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पुराण ]
( २८७ )
[ पुराण
ही प्रधान और
'विष्णुपुराण' ने स्पष्टतः इसे पुरुष दो रूप होते हैं एवं
ही यह सृष्टि के
परतो हि ते द्वे
स्वीकार किया है कि विष्णु के रूप से विष्णु के तृतीय रूप - कलात्मक रूप से समय संयुक्त एवं प्रलयकाल में वियुक्त होते हैं । विष्णोः स्वरूपात् रूपे प्रधानं पुरुषश्च विप्र । तस्यैव तेऽन्येन धृते वियुक्ते रूपान्तरं यद् द्विजकाल संज्ञम् ॥ विष्णुपुराण ११२।२४। पुराणों में सृष्टि के नौ प्रकार कहे गए हैं । सगं के तीन प्रकार हैं- प्राकृत, वैकृत तथा प्राकृत- वैकृत सगं । प्राकृत सगं तीन प्रकार का, वैकृत पाँच प्रकार का एवं प्राकृत- वैकृत एक प्रकार का होता है । प्राकृत सर्ग के तीन प्रकार हैं- ब्रह्म सगं भूत सगं, एवं वैकारिक सगं ।
१ - ब्रह्म सर्ग - महत् तत्व का सगँ ही ब्रह्म सगं है । २-भूत सगं - पञ्च तन्मात्राओं की सृष्टि भूत सगं है । ३ - वैकारिक सगं – एकादश इन्द्रियविषयक सृष्टि वैकारिक सगँ है । वैकृत सगं के पांच प्रकार हैं- मुख्य सगं तिर्यक् सर्ग, देव सगं, मानुष सगँ तथा अनुग्रह सगं । ४ – मुख्य सगं - जड़ सृष्टि को ही मुख्य सर्ग कहते हैं जिसमें वृक्ष, गुल्म, लता, तृण एवं वीरुधू आते हैं । इसे मुख्य सगं इसलिए कहा गया कि पृथ्वी पर चिरस्थायिता के विचार से पर्वतादि की ही प्रधानता है— मुख्या वै स्थावराः स्मृताः, विष्णुपुराण १।५।२१। सृष्टि के आदि में पूर्ववत् ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का चिन्तन करने के पश्चात् पुनः धारण करने पर जो सृष्ट मुख्य सगं कहा गया । ५ तियंक सगं - मुख्य सृष्टि को अनुपयुक्त समझकर जब ब्रह्मा ने उसे पुरुषार्थ के लिए अनुपयुक्त समझ कर पुनः ध्यान किया तो तियं योनि के जीव उत्पन्न हुए । इस वर्ग में पशु-पक्षी आते हैं जो अज्ञानी, तमोमय एवं विवेकरहित होते हैं । स्थावर के पश्चात् इनकी सृष्टि जङ्गम के रूप में हुई । ६ - देवसतिर्यक् सृष्टि से सन्तोष न पाकर ब्रह्मा ने देवसगं या परम पुरुषार्थ या मोक्ष के साधक की सृष्टि की। यह प्राणी ऊध्वं स्रोत एवं ऊध्वलोक में निवास करने वाला है । ७ - मानुष सर्ग- - इस सगं के प्राणी पृथ्वी पर निवास करने वाले एवं सत्व, रज, तम से युक्त होते हैं तथा इसी कारण ये दुःखबहुल प्राणी होते हैं । ये सदा क्रिया
इन्हें मनुष्य कहते हैं । ८ - अनुग्रह
।
९ - कोमार संगं कुछ आचायों के सृष्टिक्रम में यह भी विचार किया
है।
ब्रह्मा ने
असुरों की सृष्टि की जो उनकी देह का परित्याग कर सात्त्विक
तामसी
शील एवं बाह्याभ्यन्तर ज्ञान से मुक्त होते हैं। सगं —– समस्त प्राकृत सगं ही अनुग्रह संगं है अनुसार यह सृष्टि देव, मनुष्य दोनों की गया है कि तमोगुण का आधिक्य होने से जांघ से उत्पन्न हुए । तदनन्तर ब्रह्मा ने शरीर का आश्रय ग्रहण करते हुए अपने मुख से सुरों को उत्पन्न किया तथा पुनः रजोदेह धारण कर रजोगुणप्रधान मनुष्यों का निर्माण किया । उन्होंने आंशिक सत्व देह से पितरों की सृष्टि की। उपर्युक्त चार प्राणिवर्गों का सम्बन्ध चार कालों से भी हैअसुर का रात्रि से, सुर का दिन से, पितरों का संध्या से एवं मनुष्य का प्रातःकाल से । सृष्टि के अन्य तीन प्रकार भी माने गये हैं-ब्राह्मी सृष्टि, एवं रौद्री सृष्टि । प्रतिसर्ग - प्रतिसर्ग या प्रलय के लिए पुराणों में कई हुए हैं
मानसी सृष्टि शब्द प्रयुक्त
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