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वेणीसंहार]
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[वेणीसंहार
पड़ता है, जहां एक शृङ्गारी एवं विलासी व्यक्ति के रूप में चित्रित है। वह युद्ध की विभीषिका को भूल कर अपनी पत्नी के प्रति प्रणय-क्रीड़ा में व्यस्त हो जाता है तथा प्रेमावेशमें प्रिया के व्रत को भंग कर उसे हालिंगन में आबद्ध कर लेता है । द्वितीय अंक में ही वह वीरत्व से पूर्ण भी दिखाई पड़ता है तथा अपनी पत्नी की आशंकाओं का निराकरण करते हुए कहता है कि तुम सिंहराज की पत्नी होकर भयभीत क्यों होती हो । वह लुक-छिप कर युद्ध न कर शत्रु से प्रत्यक्ष रूप से लड़ना चाहता है। इस प्रकार वीरता में वह निश्चित रूप से सिंहराज ही प्रतीत होता है । वह दयावान् भी है तथा अपने आश्रितों पर सदैव दया दिखाता है। वह वीरता का प्रतीक है तथा अचेतावस्था में भी सारथी को रणक्षेत्र से अपने को हटा देने में कायरता समझता है । वह सहृदय भ्राता के रूप में चित्रित है तथा दुःशासन के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाने को भी प्रस्तुत रहता है। वह सच्चा मित्र भी है और कणं के प्रति अपूर्व प्रेम प्रदर्शित करता है । उसकी मृत्यु का समाचार सुन कर वह थोक विह्वल हो उठता है । माता-पिता के प्रति उसके मन में सम्मान का भाव है। उसका गवंशील व्यक्तित्व कभी मुकना नहीं चाहता और वह जो कुछ भी करता है उसके लिए खेद नहीं करता । षष्ठ अंक में जब यह प्रस्ताव आता है कि पांचों पाण्डवों में से वह किसी के साथ भी गदायुद्ध करे तो वह दुर्बलों को न चुनकर भीमसेन से ही लड़ने को प्रस्तुत होता है। दुर्योधन का न झकने वाला व्यक्तित्व ही इस नाटक में आकर्षण का कारण है । ___युधिष्ठिर-वेणीसंहार' में युधिष्ठिर का चरित्र थोड़ी देर के लिये उपस्थित किया गया है। नाटक के अन्तिम अंक में वे रंगमंच पर आते हैं। वे स्वभाव से न्यायप्रिय एवं सहनशील व्यक्ति हैं। वे क्रोध को यथासंभव शमित करना चाहते हैं पर अत्याचार के समक्ष झुकना नहीं चाहते और अन्ततः युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं। प्रथम अंक में कृष्ण द्वारा शान्ति-प्रस्ताव ले जाना युधिष्ठिर की शान्तिप्रियता का घोतक है, पर कृष्ण के प्रयास के असफल होने पर वे युद्ध की घोषणा कर देते हैं। इनके चरित्र में वीरता के साथ न्यायप्रियता एवं शान्ति उनके व्यक्तित्व का असाधारण गुण है। इनका व्यक्तित्व करुणा तथा भावुकता का समन्वित रूप प्रस्तुत करता है । भीम की मृत्यु का समाचार सुनते ही वे अग्नि में जल जाने को तैयार हो जाते हैं और इस पर शान्त चित्त से विचार नहीं करते । नाटक की सारी कथा के केन्द्र रूप में इनका चित्रण किया गया है।
श्रीकृष्ण, कणं एवं अश्वत्थामा का चरित्र अल्प समय के लिए चित्रित किया गया है। कृष्ण नाटक के अन्त में दिखाई पड़ते हैं तथा राजनीति में सिद्धहस्त पुरुष के रूप में चित्रित किये गए हैं। वे सम्पूर्ण नाटक की घटना के सूत्रधार तथा भगवान् भी हैं।
द्रौपदी-यह वीरपत्नी के रूप में चित्रित की गयी है। इसमें आत्मसम्मान का भाव भरा हुआ है । वीरता के प्रति उसका इस प्रकार आकर्षण है कि उसे युधिष्ठिर की न्यायपरायणता भी दुर्बलता सिद्ध होती है । सच्ची क्षत्राणी के अनुरूप उसका क्रोध दिखाई पड़ता है। सहदेव एवं भीम के रणक्षेत्र में जाते समय उनकी मंगल-कामना करती है,