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महावीर-चरित ]
( ३७४)
[महावीर-चरित
की रक्षा कर उससे कतिपय सूचनाएं प्राप्त करते हैं। रावण द्वारा लंका से निष्कासित उसका अनुज विभीषण राम से ऋष्यमूक पर मिलने की इच्छा प्रकट करता है; जहाँ पर सीता ने अपने वस्त्राभूषणों को गिराया था। माल्यवान् की प्रेरणा से बाली नामक बन्दरों का राजा राम को ऋष्यमूक प्रवेश से रोकता है। राम बाली का वध करते हैं और उसका छोटा भाई सुग्रीव राम को सीता की खोज करने में सहायता करने का वचन देता है। षष्ठ अंक में अपनी योजनाओं की असफलता पर विषण्ण माल्यवान् के दर्शन होते हैं, और उसे हनुमान द्वारा लंका जलाने का समाचार प्राप्त होता है। रावण सीता के सौन्दर्य की प्रशंसा करते हुए प्रवेश करता है और मन्दोदरी उससे बढ़े हुए उसके शत्रु के सम्बन्ध में चेतावनी देती है, पर रावण उसकी एक नहीं सुनता। राम का दूत अंगद आकर रावण को लक्ष्मण का शरण में आने की बात कहता है, पर रावण न केवल उसकी बातों को ही अनसुनी करता है, अपितु उसे दण्ड देने का भी आदेश देता है। अंगद कूद कर भाग जाता है और राम द्वारा लंका पर चढ़ाई कर दी जाती है। रावण युद्ध में प्रयाण करता है और आकाश में इन्द्र तथा चित्ररथ उसके युद्ध का वर्णन करते हैं। रावण वीरता का प्रदर्शन करते हुए अन्ततः सपरिवार मारा जाता है । सप्तम अंक में शोकाकुल लंका का प्रवेश एवं अलका द्वारा उसे सान्त्वना दिलाई गयी है। इस अंक में यह सूचना प्राप्त होती है कि अग्नि-परीक्षा के द्वारा सीता की पवित्रता सिट की गयी है । पुनः विजयी राम अपनी सेना के साथ पुष्पका. रूढ़ होकर अयोध्या के लिए प्रस्थान करते हैं, और उनकी माताएं एवं भाई उनका स्वागत करते हैं । विश्वामित्र द्वारा राम का राज्याभिषेक होता है और नाटक की समाप्ति होती है।
'महावीर-चरित' भवभूति की प्रथम रचना है, अतः उसमें नाटकीय प्रौढ़ता के दर्शन नहीं होते। कवि ने प्रसिद्ध राम-कथा में पर्याप्त परिवर्तन न करते हुए इस नाटक की रचना की है। माल्यवान् द्वारा प्रेरित होकर परशुराम का राम से बदला चुकाने के लिए मिथिला जाना तथा राम-वन गमन का सम्पूर्ण प्रसंग भवभूति की मौलिक उद्भावना है। कवि ने राम द्वारा बालि-वध की घटना में व्यापक रूप से परिवर्तन किया है तथा पात्रों के चरित्र का उत्कर्षाधान करने के लिए मूल घटनाओं को परिवर्तित किया है। भवभूति ने इस नाटक में सम्पूर्ण राम-चरित का नियोजन कर बहुत बड़ी पटुता प्रदर्शित की है। इतने बड़े कथानक में सन्तुलन लाने तथा कथा को नाटकीय रूप देने के लिए मूल कथा में अनेक परिवर्तन किये गए हैं, एवं कथानक को अधिक मनोवैज्ञानिक बनाया गया है। यद्यपि कथानक को प्रशस्त बनाने के लिए कवि की ओर से हर संभव प्रयास किये गए हैं, तथापि इस नाटक में त्रुटियां कम नहीं हैं। परशुराम, जनक, दशरथ तथा राम आदि के संवाद एवं वाग्युद्ध दो अंकों में व्याप्त हैं; जो कवि की नाटकीय असफलता के द्योतक होकर दर्शकों में वैरस्य उत्पन्न करने वाले हैं । यद्यपि इन संवादों का काव्यत्व की दृष्टि से अवश्य ही महत्व है, पर नाटकीय कला के विचार से ये अनुपयुक्त हैं। पद्यों का बाहुल्य इसके नाटकीय सन्निकर्ष को गिरा देता है । सम्पूर्ण षष्ठ अंक इन्द्र एवं चित्ररथ के संवादों के रूप में