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ब्रह्मगुप्त ]
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[ बृहत्कथा
नामक ग्रन्थों की रचना की है। ये ज्योतिषशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् एवं बीजगणित के प्रवत्र्तक माने जाते हैं । इनके दोनों ही ग्रन्थों के अनुवाद अरबी भाषा में हुए हैं। 'ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त' को अरबी में 'असिन्द हिन्द' एवं 'खण्डखाद्यक' को 'अलकंन्द' कहा जाता है । आर्यभट्ट के पृथ्वी-चलन सिद्धान्त का खण्डन कर इन्होंने पृथ्वी को स्थिर कहा है | 'ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त' में २४ अध्याय हैं और 'खण्डखाद्यक' में १० । अपने ग्रन्थों में ब्रह्मगुप्त ने अनेक स्थलों पर आर्यभट्ट, श्रीषेण, विष्णुचन्द्र प्रभृति आचार्यों के मत का खण्डन कर उन्हें त्याज्य माना है । इनके अनुसार इन आचार्यों की गणना विधि से ग्रहों का स्पष्ट स्थान शुद्धरूप में नहीं आता । सर्वप्रथम इन्होंने ज्योतिष तथा गणित के विषयों को पृथक् कर उनका वर्णन अलग-अलग अध्यायों में किया है तथा गणितज्योतिष की रचना विशेष क्रम से की है । आर्यभट्ट का निन्दक होते हुए भी इन्होंने 'खण्डखाद्यक' के प्रथम आठ अन्यायों में उनके मत का अनुकरण किया है। इन्होंने ज्योतिष विषयक तथ्यों के अतिरिक्त बीजगणित, अंकगणित एवं क्षेत्रमिति के संबंध में अनेक मौलिक सिद्धान्त प्रस्तुत किये हैं जिनका महत्व आज भी उसी रूप में है । [ ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त - मूल एवं लेखक कृत टीका के साथ काशी से प्रकाशित, १९०२ - सम्पादक सुधाकर द्विवेदी । मूल तथा आमराजकृत संस्कृत टीका के साथ कलकत्ता से प्रकाशित अंगरेजी अनु० पी० सी० सेनगुप्त, कलकत्ता । ]
आधारग्रन्थ - १. भारतीय ज्योतिष - डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री, २. भारतीय ज्योतिष का इतिहास- डॉ० गोरख प्रसाद ।
बृहत्कथा - इसके रचयिता गुणाढ्य थे, जिन्होंने पैशाची भाषा में 'बहुकहा' के नाम से इस ग्रन्थ की रचना की है; किन्तु इसका मूल रूप नष्ट हो चुका है । इसका उल्लेख सुबन्धु, दण्डी एवं बाणभट्ट ने किया है, जिससे इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि होती है । दशरूपक एवं उसकी टीका अवलोक में भी बृहत्कथा के साक्ष्य हैं । त्रिविक्रमभट्ट ने अपने 'नलचम्पू' तथा सोमदेव ने 'यशस्तिलक' में इसका उल्लेख किया है। कम्बोडिया के एक शिलालेख ( ८७५ ई० ) में गुणाढ्य के नाम का तथा प्राकृत भाषा के प्रति उसकी विरक्तता का उल्लेख किया गया है । इन सभी साक्ष्यों के आधार पर गुणाढ्य का समय ६०० ई० से पूर्व माना जा सकता है । गुणाढ्य के ग्रन्थ का संस्कृत अनुवाद बृहत्कथा के रूप में उपलब्ध है । गुणाढ्य राजा होल के दरबारी कवि थे । सम्प्रति बृहत्कथा के तीन संस्कृत अनुवाद प्राप्त होते हैं— क — बुधस्वामी कृत बृहत्कथा-श्लोकसंग्रह - नेपाल निवासी थे। इनका समय ८ व ९ वीं शताब्दी है । ये बृहत्कथा के प्राचीनतम अनुवादक हैं । ख — बृहत्कथा मंजरी - इसके लेखक क्षेमेन्द्र हैं । यह बृहत्कथा का सर्वाधिक प्रामाणिक अनुवाद है जिसकी श्लोक संख्या ७५०० सहस्र है । ( इसक हिन्दी अनुवाद हो चुका है, किताब महल, इलाहाबाद ) । इसका समय प्यारहवीं सदी है । ग - सोमदेवकृत 'कथासरित्सागर' - सोमदेव काश्मीर नरेश अनन्त के समसामयिक थे । इन्होंने २४ सहस्रं श्लोकों में बृहत्कथा का अनुवाद किया है । [ इसका हिन्दी