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मालती माधव]
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[मालती माधव
प्राप्त करने पर मकरन्द मालती की सखी मदयन्तिका को देखकर उसके प्रति अनुरक्त हो जाता है। इसी अंक के विष्कम्भक के द्वारा यह सूचना दी गयी है कि मालती का विवाह पमानेती-नरेश के साले नन्दन के साथ निश्चित हो गया है।
पंचम अंक में कापालिक आगेरघण्ट द्वारा मालती कराला देवी को बलि देने के लिए लाई जाती है । उसको चिल्लाहट सुनकर पास के श्मशान से माधव आकर अघोरघण्ट को मार कर मालती की रक्षा करता है। छठे अंक के विष्कम्भक में कपालकुण्डला अपने गुरु अघोरघंट का बदला लेने की घोषणा करती है। इसी समय उसके पक्ष थे लोग विवाह के अवसर पर खोई हुई मालती को खोजने के लिए आकर कराला देवी के मन्दिर को घेर लेते हैं। मालती को वहां पाकर नन्दन के साथ उसके विवाह की तैयारी की जाती है । इसी बीच कामन्दकी की चतुरता से मकरन्द के साथ नन्दन का विवाह सम्पन्न हो जाता है और मालती एवं माधव का गन्धर्व-विवाह, शिव मन्दिर में कामन्दकी द्वारा ही करा दिया जाता है । सप्तम अंक में सुहागरात के समय दुलहिन बना हुआ मकरन्द नन्दन को पीटता है और नन्दन उसे गालियां देता हुआ निकल जाता है। इसी बीच अपनी भाभी को समझाने-बुझाने के लिए नन्दन की बहिन मदयन्तिका आती है और मालती-वेशधारी मकरन्द को देखकर आश्चर्य चकित होकर प्रसन्न हो जाती है । अष्टम अंक में मालती एवं माधव को उद्यान में मदयन्तिका तथा मकरन्द की प्रतिक्षा करते हुए दिखाया गया है। उसी समय कलहंस द्वारा सूचना मिलती है कि मदयन्तिका को भगाने के अपराध में मकरन्द को पकड़ लिया गया है। माधव मालती को अकेली छोड़कर अपने मित्र मकरन्द की रक्षा के लिए चल पड़ता है और अवसर पाकर कपाल. कुण्डल मालती को श्रीपर्वत पर ले जाती है। मकरन्द तथा माधव का सैनिकों के साथ समासान युद्ध होता है और राजा उनकी वीरता पर प्रसन्न होकर उन्हें छोड़ देता है।
नवम, अडु में माधव मकरन्द के साथ विक्षिप्तावस्था में विन्ध्य पर्वत पर घूमता हा दिखाई पड़ता है। वह मालती के वियोग में व्यथित है। उसी समय : कामन्दकी की शिष्या सौदामिनी ने आकर सूचना दी कि मालती सुरक्षित होकर . कुटिया में है। दशम अंक में मकरन्द ने कामन्दकी के पास जाकर सूचना दी कि मालती कुटिया में है। अमात्य भूरिवसु, कामन्दकी, लवंगिका, मदयन्तिका सभी मालती के लिए दुःखित होकर आत्महत्या करना चाहते हैं कि मकरन्द आकर मालती तथा माधव का शुभ समाचार देता है। दोनों आ जाते हैं और मकरन्द एवं मदरन्तिका का विवाह करा दिया जाता है और कामन्दकी की सारी नीति सफल हो जाती है। भरतवाक्य के पश्चात प्रकरण समाप्त हो जाता है। शास्त्रीय दृष्टि से 'मालतीमाधव' रूपक का एक भेद प्रकरण है। प्रकरणमें कथामक कल्पित होता है और सन्धियां पांच होती हैं। इसका नायक धीर प्रशान्त एवं नायिका कुलवती या वेश्या होती है। इसमें नायक या तो अमात्य, विप्र अथवा वणिक होता है तथा प्रधान रस भार । नायक विचापूर्ण एवं धर्म, अर्थ और काम में तत्पर होता है। भवेत्रकरणे वृत्तं लौकिक कविकल्पितम् ॥ अङ्गारोङ्गी नायकस्तु विप्रोमात्यो