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नीलाम्बर शा]
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[नैषधीयचरित
की अभिव्यक्ति इस ग्रन्थ की अपनी विशेषता है। इसमें श्लोकों की संख्या २७९ है । यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण तंजोर कैटलाग संख्या ४०३७ में प्राप्त होता है । विलास-वर्णन का चित्र देखिए
मन्दानिलव्यतिकरच्युतपल्लवेषु मन्दारमूललवलीगृहमंडपेषु । पुष्पाणि वेणिवलयेषु गलन्ति तस्यां साह्यं वहन्ति सुरवासकसज्जिकानाम् ॥ १।१६ गायन्ति चाटु कथयन्ति पदा स्पृशन्ति, पश्यन्ति गाढमपि तत्र परिष्वजन्ते । कल्पद्रुमानपि समेत्य सुपर्वकान्ता मुग्धा द्रुमैस्तदितरैश्चिरविप्रलब्धाः ॥ १।१७
आधारग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ० छविनाथ त्रिपाठी।
नीलाम्बर झा-ज्योतिषशास्त्र के आचार्य । इनका समय १८२३ ई० है। ये मैथिल ब्राह्मण थे और इनका जन्म पटना में हुआ था। अलवरनरेश शिवदास सिंह इनके आश्रयदाता थे। इन्होंने 'गोलप्रकाश' नामक ग्रन्थ की रचना की है जो क्षेत्रमिति तथा त्रिकोणमिति के आधार पर निर्मित है। यह ग्रन्थ पांच अध्यायों में हैज्योत्पत्ति, त्रिकोणमितिसिद्धान्त, चापीरेखागणितसिद्धान्त, चापीयत्रिकोणमितिसिद्धान्त तथा प्रश्न ।
आधारग्रन्थ-१. भारतीय ज्योतिष-डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री। २. भारतीय ज्योतिष का इतिहास-डॉ० गोरखप्रसाद ।
नैषधीयचरित-यह श्रीहर्ष कवि रचित महाकाव्य है जिसमें २२ सर्गों में नलदमयन्ती की प्रणयगाथा वर्णित है [दे० श्रीहर्ष] । प्रथम सर्ग-इसमें नल के प्रताप एवं सौन्दर्य का वर्णन है। राजा भीम की पुत्री दमयन्ती नल के यश-प्रताप का वर्णन सुनकर उसकी ओर आकृष्ट होती है और राजा नल भी उसके सौन्दर्य का वर्णन सुनकर उस पर अनुरक्त होता है। उद्यान में भ्रमण करते समय नल को एक हंस मिलता है और राजा उसे पकड़कर छोड़ देता है। द्वितीय सर्ग-हंस राजा के समक्ष दमयन्ती के सौन्दर्य का वर्णन करता है और वह नल का सन्देश लेकर कुण्डिनपुर दमयन्ती के पास जाता है। तृतीय सर्ग-हंस एकान्त में नल का सन्देश दमयन्ती को सुनाता है और वह भी नल के प्रति अपनी अनुरक्ति प्रकट करती है। चतुर्थ सर्ग-इसमें दमयन्ती की पूर्वरागजन्य वियोगावस्था का चित्रण तथा उसकी सखियों द्वारा भीम से दमयन्ती के स्वयंवर के संबंध में वार्तालाप का वर्णन है। पंचम सर्ग-नारद द्वारा इन्द्र को दमयन्ती के स्वयंवर की सूचना प्राप्त होती है और वे उससे विवाह करना चाहते हैं। वरुण, यम एवं अमि के साथ इन्द्र राजा नल से दमयन्ती के पास संदेश भेजने के लिए दूतत्व करने की प्रार्थना करते हैं । नल को अदृश्य शक्ति प्राप्त हो जाती है और वह अनिच्छुक होते हुए भी इस कार्य को स्वीकार कर लेता है । षष्ठ सर्ग-इनमें नल का अदृश्य रूप से दमयन्ती के पास जाने का वर्णन है। वह वहाँ इन्द्रादि देवताओं द्वारा प्रेषित दूतियों की बातें सुनता है। दमयन्ती उन्हें स्पष्ट रूप से कह देती है कि वह नल का वरण कर चुकी है । सप्तम सर्ग-नल का दमयन्ती के नख-शिख का वर्णन । -अष्टम सर्ग-इस