________________
मम्मट]
(३६२)
[मम्मट
कई ग्रन्थों में सम्पूर्ण पन्थ के प्रणेता के रूप में लेखक-द्वय (मम्मट एवं बल्लट ) का नाम आता है और लेखक के स्थान पर द्विवचन का उल्लेख मिलता है । 'काव्यप्रकाश' के कतिपय हस्तलेखों में तीन लेखकों तक के नाम मिलते हैं-मम्मट, अलक (मह) एवं रुचक । इति श्रीमद्राजानकमखमम्मटरुचकविरचिते निजग्रन्थकाव्यप्रकाशसंकेते प्रथम उल्लासः । [ काव्यप्रकाश की संकेत टीका ] । पर विद्वानों का विचार है कि 'काव्यप्रकाश' की 'संकेत टीका' के लेखक रुचक ने अपना नाम समाविष्ट कर दिया है। 'काव्यप्रकाश' के 'युग्मकर्तृत्व सिद्धान्त' से सम्बद्ध एक दूसरा मत यह है कि इसके कारिका भाग के निर्माता भरतमुनि हैं और वृत्ति की रचना मम्मट ने की है। पर दूसरे कुछ ऐसे भी विद्वान हैं जो कारिका एवं वृत्ति दोनों का ही रचयिता मम्मट को स्वीकार करते हैं। इसके विरोध में विद्वानों ने अनेक पुष्ट प्रमाण प्रस्तुत कर इस मत को निस्सार सिद्ध कर दिया है। इस सिद्धान्त का प्रारम्भ बङ्गदेशीय विद्वानों बारा हुआ था । साहित्यकौमुदीकार विद्याभूषण एवं 'काव्यप्रकाश' की 'आदर्श' टीका के रचयिता महेश्वर ने उपर्युक्त मत प्रकट किये थे। मम्मटायुक्तिमाश्रित्य मितां साहित्यकोमुदीम् । वृत्ति भरतसूत्राणां श्रीविद्याभूषणो व्यधात् ॥ भरत ने 'नाट्यशास्त्र' के अतिरिक्त किसी अन्य ग्रन्थ का प्रणयन नहीं किया था। किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में भरत के अन्य अन्य का विवरण प्राप्त नहीं होता । 'काव्यप्रकाश' में भरतकृत तीन सूत्र ज्यों-के-त्यों प्राप्त होते हैं, शेष सभी सूत्र मम्मट के अपने हैं। 'काव्य प्रकाश' के प्रारम्भ में एक ही मंगलश्लोक है। यदि कारिका एवं वृत्ति के रचयिता भिन्न होते तो मंगलश्लोक भी दो होते । अतः दोनों ही भागों का रचयिता एक व्यक्ति सिद्ध होता है। मम्मट ने जहां कहीं भी भरतमुनि के सूत्रों को उद्धृत किया है, वहाँ 'तदुक्तं भरतेन' लिखा है। यदि सम्पूर्ण सूत्र भरतकृत होते तो केवल एक दो स्थानों पर ही ऐसा लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अन्य अनेक भी ऐसे प्रमाण हैं जिनके आधार पर आ० मम्मट ही इस ग्रन्थ के निर्माता सिद्ध होते हैं। [दे० काव्यप्रकाश का हिन्दी भाष्य-आ० विश्वेश्वर की भूमिका]।
'काव्यप्रकाश' भारतीय काव्यशास्त्र के इतिहास में महान् समन्वयकारी अन्य के रूप में समाहत है। इसमें भरतमुनि से लेकर भोजराज तक के बारह सौ वर्षों के अलङ्कारशास्त्रविषयक अध्ययन का निचोड़ प्रस्तुत कर दिया गया है। इसमें पूर्ववर्ती आचार्यों द्वारा स्थापित अनेक सिद्धान्तों की त्रुटियों को दर्शा कर उनका माजन किया गया है और अत्यन्त निर्धान्त एवं स्वस्थ काव्यशास्त्रीय विचार व्यक्त किये गए हैं। काव्यशास्त्र के अनेक अङ्गों-शब्दशक्ति, ध्वनि, रस, गुण, दोष, बलकारका इसमें सर्वप्रथम यषार्थ मूल्यांकन कर उनकी महत्ता प्रतिपादित की गई है और उन्हें उसी अनुपात में महत्व दिया गया है जिसके कि वे अधिकारी हैं। मम्मट ध्वनिवादी याचार्य हैं और सर्वप्रथम इन्होंने प्रबल ध्वनि विरोधी आचार्यों की धज्जियां उड़ाकर उनके मत को निरस्त कर दिया है। इन्होंने अलंकार को काव्य का आवश्यक तत्त्व स्वीकार न कर अलङ्कार के बिना भी काम्य की स्थिति मानी है। इनके