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गार्ग्य ]
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[ गालव
शास्त्रों के आवश्यक एवं उपयोगी अंशों का प्रतिपादन करनेवाले ग्रन्थ प्रकरण-ग्रन्थ के नाम से अभिहित किये जाते हैं। गंगेश उपाध्याय ने १२०० ई० के आस-पास 'तत्त्वचिन्तामणि' का प्रणयन किया था । इस ग्रन्थ में चार खण्ड हैं जिनमें प्रत्यक्षादि चार प्रमाणों का पृथक्-पृथक् खण्डों में विवेचन है । मूल ग्रन्थ की पृष्ठ संख्या ३०० पृष्ठ है पर इसके ऊपर रची गयी टीकाओं की पृष्ठ-संख्या दश लाख से भी अधिक है । इस पर पक्षधर मिश्र ( १३ शतक का अन्तिम चरण ) ने 'आलोक' नाम्नी टीका की रचना की है । गंगेश के पुत्र वर्धमान उपाध्याय ने भी अपने पिता की कृति पर टीका लिखी है जिसका नाम 'प्रकाश' है । ये अपने पिता के ही समान बहुत बड़े नैयायिक थे ।
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आधारग्रन्थ - १. इण्डियन फिलॉसफी - भाग २ -- डॉ० राधाकृष्णन् पृ० ३९-४१ २. भारतीयदर्शन- -आ० बलदेव उपाध्याय ३. हिन्दी तर्क भाषा - आ० विश्वेश्वर । गार्ग्य - पाणिनि के पूर्ववर्ती संस्कृतवैयाकरण । पं० युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार इनका समय ३१०० वि० पू० है । पाणिनिकृत अष्टाध्यायी में इनका उल्लेख तीन स्थानों पर है
अङ्गायंगालवयोः ।७।३।९९
ओतो गाग्यंस्य | ८|३|२०
नोदात्तस्वरितोदय मगाग्यं काश्यपगालवानाम् । ८।४।६७
इनके मतों के उद्धरण 'ऋक् प्रातिशाख्य' तथा 'वाजसनेय प्रातिशाख्य' में प्राप्त होते हैं जिनसे इनके व्याकरणविषयक ग्रन्थ की पोढ़ता का परिचय मिलता है । इनका नाम गं था और ये प्रसिद्ध वैयाकरण भारद्वाज के पुत्र थे यास्ककृत 'निरुक्त' में भी एक
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atri नामधारी व्यक्ति का उल्लेख है तथा 'सामवेद' के पदपाठ को भी गायं रचित कहा गया हैं । मीमांसक जी के अनुसार निरुक्त में उद्धृत मतवाले गायं एवं वैयाकरण गार्ग्य अभिन्न है ।
न सर्वाणीति गायों
तत्र नामानि सर्वाण्याख्यातजानीति शाकटायनो नैरुक्त वैयाकरणानां चैके ॥ निरुक्त १।१२ ॥
प्राचीन वाङ्मय में गाग्यं रचित कई ग्रन्थों का उल्लेख प्राप्त होता है, वे हैं'निरुक्त', 'सामवेद' का पदपाठ, 'शालाक्यतन्त्र' 'भूवर्णन' 'तक्षशास्त्र,' 'लोकायतशास्त्र,' 'देवर्षिचरित' एवं 'सामतन्त्र' । इनमें सभी ग्रन्थ वैयाकरण गाग्यं के ही हैं या नहीं यह विचारणीय विषय है ।
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आधारग्रन्थ – संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास - पं० युधिष्ठिर मीमांसक । गालव—संस्कृत के प्राकूपाणिनि वैयाकरण । पं० युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार इनका समय ३१०० वि० पू० है । आचार्य गालव का पाणिनि ने चार स्थानों पर उल्लेख किया है
अष्टाध्यायी ६ ३ ६१ ६ ४ ६७, ७७१।७४ तथा अड् गाग्यंगालवयोः ७।३।९९ । अन्यत्र भी इनकी चर्चा की गयी है, जैसे 'महाभारत' के शान्तिपर्व ( ३४२ १०३, १०४ ) में गालव 'क्रमपाठ' तथा 'शिक्षापाठ' के प्रवक्ता के रूप में वर्णित हैं । इन्होंने व्याकरण के अतिरिक्त अन्यान्य ग्रन्थों की भी रचना की थी जिनके नाम हैं - संहिता',