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मृच्छकटिक ,
(४१८ )
[ मृच्छकटिक
ही-मन प्रसन्न होकर रत्नावली रख लेती है और सन्ध्या समय चारुदत्त से मिलने का सन्देश देकर मैत्रेय को लौटा देती है। ___ पंचम अंक में यसन्तसेना घोर वर्षा में विट के साथ चारुदत्त के घर जाती है और रात वहीं बिताती है।
षष्ठ अंक में चारुदत्त पुष्पकरण्डक जीर्णोद्यान में जाता है, और वसन्तसेना को भी वहीं मिलने को कहता है। रदनिका चारुदत्त के पुत्र को गोद में लेकर आती है और उसको खेलने के लिए मिट्टी की गाड़ी देती है। लड़का सोने की गाड़ी मांगता है और मिट्टी की गाड़ी नहीं लेता। वसन्तसेना उसे अपने आभूषण देकर सोने की गाड़ी बनवाने को कहती है । वसन्तसेना पुष्पकरण्डक जीर्णोद्यान में जाने को तैयार होती है, किन्तु भूल कर वहीं खड़ी हुई शकार की गाड़ी में बैठ जाती है। इसी बीच कारागार से भागकर गोपालदारक आता है और बचने के लिए वसन्तसेना की गाड़ी में घुस जाता है। गाडीवान उसे ही वसन्तसेना समझकर गाड़ी हांक देता है। मार्ग में चन्दनक एवं वीरक नामक राजपुरुष गाड़ी देखना चाहते हैं। चन्दनक गाड़ी में आयंक को देखता है और आर्यक उसो रक्षा की याचना करता है । चन्दनक उसे अभयदान दे देता है और वीरक को समझाकर गाड़ी नहीं देखने देता और चन्दनक के कहने पर गाड़ीवान गाड़ी बढ़ा देता है।
सातवें अंक में आयंक उद्यान में आकर चारुदत्त से मिलता है और चारुदत्त उसके बन्धनों को काटकर उसे अभयदान देता है। वह स्वयं भी घर चला जाता है और आर्यक को विदा कर देता है !
आठ अंक में शकार उद्यान में आये हुए एक भिक्षुक को चीवर धोते देखकर उसे पीटता है, पर विट के कहने पर उसे छोड़ देता है। उसी समय स्थावर चेटक वसन्तसेना को लेकर पहुंचता है । वसन्त सेना चारुदत्त के स्थान पर शकार को देखकर उर जाती है। शकार उससे प्रणय-निवेदन करता है, किन्तु वसन्तसेना उसके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करती। इस पर वह उसे गला दबोच कर मूच्छित कर देता है और उसे मरा हुआ जानकर वहीं पत्तों से ढंक देता है। वह न्यायालय में जाकर चारुदत्त के ऊपर वसन्त सेना की हत्या का अपराध लगाकर मुकदमा कर देता है। इसी बीच बोट भिक्षु संवाहक उद्यान में आता है और वसन्तसेना को पहचान कर उसे संज्ञा में लाकर विहार में ले जाता है।
नई अंक में शकार न्यायालय में जाकर चारुदत्त पर वसन्तसेना की हत्या करने का अभियोग लगाता है। न्यायाधीश वसन्तसेना की मां को बुला कर पूछता है कि वसन्तसेना कहां गयी थी। वह बताती है कि वह चारुदत्त के पास गयी थी। तत्पश्चात् चारुदत्त आता है और वह वसन्तसेना के साथ अपनी मैत्री स्वीकार कर लेता है। मैत्रेय आकार शकार से लड़ने लगता है और लड़ते समय उसके पास रखा हुआ आभूषण गिर पड़ता है। शकार उसे उठाकर न्यायाधीश के समक्ष रख देता है और वसन्तसेना की मां स्वीकार कर लेती है, कि ये आभूषण उसकी पुत्री के हैं। चारुदत्त का अभियोग सिद्ध हो जाता है और राजाज्ञा के द्वारा उसे प्राणदण्ड मिलता है ।