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काव्यालंकार ]
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[ काव्यालंकार
५. संस्कृत - कवि - दर्शन - डॉ० भोलाशंकर व्यास । ६. संस्कृत काव्यकार - डॉ० हरिदत्त शास्त्री । ७. संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त इतिहास - गैरोला ( द्वितीय संस्करण ) । ८. कालिदास - प्रो० मिराशी । ९. कालिदास और भवभूति-द्विजेन्द्रलाल राय अनु० रूपनारायण पाण्डेय । १०. कालिदास और उनकी कविता - पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी । ११. कालिदास - पं० चन्द्रबली पाण्डेय । १२. विश्वकवि कालिदास : एक अध्ययन-पं० सूर्यनारायण व्यास । १३. कालिदासकालीन भारत - डॉ० भगवतशरण उपाध्याय । १४. कालिदास के सुभाषित - डॉ० भगवतशरण उपाध्याय । १५. राष्ट्रकवि कालिदासडॉ० सीताराम सहगल | १६ - कालिदास - जीवन कला और कृतित्व - जयकृष्ण चौधरी । १७. कालिदास : एक अनुशीलन- पं० देवदत्त शास्त्री । १८ कालिदास और उसकी काव्यकला - वागीश्वर विद्यालंकार । १९. कालिदास के पशु-पक्षी-हरिदत्त वेदालंकार । २०. कालिदास की लालित्य योजना - आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी । २१. महाकवि कालिदास - डॉ० रमाशंकर तिवारी । २२. कालिदास के ग्रन्थों पर आधारित तत्कालीन भारतीय संस्कृति- डॉ० गायत्री वर्मा । २३. कालिदास की कला-संस्कृति - डॉ० देवीदत्त शर्मा । २४. मेघदूत : एक पुरानी कहानी-आ० हजारी प्रसाद द्विवेदी । २५. भारतीय राजनीतिकोश - कालिदास खण्ड । २६. कालिदासं नमामि - डॉ० भगवतशरण उपाध्याय । २७. उपमा कालिदास्य - डॉ० शशिभूषण दास गुप्त ( हिन्दी अनुवाद ) । २८. कालिदास का प्रकृति-चित्रण - निर्मला उपाध्याय ।
काव्यालंकार - काव्यशास्त्र का ग्रन्थ । इसके रचयिता आ० रुद्रट हैं। [दे० रुद्रट] 'काव्यालंकार' अलंकार शास्त्र का अत्यन्त प्रौढ़ ग्रन्थ है जिसमें भामह एवं दण्डी आदि की अपेक्षा अधिक विषयों का विवेचन है। यह ग्रन्थ सोलह अध्यायों में विभक्त है जिसमें ७३४ श्लोक हैं ( इनमें ४९५ कारिकाएं एवं २५३ उदाहरण हैं ) । 'काव्यालंकार' के १२ वे अध्याय के ४० वें श्लोक के बाद १४ श्लोक प्रक्षिप्त हैं, अतः विद्वानों ने उनकी गणना नहीं की है। यदि उन्हें भी जोड़ दिया जाय तो श्लोकों की कुल संख्या ७४८ हो जायगी। प्रथम अध्याय में गौरी एवं गणेश की बन्दना के पश्चात् काव्यप्रयोजन, काव्यहेतु एवं कविमहिमा का वर्णन है । इसमें कुल २२ श्लोक हैं । द्वितीय अध्याय के वर्णित विषय हैं-काव्यलक्षण, शब्दप्रकार ( पाँच प्रकार के शब्द ), वृत्ति के आधार पर त्रिविध रीतियाँ, वक्रोक्ति, अनुप्रास, यमक, श्लेष एवं चित्रालंकार कां निरूपण, वैदर्भी, पांचाली, लाटी तथा गौडी रीतियों का वर्णन, काव्य में प्रयुक्त छह भाषाएं - प्राकृत, संस्कृत, मामध, पैशाची, शौरसेनी एवं अपभ्रंश तथा अनुप्रास की पाँच वृत्तियाँ-मधुरा, ललिता, प्रौढ़ा, परवा, भद्रा का विवेचन । इस अध्याय में ३२ श्लोक प्रयुक्त हुए हैं। तृतीय अध्याय में यमक का विवेचन ५८ इलोकों में किया गया है तथा चतुर्थ एवं पंचम में' (क्रमशः ) क्लेब और चित्रालंकार का विस्तृत वर्णन है । इनमें क्रमशः ५९ एवं ३५ श्लोक है । षष्ठ मध्याय में दोष-निरूपण है जिसमें ४७ श्लोक हैं। सप्तम अध्याय में अर्थ का लक्षण वाचक शब्द के भेद एवं २३ अर्थालंकारों का विवेचन है। इसमें वास्तवगत भेद के अन्तर्गत २२ अलंकारों का वर्णन है । विवेचित अलंकारों के नाम इस प्रकार हैं-सहोक्ति, समुच्चय, जाति, यथासंख्य, भाव,