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पराशरस्मृति ]
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[ पराशर
पराशरस्मृति-- यह पराशर द्वारा रचित स्मृति है जो उनके नाम से प्रसिद्ध है । गरुडपुराण में ( अध्याय १०७ ) 'पराशरस्मृति' के ३९ श्लोक के लिए गए हैं जिससे sant rataar का पता चलता है । कौटिल्य ने भी पराशर के मत का ६ बार उल्लेख किया है । इसका प्रकाशन कई स्थानों से हुआ है, पर माधव की टीका के साथ बम्बई संस्कृतमाला का संस्करण अधिक प्रामाणिक है । इसमें बारह अध्याय एवं ५९२ दलोक हैं। इसकी विषय-सूची इस प्रकार है- १ - पराशर द्वारा ऋषियों को धर्मज्ञान देना, युगधर्म तथा चारो युगों का विविध दृष्टिकोण से अन्तर्भेद, स्नान, सन्ध्या, जप, होम, वैदिक अध्ययन, देवपूजा, वैश्वदेव तथा अतिथिसत्कार, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र की जीविकावृत्ति के साधन । २ - गृहस्थधर्मं । ३ - जन्म-मरण से उत्पन्न अशुद्धि का पवित्री - करण । ४ - आत्महत्या, दरिद्र, मुखं या रोगी पति को त्यागने पर स्त्री को दण्ड, स्त्री का पुनववाह । पतिव्रता नारियों के पुरस्कार । ५- कुत्ता काटने पर शुद्धि । ६ - पशु-पक्षियों, शून्दों, शिल्पकारों, स्त्रियों, वैश्यों तथा क्षत्रियों को मारने पर शुद्धिकरण, पापी ब्राह्मण एवं ब्राह्मण-स्तुति । ७ - धातु, काष्ठ आदि के बर्तनों की शुद्धि, ८- मासिक धर्म के समय नारी । ९ - गाय, बैल को मारने के लिए छड़ी की मोटाई । १० - वर्जित नारियों से संभोग करने पर चान्द्रायण या अन्य व्रत से शुद्धि । ११ - चाण्डाल से लेकर खाने पर शुद्धि, खाद्याखाद्य के नियम, १२ - दुःस्वप्न देखने, वमन करने, बाल बनवाने आदि पर पवित्रीकरण, पाँच स्नान ।
आधारग्रन्थ – १. धर्मशास्त्र का इतिहास भाग १ ( हिन्दी अनुवाद ) डॉ० पा० बा० काणे । २. पराशर स्मृति - 'प्रकाश' हिन्दी टीका सहित - चौखम्बा प्रकाशन ।
पराशर – फलित ज्योतिष के प्राचीन आचार्य । इनकी एकमात्र रचना 'बृहत्पाराशरहोरा' है । पराशर का समय अज्ञात है, पर विद्वानों ने 'बृहत्पाराशरहोरा' के अध्ययन के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला है कि ये वराहमिहिर के पूर्ववर्ती थे [ दे० वराहमिहिर ] | इनका समय संभवतः ५ वीं शती एवं पश्चिम भारत रहा होगा । 'बृहत्पाराशरहोरा' ९७ अध्यायों में विभक्त है । इसमें वर्णित विषयों की सूची इस प्रकार है - प्रहगुणस्वरूप, राशिस्वरूप, विशेषलग्न, षोडशबगं, राशिदृष्टिकथन, अरिष्टाध्याय, अरिष्टभंग, भावविवेचन द्वादशभाव - फलनिर्देश, ग्रहस्फुट दृष्टिकथन, कारक, कारकांशफल, विविधयोग, रवियोग, राजयोग, द्रारिद्र्ययोग, आयुर्दाय, मारकयोग, दशाफल, विशेषनक्षत्रदशाफल, कालचक्र, अष्टकवर्ग, त्रिकोणशोधन, पिण्डशोधन, रश्मिफल, नष्टजातक, स्त्रीजातक, अंगलक्षणफल, ग्रहशान्ति, अशुभजन्मनिरूपण, अनिष्टयोगशान्ति आदि ।
पराशर के नाम पर अनेक ग्रन्थ प्राप्त होते हैं, जैसे 'पराशरस्मृति' । कौटिल्य ने भी पराशर का नाम एवं उनके मत का छह बार उल्लेख किया है। पर विद्वानों का कहना है कि स्मृतिकार पराशर ज्योतिविद् पराशर से भिन्न हैं । कलियुग में पराशर के ग्रन्थ का अधिक महत्व दिया गया है— कलोपाराशरः स्मृतः । 'बृहत्पाराशरहोरा' के प्रारम्भ में यह श्लोक है—अथैकदामुनिश्रेष्ठं त्रिकालशं पराक्षरम् । प्रपच्छोपेत्य मैत्रेयः प्रणिपत्य
१८ सं० सा०