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पद्मपुराण]
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[पपपुराण
'उत्तररामचरित' की कथा से साम्य रखने वाली उत्तररामचरित की कथा वर्णित है। इसके बाद अष्टादश पुराणों का विस्तारपूर्वक वर्णन कर 'श्रीमद्भागवत' की महिमा का आख्यान किया गया है।
५. उत्तरखण्ड-यह सबसे बड़ा खण्ड है जिसमें नाना प्रकार के आख्यानों एवं वैष्णवधर्म से सम्बद्ध व्रतों तथा उत्सवों का वर्णन किया गया है । विष्णु के प्रिय माघ एवं कात्तिक मास के व्रतों का विस्तारपूर्वक वर्णन कर शिव-पार्वती के वार्तालाप के रूप में राम एवं कृष्णकथा दी गयी है। उत्तरखण्ड के परिशिष्ट रूप में 'क्रियायोगसार' नामक अध्याय में विष्णु-भक्ति का महत्त्व बतलाते हुए गंगास्नान एवं विष्णु-सम्बन्धी उत्सवों की महत्ता प्रदर्शित की गयी है।
'पद्मपुराण' वैष्णवभक्ति का प्रतिपादन करने वाला पुराण है जिसमें भगवन्नामकीत्तंन की विधि एवं नामापराधों का उल्लेख है । इसके प्रत्येक खण्ड में भक्ति की महिमा गायी गयी है तथा भगवत्स्मृति, भगवद्भक्ति, भगवत्तत्त्वज्ञान एवं भगवत्तत्त्व साक्षात्कार को ही मूल विषय मानकर इनका विशद विवेचन किया गया है। इसमें निम्नांकित विषयों का समावेश कर उनका व्याख्यान किया गया है-श्राद्धमाहात्म्य, तीर्थ-महिमा, आश्रमधर्म-निरूपण, नाना प्रकार के व्रत तथा स्नान, ध्यान एवं तर्पण का विधान, दानस्तुति, सत्संग का माहात्म्य, दीर्घायु होने के सहज साधन, त्रिदेवों की एकता, मूर्तिपूजा, ब्राह्मण एवं गायत्री मन्त्र का महत्त्व, गौ एवं गोदान की महिमा, द्विजोचित आचारविचार, पितृ एवं पतिभक्ति, विष्णुभक्ति, अद्रोह, पञ्च महायज्ञों का माहात्म्य, कन्यादान का महत्व, सत्यभाषण तथा लोभत्याग का महत्त्व. देवालय-निर्माण, पोखराखुदाना, देवपूजन का महत्त्व, गंगा, गणेश एवं सूर्य की महिमा तथा उनकी उपासना के फलों का महत्व, पुराणों की महिमा, भगवन्नाम, ध्यान, प्राणायाम आदि । साहित्यिक दृष्टि से भी इस पुराण का महत्त्व असंदिग्ध है। इसमें अनुष्टप् के अतिरिक्त अन्य बड़ेबड़े छन्द भी प्रयुक्त हुए हैं। __'पद्मपुराण' के काल-निर्णय के सम्बन्ध में अभी तक कोई निश्चित मत प्राप्त नहीं हो सका है और इस विषय में विद्वानों में मतैक्य नहीं है । 'श्रीमद्भागवत' का उल्लेख, राधा के नाम की चर्चा, रामानुजमत का वर्णन आदि के कारण यह रामानुज का परवर्ती माना जाता है। श्री अशोक चैटर्जी के अनुसार 'पद्मपुराण' में राधा नाम का उल्लेख श्री हितहरिवंश द्वारा प्रवत्तित राधावल्लभी सम्प्रदाय का प्रभाव सिद्ध करता है, जिनका समय १५८५ ई० है; अतः इसका उत्तरखण्ड १६ वीं शताब्दी के बाद की रचना है । [ दे० पुराण बुलेटिन भाग ५ पृ० १२२-२६ ] विद्वानों का कथन है कि 'स्वर्गखण्ड' में शकुन्तला की कथा महाकवि कालिदास से प्रभावित है तथा इस पर 'रघुवंश' एवं 'उत्तररामचरित' का भी प्रभाव है, अतः इसका रचनाकाल पांचवीं शताब्दी के बाद का है। डॉ० विन्टरनित्स एवं डॉ. हरदत्त शर्मा (पद्मपुराण एण्ड कालिदास, कलकत्ता १९२५ ई०, कलकत्ता ओरियन्टल सिरीज न० १७ ) ने यह सिद्ध किया है कि महाकवि कालिदास ने 'पद्मपुराण' के आधार पर ही 'अभिज्ञानशाकुन्तल' की