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उपनिषद् ]
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[उपनिषद्
उपनिषद्-वेद के अन्तिम भाग को उपनिषद् कहते हैं, इसी कारण इन्हें वेदान्त भी कहा जाता है। 'उपनिषद्' शब्द की व्याख्या विभिन्न प्रकार से की गयी है तथा इसका प्रयोग ब्रह्मविद्या के रूप में किया गया है।
'तेषामेवैतां ब्रह्मविद्यां वदेत शिरोव्रतं विधिवद्यैस्तु चीणम्'-मुण्डकोपनिषद् ३।२।११
भारतीय तत्त्वज्ञान का मूल स्रोत उपनिषदों में ही है और वेदों का सार इनमें भरा हुआ है । ब्लूमफील्ड का कहना है, कि 'हिन्दूविचारधारा का एक भी ऐसा महत्त्वपूर्ण अंग नहीं है, जिसमें नास्तिक नामधारी बौद्धमत भी आता है, जिसका मूल उपनिषदों में न मिलता हो ।' रेलिज ऑफ द वेद पृ० ५१ । ___ 'उपनिषद्' शब्द 'उप' और 'नि' उपसर्गों के साथ 'सद्' धातु से निष्पन्न है। 'उप' का अर्थ है निकट, 'नि' का निश्चय एवं 'षद्' का बैठना (निकट बैठना )। इस प्रकार इसका अर्थ हुआ शिक्षा-प्राप्ति के लिए गुरु के पास बैठना । कालक्रम से उपनिषद् का अर्थ उस विद्या से हुआ जो ब्रह्मानुभूति करा दे और उसे गुरु के पास जाकर प्राप्त किया जा सके। उपनिषद् वैदिक भावना के ही विकसित रूप हैं। उनमें ज्ञान की प्रधानता है। उपनिषद्युग तत्त्वचिन्तन की दृष्टि से भारतीय विचारधारा के इतिहास में चरम विकास का समय है जब कि भावनाप्रधान वैदिक ऋषियों की विचारधारा गम्भीर चिन्तन एवं मनन की ओर उन्मुख होने लगी थी। वेद, ब्राह्मण एवं उपनिषद् के कर्ताओं पर दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि 'वेदों के कर्ता कवि थे, ब्राह्मणों के पुरोहित और उपनिषदों के रहस्यवादी संत'। __उपनिषदों की संख्या के विषय में पर्याप्त मतभेद है । साधारणतः उनकी संख्या १०८ मानी जाती है जिनमें १० या १२ उपनिषदें प्रधान हैं। 'मुक्तिकोपनिषद्' में उनकी संख्या १०८ दी गयी है जिनमें १० का सम्बन्ध 'ऋग्वेद' से, १९ का 'शुक्लयजुर्वेद' से, १२ का 'कृष्णयजुर्वेद' से, १६ का 'सामवेद' से तथा ३१ का 'अथर्ववेद' से है । आड्यार लाइब्रेरी, मद्रास से कई भागों में उपनिषदों का प्रकाशन हुआ है जिनमें १७९ उपनिषद् हैं । गुजराती प्रिंटिंग प्रेस, बम्बई से प्रकाशित उपनिषद्-वाक्य-महाकोश' में २२३ उपनिषदों के नाम हैं। शंकराचार्य ने दस उपनिषदों पर भाष्य लिखा हैईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्ड, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य एवं बृहदारण्यक । इनके अतिरिक्त कौषीतकि, श्वेताश्वतर तथा मैत्रायणीय उपनिषद् भी प्राचीन हैं।
उपनिषदों का रचनाकाल अभी तक सर्वमान्य नहीं है। डॉ. राधाकृष्णन का कहना है, कि 'इनमें से जो एकदम प्रारम्भ की हैं वे तो. निश्चित रूप से बौद्धकाल के पहले की हैं और उनमें से कुछ बुद्ध के पीछे की हैं। यह संभव है कि उनका निर्माण वैदिक सूक्तों की समाप्ति और बौद्धधर्म के आविर्भाव अर्थात् ईसा से पूर्व की छठी शताब्दी के मध्यवर्ती काल में हुआ हो।' भारतीयदर्शन पृ० १२९ ।।
प्रारम्भिक उपनिषदों का रचनाकाल १००१ ई०पू० से लेकर ३०० ई०पू० का माना गया है। कुछ वे उपनिषदें, जिन पर शंकराचार्य ने भाष्य लिखा है, बौदयुग की परवर्ती हैं। उनका निर्माणकाल ४०० या ३०० ई० पूर्व का है। सबसे प्राचीन वे उपनिषदें हैं, जिनकी रचना गद्य में हुई है तथा जो साम्प्रदायिकता से शून्य हैं।