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देवी भागवत]
( २२३ )
[द्विजेन्द्रनाथ मिश्र
हयग्रीव-ब्रह्मविद्या यत्र वृत्रवधस्तथा ।
गायत्र्या ससमारम्भस्तवै भागवतं विदुः ॥ वामनपुराण निबन्ध ग्रन्थों तथा धर्मशास्त्रों में 'श्रीमद्भागवत' के ही श्लोक उद्धृत किये गए हैं, देवी भागवत के नहीं। इससे श्रीमद्भागवत की प्राचीनता सिद्ध होती है । बब्बाससेन के 'दानसागर' ( समय ११६९ ई०) में कई पुराणों के उद्धरण दिये गए हैं किन्तु 'श्रीमद्भागवत' के सम्बन्ध में कहा गया है कि दानविषयक श्लोकों के न रहने के कारण इसके श्लोक नहीं उद्धृत किये गए।
___ भागवतं च पुराणं ब्रह्माण्डं चैव नारदीयं च । दानविधिशून्यमेतत् त्रयमिह न निबदमवधायं ।
उपोदात श्लोक ५७ देवी भागवत के एक पूरे अध्याय (९:३०) में दान सम्बन्धी पद्य हैं । यदि 'देवी भागवत' उनकी दृष्टि में 'भागवत' के रूप में प्रसिद्ध होता तो वे अवश्य ही उसके तत्सम्बन्धी श्लोक को उद्धृत करते। अतः बल्लालसेन के अनुसार 'वैष्णव भागवत' ही भागवत के नाम से कथित होता है । अलबेरुनी (१०३० ई० ) के ग्रन्थ में श्रीमद्भागवतपुराण को वैष्णव पुराणों में अन्यतम मानकर स्थान दिया गया है किन्तु इसकी किसी भी सूची में 'देवी भागवत' का नाम नहीं है। इससे इसके अस्तित्व का अभाव परिलक्षित होता है। 'नारदीय पुराण' के पूर्वभाग के ९६ अध्याय में 'श्रीमद्भागवत' के जिन वर्ण्यविषयों का उल्लेख है वे आज भी भागवत में प्राप्त हो जाते हैं, पर 'देवी भागवत' से उनका मेल नहीं है। 'श्रीमद्भागवत' में 'देवीभागवत' का कहीं भी निर्देश नहीं है पर 'देवी भागवत' के अष्टम स्कन्ध के भौगोलिक वर्णन पर 'श्रीमद्भागवत' के पंचम स्कन्ध की छाया स्पष्ट है । भुवनकोष के अन्य विभागों के वर्णन में भी 'देवी भागवत' पर श्रीमद्भागवत का प्रभाव दिखाई पड़ता है। देवी भागवत में १८ पुराणों के अन्तर्गत 'भागवत का भी नाम है, तथा उपपुराणों में भी भागवत का नाम दिया गया है। [१।३।१६ ] उपर्युक्त विवरण से सिद्ध होता है, कि वास्तव में श्रीमद्भागवत ही महापुराण का अधिकारी है, तथा इसकी प्राचीनता देवी भागवत से असंदिग्ध है। देवी भागवत में शक्तितत्त्व का प्राधान्य है, और देवी को आदि शक्ति मान कर उनका वर्णन किया गया है।
आधारग्रन्थ-१. देवी भागवत-मूलमात्र, गुटका ( पण्डित पुस्तकालय, वाराणसी) २. देवीभागवत (हिन्दी अनुवाद) गीता प्रेस, गोरखपुर ३. पुराण-विमर्श-पं. बलदेव उपाध्याय ।
द्विजेन्द्रनाथ मिश्र-बीसवीं शताब्दी के लेखक और कवि । इनके द्वारा रचित ग्रन्थ हैं-'यजुर्वेदभाष्यम्', 'ऋग्वेदादिभाष्यभूमिकाप्रकाशः', 'वेदतत्त्वालोचनम्' 'संस्कृतसाहित्यविमर्शः' एवं 'स्वराज्यविजय' ( महाकाव्य )। 'संस्कृतसाहित्यविमर्थः' संस्कृत में रचित संस्कृत साहित्य का बृहत् इतिहास है। इसमें संस्कृत-साहित्य की सभी शाखाओं का विस्तारपूर्वक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इसका रचनाकाल १९५६ ई० है।