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वामन ]
[वामन
टूट जाता है, किस प्रकार परदारेच्छा की पूत्ति होती है तथा स्त्रियों की व्यभिचार से कैसे रक्षा हो सकती है, आदि विषयों का यहां विस्तारपूर्वक वर्णन है। छठे प्रकरण को 'वैशिक' कहा गया है। इसमें छह अध्याय तथा बारह प्रकरण हैं। वेश्याओं के चरित तथा उनके समागम के उपायों का वर्णन ही इस अधिकरणका प्रमुख विषय है । कामसूत्रकार ने वेश्यागमन को दुव्र्यसन माना है। सप्तम अधिकरण की संज्ञा 'औपनिषदिक' है। इसमें दो अध्याय तथा छह प्रकरण हैं तथा तन्त्र, मन्त्र, औषधि, यन्त्र आदि के द्वारा नायक-नायिकाओं को वशीभूत करने की विधियां दी गयी हैं। रूपलावण्य को बढ़ाने के उपाय, नष्टराग की पुनः प्राप्ति तथा वाजीकरण के प्रयोग की विधि भी इसमें वर्णित है। औपनिषदिक का अर्थ 'टोटका' होता है। इस ग्रन्थ में कुल सात अधिकरण, ३६ अध्याय, ६४ प्रकरण एवं १२५० सूत्र ( श्लोक ) हैं । कामसूत्र में बताया गया है कि सर्वप्रथम इस शास्त्र का प्रवचन ब्रह्मा ने किया था जिसे नन्दी ने एक सहस्र अध्यायों में विभाजित किया। उसने अपनी ओर से कुछ घटाव नहीं किया । श्वेतकेतु ने नन्दी के कामशास्त्र को सम्पादित कर इसका संक्षिप्तीकरण किया। ____ कामसूत्र' में मैथुन का चरमसुख तीन प्रकार का माना गया है-१-सम्भोग, सन्तानोत्पत्ति, जननेन्द्रिय तथा काम-सम्बन्धी समस्याओं के प्रति आदर्शमय भाव । २-मनुष्य जाति का उत्तरदायित्व-३-अपने सहचर या सहचरी के प्रति उच्चभाव, अनुराग, श्रद्धा और हितकामना । वात्स्यायन ने इसमें धर्म, अर्थ और काम तीनों की व्याख्या की है। कामसूत्र में वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए तथा प्रेमी-प्रेमिकाओं के परस्पर कलह, अनबन, सम्बन्धविच्छेद, गुप्त-व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, मारीअपहरण तथा अप्राकृतिक व्यभिचारों आदि के दुष्परिणामों का वर्णन कर अध्येता को शिक्षा दी गयी है जिससे कि वह अपने जीवन को सुखी बना सके। संस्कृत में 'कामसूत्र' के आधार पर अनेक ग्रन्थों की रचना हुई है। इनके लेखकों ने 'कामसूत्र' के कतिपय विषयों को लेकर स्वतन्त्र रूप से ग्रन्य-रचना की है, जिन पर वात्स्यायन को प्रभाव स्पष्ट है। कोकपण्डित ने 'रतिरहस्य', भिक्षुपमधी ने 'नागरसर्वस्व' तथा ज्योतिरीश्वर ने 'पंचसायक' नामक ग्रन्थ लिखे हैं । 'कामसूत्र' के आधार पर 'अनङ्गरङ्ग' 'कोकसार' 'कामरत्न' आदि ग्रन्थ भी लिखे गए हैं।.
माधारग्रन्थ-१. कामसूत्र (हिन्दी व्याख्या सहित )- (जयमङ्गला महित) व्याख्याता श्रीदेवदत्त शास्त्री-चोखम्बा प्रकाशन । २. कामसूत्र परिशीलन-श्री वाचस्पति गैरोला ( संवर्तिका प्रकाशन, इलाहाबाद ) ३. कामकुब्जलता-सं० आ० ढुण्डिराज शास्त्री।
वामन-काव्यशास्त्र के प्राचार्य। ये रीतिसम्प्रदाय के प्रवत्तंक माने जाते हैं। इन्होंने 'काव्यालंकारसूत्रवृत्ति' नामक ग्रन्थ की रचना की है जिसमें रीति' को काव्य की आत्मा माना गया है [दे० काव्यालंकारसूत्रवृत्ति ]। ये काश्मीर निवासी तथा उद्भट के सहयोगी है। 'राजतरंगिणी' में वामन को जयापोड़ ( काश्मीर नरेश ) का मन्त्री लिखा गया है