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नाथमुनि]
( २४० ) [ नारदपुराण या बृहन्नारदीय पुराण
अभिनवगुप्त एवं शाकंधर ने (संगीतरत्नाकर ) नाट्यशास्त्र के नौ व्याख्याकारों का उल्लेख किया है-उद्भट, लोल्लट, शंकुक, भट्टनायक, राहुल, भट्टयन्त्र, अभिनवगुप्त, कोत्तिधर एवं मातृगुप्ताचार्य। ( इस विषय के विवरण के लिए दे० लेखक का अन्य भारतीय काव्यालोचन)।
आधारग्रन्थ-क-संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास-डॉ. पा० वा. काणे खभारतीय साहित्यशास्त्र भाग १-आ० बलदेव उपाध्याय ग-हिन्दी अभिनव भारती( भूमिका ) आ० विश्वेश्वर ।
नाथमुनि-ये वैष्णवों में रंगनाथ मुनि के नाम से विख्यात हैं तथा विशिष्टाद्वैतवाद नामक वष्णव सम्प्रदाय के आचार्य हैं। इनका समय ८२४ से ९२४ ई० है। इन्होंने तमिलवेद का पुनरुद्धार किया था। ये शठकोपाचार्य की शिष्य-परम्परा में आते हैं । इन्होंने 'न्यायतत्त्व' नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की है जो विशिष्टाद्वैत मत का प्रथम न्याय ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित है । वेदान्तदेशिक ने 'योगरहस्य' नामक प्रन्थ का प्रणेता नाथमुनि को ही माना है।
आधारग्रन्थ-भारतीय दर्शन-आचार्य बलदेव उपाध्याय ।
नाथमुनि विजय चम्पू-इस चम्पूकाव्य के प्रणेता हैं कवि रामानुजदास । ये मैत्रेय गोत्रोद्भव कृष्णाचार्य के पुत्र थे। इनका समय अनुमानतः सोलहवीं शताब्दी का अन्तिम चरण है। इस चम्पू काव्य में नाथमुनि से रामानुज पर्यन्त विशिष्टाद्वैतवाद के आचार्यों का जीवनवृत्त वर्णित है। इसका कवित्वपक्ष दुर्बल है और विवरणात्मकता का प्राधान्य है। कवि की अन्य कृतियां हैं-वेंगलायंगुरुपरम्परा', 'उपनिषदर्थविचार' तथा 'तथ्य-निरूपण' । यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है और इसका उल्लेख डिस्क्रिप्टिव कैललाँग मद्रास १२३०६ में प्राप्त होता है ।
आधारग्रन्थ-चम्पूकाव्य का विवेचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ० छविनाथ त्रिपाठी।
नारदपुराण या वृहन्नारदीय पुराण-पौराणिक क्रम से छठा पुराण । 'मत्स्य. पुराण' में कहा गया है कि "जिस पुराण की कथा में नारद ने बृहत्कल्प के प्रसंग में धर्म का उपदेश दिया है, वह नारदीय पुराण कहा जाता है। इसका प्रमाण पच्चीस सहस्र श्लोकों का है ।" नारद या नारदीय उपपुराण से अन्तर स्थापित करने के लिए इसकी संज्ञा बृहन्नारदीय है। इसके दो खण्ड हैं-पूर्व और उत्तर । पूर्वखण्ड में १२५ अध्याय तथा उत्तर में ८२ अध्याय हैं। जोड़ने पर इसके ब्लोकों की संख्या १८११० होती है। _ 'नारदपुराण' पूर्णरूपेण वैष्णव पुराण है। इसमें वैष्णवों के अनुष्ठानों और उनके सम्प्रदायों की दीक्षा के विधान विस्तारपूर्वक वर्णित हैं। इसके उत्तर भाग में वैष्णव सम्प्रदाय को विशेष स्थान दिया गया है, किन्तु पूर्व भाग में साम्प्रदायिक पूर्वाग्रह नहीं है। इस पुराण में अठारहो पुराण की विषयानुक्रमणिका (अध्याय ९२ से १०९