________________
वीरभद्रसेन चम्पू ]
( ५२४ )
रचना की थी। इसमें वर्णित विषयों को सूची प्रारम्भ में दी गयी है । पञ्चसंवत्सरमययुगाध्यक्षं प्रजापतिम् । दिनत्थंयनमासाङ्गं प्रणम्य शिरसा शुचिः ॥ ज्योतिषामयनं पुण्यं प्रवक्ष्याम्यनुपूर्वशः । सम्मतं ब्राह्मणेन्द्राणां यज्ञकालार्थसिद्धये ॥ श्लोक १, २ ॥ आधारग्रन्थ - १. भारतीय ज्योतिष – डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री । २. भारतीय ज्योतिष का इतिहास - डॉ० गोरखप्रसाद ।
[ वेद का समय-निरूपण
mw
वीरभद्रसेन चम्पू- इसके रचयिता पद्मनाभ मिश्र हैं। इनके पिता का नाम बलभद्र मिश्र था । इन्होंने काव्य के अतिरिक्त दर्शन-ग्रन्थों की भी रचना की है। इनके सभी ग्रन्थों की संख्या ग्यारह है। इनकी प्रमुख रचनाएं हैं- वीरभद्रदेवचम्पू ( रचना काल १५७७ ई० ) तथा जयदेव कृत 'चन्द्रालोक' की शरदागम टीका । अपने चम्पूकाव्य के निर्माण-काल कवि ने स्वयं दिया है - युगरामतुंशशांक वर्षे चैत्रे सिते प्रथमे । श्रीवीरभद्रचम्पूः पूर्णाभूच्छ्रेयसे विदुषाम् ॥ ७।७ यह ग्रन्थ सात उच्छ्वासों में विभक्त है जिसे कवि ने महाराज रीवा नरेश रामचन्द्र के पुत्र वीरभद्रदेव के आग्रह पर लिखा या । वीरभद्र स्वयं भी कवि थे और इन्होंने १५७७ ई० में 'कन्दपं चूडामणि' नामक काव्य की रचना की थी। कवि ने इस चम्पू में वीरभद्रदेव का चरित वर्णित किया है और कथा के क्रम में मन्दोदरी एवं विभीषण का भी प्रसंग उपस्थित कर दिया है । कवि ने रीवानरेश की तत्कालीन समृद्धि का अत्यन्त ही सुन्दर वर्णन किया है । इस चम्पू का प्रकाशन प्राच्यवाणी मन्दिर ३ फेडरेशन स्ट्रीट कलकत्ता ९, से हो चुका है । इसके गद्य एवं पद्य दोनों ही ललित हैं । सहजधवलमच्छं भालबालेन्दुयोगादपि च विमलकान्ति स्वर्धुनीवारिपूरैः । निजवपुरमृताभं निर्जितं यस्य कीर्त्या धवलयति नितान्तं भस्मना भूतनाथः ॥ १।११
आधारग्रन्थ - चम्पू- काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन - डॉ० छविनाथ त्रिपाठी ।
1
वेतालपञ्चविंशति- इसमें संस्कृत की २५ रोचक कथाओं का संग्रह है । इसकी रचना शिवदास नामक व्यक्ति ने की थी। प्रसिद्ध जर्मन विद्वान हर्टल के अनुसार इसकी रचना १४८७ ई० के पूर्व हुई थी। इसका प्राचीनतम हस्तलेख इसी समय का प्राप्त होता है । जर्मन विद्वान् हाइनरिश ऊले ने १८८४ ई० में लाइजिंग से इसका प्रकाशन कराया था। इसमें गद्य की प्रधानता है और बीच-बीच में श्लोक भी दिये गए हैं। डॉ० कीथ के अनुसार शिवदास कृत संस्करण १२ वीं शताब्दी से पूर्व का नहीं है । इसका द्वितीय संस्करण जम्भलदत्त कृत है तथा इसमें पद्यात्मक नीतिवचनों का अभाव है । शिवदास के संस्करण में क्षेमेन्द्र कृत 'बृहत्कथामम्जरी' के भी पच प्राप्त होते हैं । [ हिन्दी अनुवाद सहित चौखम्बा विद्याभवन से प्रकाशित, अनुवादक पं० दामोदर झा ] वेद का समय निरूपण - वेद को रचनातिथि के सम्बन्ध में विद्वानों में अत्यधिक मतभेद पाया जाता है। वेदों के निर्माण-काल के सम्बन्ध में अद्यावधि जितने अनुसंधान हुए हैं उनमें किसी प्रकार की निश्चितता नहीं है । भारतीय विश्वास के अनुसार वेद अनादि और अपौरुषेय हैं, अतः उन्हें समय की परिधि में आबद्ध नहीं किया जा सकता । कुछ आधुनिक दृष्टिवाले विद्वानों ने भी वेदों का काल अत्यन्त