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[उपनिषद्
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उनमें 'ऐतरेय', कौषीतकि', 'त्तिरीय', 'छान्दोग्य', 'बृहदारण्यक' एवं केन' के कतिपय अंश हैं । "कठोपनिषेद की रचना परवर्ती है क्योंकि इस पर योग और सांख्य का प्रभाव है। साम्प्रदायवादी उपनिषदों में माण्डुक्य' को सबसे अर्वाचीन माना जाता है। 'मैत्रायणी' और 'श्वेताश्वतर भी परवत्तीं हैं क्योंकि इन पर भी योग और सांख्य का प्रभाव है। ज्यूसन के अनुसार उपनिषदों का क्रम इस प्रकार है
क-प्राचीन गद्यात्मक उपनिषदें-बहदारण्यक', छान्दोग्य, तैत्तिरीय, कौषीतकि, केल (जो अंश गद्यात्मक है)।
ख-छन्दोबद्ध उपनिषदें-- ईश, कठ, मुडक एवं श्वेताश्वतर । - ग-परवती गद्य-प्रश्न एवं मैत्रायणी । ३. उपनिषदों की प्राचीनता का पता अन्त साक्ष्य के भी आधार पर लगाया जा सकता है। पाणिनि की अष्टाध्यायी' में 'उपनिषद्' शब्द का प्रयोग है
जीविकोपनिषदावीपम्ये, (११५७९ )
मशाध्यायी' के गणपाठ में भी प्रन्यवाची उपनिषद शब्द विद्यमान है। इससे मात होता है कि पाणिनि के पूर्व उपनिषद् से सम्बर व्याख्यान ग्रन्यों की रचना होने लग गयी थी। लुद वर्ग के अनुसार उपनिषों की रचना आज से तीन सहस्र वर्ष पूर्व हई थी। तिलक जी ने ईसा पूर्व १६०० वर्ष उपनिषदों का रचनाकाल माना है।
" [दे० गीतारहस्य पृ० ५५०-५२] उपनिषदों के अनुवाद-उपनिषदों का भाषान्तर सत्रहवीं शताब्दी में दाराशिकोह आरा कराया गया था। १६५६ ई० में ५० उपनिषदों के फारसी अनुवाद सिरे अकबर' या 'महारहस्य' के नाम से किये गए थे। इस ग्रन्थ का हिन्दी-अनुवाद १७२० ई में झुआ, जिसका नाम 'उपनिषद्-भाष्य' है। १७७५ ई० में सुप्रसिद्ध फ्रेन्च यात्री एक्वेटिल डुबेरन ने इसके दो अनुवाद फ्रेंच और लैटिन में किये । १८०१-२ ई० में लैटिन अनुवाद 'औपनेखत' के नाम से पेरिस से प्रकाशित हुआ, पर फ्रेन्च अनुवाद प्रकाशित म हो सका । लैटिन अनुवाद के ही आधार पर उपनिषदों के कई अनुवाद
काशित हुए। शोपेनहावर और शैलिंग ऐसे दार्शनिकों ने लैटिन अनुवाद को पढ़ कर उपनिषद-मान को विश्व की विचारधारा का पथ-प्रदर्शक माना था। राजा राममोहन राय ने मूल ग्रन्थों के साथ कुछ उपनिषदों के अंगरेजी अनुवाद १८१६-१९ ई० के बीचे प्रकाशित किये थे। श्री जे. डी० लेजुईनास नामक फ्रेंच विद्वान् ने फारसी अनुवाद पर आधृत लैटिन अनुवाद का रूपान्तर फ्रेंच भाषा में किया जिसका नाम 'भारतीयों की भाषा, वाङ्मय, धर्म तथा तत्वज्ञान संबंधी अन्वेषण' है। वेबर साहब ने 'इण्दिस्कनस्तुदियन नामक पुस्तक १७ भागों में लिखी है, जिसके प्रथम भाग में (१८५० ई०) १४ उपनिषदों का अनुवाद प्रकाशित हुआ है। इसके द्वितीय भाग में १५-३९ उपनिषद् प्रकाशित हुए तथा नवम भाग में सिर अकबर' के ४०-५० उपनिषद् लिपज़िक से प्रकाशित हुए । १८८२ ई० में इनका जर्मन अनुवाद ड्रेसडेन से प्रकाशित हुआ। पण्डित मैक्समूलर ने 'सेक्रेड बुक्स ऑफद ईस्ट' नामक ग्रन्थमाला में १२ उपनिषदों का अंगरेजी अनुवाद १८७९ से ८४६० के बीच प्रकाशित किया । अन्य
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