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बोद्ध-दर्शन ]
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[ बी-दर्शन
यह मत मान्य नहीं है कि आत्मा नाम की वस्तु शाश्वत एवं चिरस्थायी है और एक शरीर के नष्ट हो जाने पर वह अन्य शरीर में प्रवेश कर जाता है तथा शरीर का अन्त होने पर भी विद्यमान रहता है। बौद्धदर्शन में परिवर्तनशील दृष्ट धर्मों के अतिरिक्त किसी अदृष्ट द्रव्य की सत्ता मान्य नहीं है । बुद्ध ने बताया कि यदि आत्मा को नित्य समझ लिया जाय तो आसक्ति बढ़ेगी और दुःख उत्पन्न होगा । भ्रान्त व्यक्ति ही आत्मा को सत्य मानते हैं; फलतः उसकी ओर उनकी आसक्ति बढ़ती है ।
ईश्वर - बौद्ध दर्शन में ईश्वर का अस्तित्व स्वीकार नहीं किया गया है तथा ईश्वर की सत्ता मानने वाले सभी आधारों का खण्डन किया गया है। उन्होंने सोचा कि ईश्वर का अस्तित्व स्वीकार करने पर संसार के अच्छे या बुरे कार्यों का कारण उसे मानना होगा और मनुष्य की स्वतन्त्रता नष्ट हो जायगी। ईश्वर को सर्वशक्तिमान् मानने पर उसके द्वारा पापी भी महात्मा बन सकता है, ऐसी स्थिति में चरित्र-निर्माण एवं धार्मिक जीवन के प्रति मनुष्य उदासीन हो जायगा । अतः बुद्ध ने इसका विरोध किया और केवल इसी संसार की सत्ता स्वीकार की । ईश्वर और देवता की कल्पना से मनुष्य निष्क्रिय हो जायगा और सारा उत्तरदायित्व उन्हीं पर छोड़ देगा । उन्होंने कर्म-विधान को ही मान्यता दी जिसके समक्ष सभी देवी-विधान फीके हो जायेंगे । कर्म के बिना संसार का कोई भी कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता । उन्होंने बिना किसी शासक देव के ही सृष्टि की उत्पत्ति संभव मानी है। जिस प्रकार बोज से अंकुर ओर अंकुर वृक्ष के रूप में परिणत हो जाता है उसी प्रकार सृष्टि का निर्माण स्वतः हो जाता है । उनके अनुसार संसार का कारण स्वयं संसार ही होता है । संसार दुःखमय है अतः इस अपूर्ण संसार का रचयिता एक पूर्ण स्रष्टा कैसे हो सकता है ? बौद्ध दर्शन के सम्प्रदाय - बौद्ध दर्शन के चार सम्प्रदाय हैं वैभाषिक, माध्यमिक, सौत्रान्तिक एवं योगाचार ।
वैभाषिक – इसमें संसार के बाह्य एवं आभ्यन्तर सभी पदार्थों को सत्य माना जाता है तथा इसका ज्ञान प्रत्यक्ष के द्वारा होता है। इसे सर्वास्तिवाद भी कहा जाता है । इस सम्प्रदाय का सर्वमान्य ग्रन्थ है कात्यायनीपुत्र कृत 'अभिधर्मज्ञानप्रस्थानशास्त्र' । अन्य ग्रन्थों में बसुवन्धु का 'अभिधर्मकोश' प्रसिद्ध है । सौत्रान्तिक- इस मत के अनुसार भी बाह्य एवं आभ्यन्तर दोनों ही पदार्थ सत्य हैं। इसमें बाह्य पदार्थ को प्रत्यक्षरूप से सत्य न मानकर अनुमान के द्वारा माना जाता है। बाह्य वस्तुओं का अनुमान करने के कारण ही इसे बाह्यानुमेयवाद कहते हैं । इस मत के चार प्रसिद्ध आचार्य हैकुमारलात, श्रीलात, वसुमित्र तथा यशोमित्र । योगाचार - इसे विज्ञानवाद भी कहते हैं। इस सम्प्रदाय के प्रवत्तंक मैत्रेय हैं जिन्होंने 'मध्यान्तविभाग', 'अभिसमयालंकार', 'सूत्रालंकार,' 'महायान उत्तरतन्त्र' एवं धर्मधर्मताविभंग नामक ग्रन्थ लिखे । इस सम्प्रदाय के अन्य प्रसिद्ध आचार्य है- दिङ्नाग, धर्मकीर्ति एवं धर्मपाल । इम मत के अनुसार बाह्य पदार्थ असत्य है । बाह्य दिखाई पड़ने वाली वस्तु तो चित्त की प्रतीति मात्र है। इसमें पित्त या विज्ञान को एकमात्र सत्य माना गया है, इसलिए इसे विज्ञान