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मीसह ]
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[ नीलकण्ठविजयचम्मू
फारसी ज्योतिष के आधार पर रचित है। इसमें तीन तन्त्र हैं-संज्ञातन्त्र, वतन्त्र एवं प्रश्नतन्त्र तथा इक्कबाल, इन्दुबार, इत्थशाल, इशराफ, नक्त, यमया, मणऊ, कमल, गैरकम्बूल, खल्लासर, रद्द, युफाली, कुत्थ, दुत्थोत्थदवीर, तुम्बी, रकुत्थ एवं युरफा प्रभृति सोलह योग अरबी ज्योतिष से ही गृहीत हैं।
आधारग्रन्थ-भारतीय ज्योतिष-डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री।
नीलकण्ठभट्ट-ये संस्कृत के प्रसिद्ध राजनिबन्धकार एवं धर्मशास्त्री हैं। इनका समय सत्रहवीं शताब्दी का मध्य है। इनके ज्येष्ठ भ्राता कमलाकर भट्ट भी प्रसिद्ध धर्मशास्त्री थे जिन्होंने 'निर्णयसिन्धु' नामक ग्रन्थ का प्रणयन किया था। इनके पिता का नाम शंकरभट्ट एवं पितामह का नाम नारायणभट्ट था। नीलकण्ठ के पिता ने भी अनेक ग्रन्थों की रचना की थी-'द्वैतनिरूपण' एवं 'सर्वधर्मप्रकाश' । इनके पुत्र शंकर भी कुण्डभास्कर नामक निबन्ध ग्रन्थ के प्रणेता माने जाते हैं। नीलकण्ठ बुन्देला सामन्त राजा भगवन्तदेव के सभा-पण्डित थे। इन्होंने भगवन्तदेव के सम्मान में 'भगवद्भास्कर' नामक बृहदकाय प्रन्थ का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ बारह मयूखों में विभक्त हैसंस्कारमयूख, कालमयूख, श्राद, नीति, व्यवहार, दान, उत्सर्ग, प्रतिष्ठा, प्रायश्चित्त, शुद्धि एवं शान्तिमयूख । नीलकण्ठ ने अन्य ग्रन्थों का भी प्रणयन किया है, वे हैंव्यवहारतत्त्व, दत्तकनिरूपण एवं भारतभावदीप ( महाभारत की संक्षिप्त व्याख्या )। इन्होंने 'नीतिमयूख' में राजशास्त्र-विषयक सभी तथ्यों पर विचार किया है। इस ग्रन्थ में सर्वप्रथम राज्याभिषेक के कृत्यों का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है तत्पश्चात् राज्य के स्वरूप एवं सप्तांगों का निरूपण है। इसके निर्माण में मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति, कामदन्दकनीतिसार, वराहमिहिर, महाभारत एवं चाणक्य के विचारों से पूर्णतः सहायता ली गयी है तथा स्थान-स्थान पर इनके वचन भी उद्धृत किये गए हैं। इसमें राज्यकृत्य, अमात्यप्रकरण, राष्ट्र, दुर्ग, चतुरंगबल, दूताचार, युद्ध. युद्ध-यात्रा, व्यूहरचना, स्कन्धावार, युद्धप्रस्थान के समय के शकुन एवं अपशकुन आदि विषय अत्यन्त विस्तार के साथ वर्णित हैं।
आधारग्रन्थ-भारतीय राजशास्त्र प्रणेता-डॉ० श्यामलाल पाण्डेय ।
नीलकण्ठविजयचम्पू-इस चम्पूकाव्य के रचयिता नीलकण्ठ दीक्षित हैं। ये सुप्रसिद्ध विद्वान् अप्पयदीक्षित के भ्राता अच्चादीक्षित के पौत्र थे। इनके पिता का नाम नारायणदीक्षित था। इस चम्पू का रचनाकाल १६३६ ई० है। कवि ने स्वयं अपने ग्रन्थ की निर्माण तिथि दी है-कल्यन्द ४७३८ ।
अष्टत्रिंशदुपस्कृतसप्तशताधिकचतुःसहस्रेषु ।
कलिवर्षेषु प्रथितः किल नीलकण्ठविजयोऽयम् ॥ १।१० 'नीलकण्ठविजयचम्पू में देवासुरसंग्राम की प्रसिद्ध पौराणिक कथा वर्णित है। इसमें पांच आश्वास हैं। प्रारम्भ में महेन्द्रपुरी का विलासमय चित्र है जिसके माध्यम से नायिकाभेद का भी रूप प्रदर्शित किया गया है । प्रकृति का मनोरम चित्र, विरोधाभास का वर्णन, क्षीरसागर का सुन्दर चित्र, शिव एवं शैवमत के प्रति श्रद्धा एवं तात्त्विक ज्ञान