________________
रत्नाकर ]
( ४५१ )
[रनाकर
सोलहवें सर्ग में कुश का शासन, कुशावती में राजधानी बनाना, स्वप्न में नगरदेवी के रूप में अयोध्या का दर्शन, कुश का पुनः अयोध्या आना तथा कुमुदती से विवाह का वर्णन है। सत्रहवें सर्ग में कुमुदती से अतिथि नामक पुत्र का जन्म एवं कुश की मृत्यु वर्णित है। अठारहवें सगं में अनेक राजाओं का वर्णन तथा उन्नीसवें में बिलासी राजा अग्निवर्ण की राजयक्ष्मा से मृत्यु तथा गर्भवती रानी द्वारा राज्य संभालने का वर्णन है।
'रघुवंश' में कालिदास की प्रतिभा का प्रौढ़तम रूप अभिव्यक्त हुआ है। कवि ने विस्तृत आधारफलक पर जीवन का विराट् चित्र अंकित कर इसे महाकाव्योचित गरिमा प्रदान की है। विद्वानों का अनुमान है कि संस्कृत के आचार्यों ने रघुवंश के ही आधार पर महाकाव्य के लक्षण निर्मित किये हैं। इसमें एक व्यक्ति की कथा न होकर कई व्यक्तियों की कहानी है, जिसके कारण 'रघुवंश' कई चरित्रों की चित्रशाला बन गया है। दिलीप से लेकर अग्निवर्ण तक कवि ने कई राजाओं का वर्णन किया है, किन्तु उसका चित्त दिलीप, रघु, अज, राम एवं अग्निवर्ण के चित्रण में अधिक रमा है । मुख्यतः कवि का उद्देश्य राजा रघु एवं रामचन्द्र का उदात्त रूप ही चित्रित करना रहा है, जिसके लिए दिलीप, अज आदि अंग रूप से प्रस्तुत किये गए हैं। अग्निवणं के विलासी जीवन का करुण अन्त दिखाकर कवि यह विचार व्यक्त करता है कि चरित्र की उदात्तता एवं आदर्श के कारण रघु एवं राम ने जिस वंश को उतना गौरवपूर्ण बनाया था वही वंश विलासी एवं रुग्णमनोवृत्ति वाले कामी अग्निवर्ण के कारण दुःखद अन्त को प्राप्त हुआ। अग्निवर्ण की गर्भवती पत्नी का राज्याभिषेक कराकर कवि काव्य का अन्त कर देता है।
कहा जाता है कि इस प्रकार के आदर्श चरित्रों के निर्माण में महाकवि ने तत्कालीन गुप्त सम्राटों के चरित्र एवं वैभव से भी प्रभाव ग्रहण किया है तथा अपनी नवनवोन्मेषशालिनी कल्पना का समावेश कर उसे प्राणवन्त बना दिया है। पुत्रविहीन दिलीप की गौभक्ति एवं त्यागमय जीवन बड़ा ही आकर्षक है । रघु की युद्धवीरता एवं दानशीलता, अज और इन्दुमती का प्रणय-प्रसंग एवं चिरवियोग में हृदयद्रावक दुःखानुभूति की व्यंजना तथा रामचन्द्र का उदात्त एवं आदर्श चरित्र सब मिलाकर कालिदास की चरित्र-चित्रणसम्बन्धी कला को सर्वोच्च सीमा पर पहुंचा देते हैं। इतिवृत्तात्मक काव्य होते हुए भी 'रघुवंश' में भावात्मक समृद्धि का चरम रूप दिखलाया गया है। इसमें कवि ने प्रमुख रसों के साथ घटनावली को सम्बद कर कथानक में एकसूत्रता एवं चमत्कार लाने का प्रयास किया है। रघुवंश अत्यन्त लोकप्रिय काव्य है। इसकी संस्कृत में ४० टीकाएं रची गयी हैं। इस पर मल्लिनाथ की टीका अत्यन्त लोकप्रिय है।
आधारग्रन्य-१. रघुवंश महाकाव्य (संस्कृत, हिन्दी टीका ) चौखम्बा प्रकाशन । २. महाकवि कालिदास-डॉ० रमाशंकर त्रिपाठी।
रत्नाकर-ये काश्मीरक कवि एवं 'हरविजय' नामक महाकाव्य के प्रणेता है। इनके पिता का नाम अमृतभानु था। ये काश्मीरनरेश चिप्पट जयापीड (२०००)