __ महानारायणोपनिषद्-इसका दूसरा नाम 'याज्ञिक्युपनिषद्' भी है। यह तैत्तिरीय भारण्यक' का दशम प्रपाठक है। नारायण को परमात्मा के रूप में चित्रित करने के कारण इसकी अभिधा नारायणीय है। इसमें आत्मतत्व को परमसत्ता एवं विश्व सर्वस्व माना गया है [ अनु० १० मण्डल २०]। 'महानारायणोपनिषद्' में सत्य, तपस् दम, शम, दान, धर्म, प्रजनन, अग्नि, अग्निहोत्र, यज्ञ एवं मानसोपासना आदि का प्रभावशाली वर्णन है। इसकी अनुवाक् संख्या के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। द्रविड़ों के अनुसार ६४, आन्त्रों के अनुसार ५० एवं कतिपय व्यक्तियों के अनुसार ७९ अनुवाक हैं। पाठों की अनेकरूपता दिखाई पड़ती है तथा वेदान्त, सन्यास, दुर्गा, नारायण, महादेव, दन्ति एवं गरुड़ आदि शब्दों का प्रयोग है। इससे इसकी अर्वाचीनता सिद्ध होती है। किन्तु बौधायन सूत्रों में उल्लेख होने के कारण इसे उतना अर्वाचीन नहीं माना जा सकता। विष्टरनित्स इसे 'भैयुपनिषद्' से प्राचीनतर स्वीकार करते हैं।
मयूरमह-संस्कृत में मयूर नामक कई लेखकों के नाम मिलते हैं। बाण के सम्बन्धी मयूरभट्ट, 'पचपनिरका' नामक अन्य के मेखक मयूर, सिंहल द्वीप के लेखक मयूरपाद घेर आदि [३० संस्कृत सुकवि-समीक्षा] । 'सूर्यशतक' के रचयिता मयूर. भद्ध इन सबों से भिन्न एवं प्राचीन हैं। इनका समय बाण का ही है और दोनों हर्षवर्धन के दरबार में सम्मान पाते थे। ये बाण के सम्बन्धी, संभवतः जामाता कहे गए हैं । कहा जाता है कि इन्हें कुष्ठ रोग हो गया था और उसकी निवृत्ति के लिए इन्होंने 'सूर्यशतक' लिखा था। यह अन्य सम्परावृत्त में रचित है और इसकी भाषा अलंकृत एवं प्रौढ़ है । राजशेखर ने मयूर को कषियों में सवोच्च स्थान दिया है-दर्प कविसुजङ्गानां गता श्रवणगोचरम् । विषवियेव मायूरी मायूरी बाङ् निकुन्तति ।। ___ महावीराचार्य-बीजगणित तथा पाटीगणित के प्रसिद्ध आचार्य। इनका समय ८५०६० है । ये जैनमतावलम्बी थे। इन्होंने गणित-ज्योतिष के ऊपर दो अन्यों की