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विश्वनाथ पञ्चानन]
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[विश्वनाथ पन्चानन
कारण इसमें श्रृंगाररस की मधुरिमा को अवकाश नहीं मिला है। इसमें कवि ने उत्कृष्ट कवित्व-कला एवं रचना-चातुरी का परिचय दिया है। इसकी काव्यशैली सशक्त एवं प्रवाहपूर्ण है तथा परवर्ती कवियों की यत्नसाध्य कृत्रिम शैली के दर्शन यहां नहीं होते। कवि ने वैदर्भी रीति का प्रयोग कर भाषा में प्रवाह लाने का प्रयास किया है और भावों की अभिव्यक्ति में यथासाध्य सरलता उत्पन्न करने की चेष्टा की है । इस नाटक का विषय बौद्धिक स्तर का है, फलतः इसमें जटिल एवं नीरस गद्य का प्रयोग है, पर काव्योचित उदात्तता का अभाव नहीं है । चाणक्य के कथन में कवि ने वीररस का सुन्दर परिपाक किया है तथा उसकी राजनीति का भी आभास कराया है । केनोत्तुङ्गशिखाकलापकपिलो बढः पटान्ते शिखी ? पार्शः केन सदागतेरगतिता सद्यः समासादिता ? केनानेकपदानवासितसटः सिंहोर्पितः पन्जरे ? भीमः केन चलेकन मकरो दोऽभ्या प्रतीर्णोऽणंदः । १६ । किसने वस्त्र के छोर में ऊंची शिखा वाली अग्नि को बांध लिया? किसने तुरन्त ही अपने जाल से पवन को भी गतिहीन कर लिया ? किसने अनेक हाथियों के मदजल से गीली सटाओंवाले सिंह को पिंजड़े में बन्द कर दिया ? किसने नक्र और मगर से विलोड़ित भयंकर महासमुद्र को हाथों से ही तैरकर पार कर लिया ?' 'मुद्राराक्षस' की शैली विषय के अनुरूप बदलती हुई दिखाई पड़ती है । अधिकांशतः कवि ने व्यास-प्रधान शैली का प्रयोग कर छोटे-छोटे वाक्यों के द्वारा भावाभिव्यक्ति की है।
'मुद्राराक्षस' के पदों में विचित्र प्रकार का पौरुष दिखाई पड़ता है। कवि ने पात्रानुकूल भाषा का प्रयोग कर अपनी कुशलता का परिचय दिया है। इसमें अलंकारों का प्रयोग भाषा की स्वाभाविकता को सुरक्षित करनेवाला है। 'अलंकारों का पद्यों में उतना ही प्रयोग है जिससे भावों के प्रकटन में अथवा मूतं की कल्पना में तीव्रता का वैशव से जन्म हो जाता है। संस्कृत साहित्य का इतिहास-उपाध्याय पृ० ५११ । चाणक्य की कुटिया का वर्णन अत्यन्त आकर्षक एवं स्वाभाविकता से पूर्ण है-उपलशकलमेत भेदक गोयमानां बटुभिरुपहृतानां बहिषां स्तूपमेतत् । शरणमपि समितिः शुष्यमाणाभिराभिविनमितपटलान्तं दृश्यते जीर्णकुख्यम् ॥ ३॥१५ ।
आधारअन्य-१. संस्कृत नाटक-कीथ (हिन्दी अनुवाद ) । २. हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर-डे एवं दासगुप्त । ३. संस्कृत कवि-दर्शन-डॉ० भोलाशंकर व्यास । ५. संस्कृत काव्यकार--डॉ०-हरिदत्त शास्त्री । ६. मुद्राराक्षस-(हिन्दी अनुवाद) अनुवादक डॉ. सत्यव्रतसिंह, चौखम्बा प्रकाशन ( भूमिका भाग)। ७. संस्कृत साहित्य का नवीन इतिहास-(हिन्दी अनुवाद ) कृष्ण चैतन्य ।
विश्वनाथ पञ्चानन--वैशेषिकदर्शन के प्रसिद्ध आचार्य विश्वनाथ पञ्चामन वंगदेशीय थे। इनका समय १७ वीं शताब्दी है। ये नवद्वीप (बंगाल ) के नव्यन्याय प्रवत्तंक रघुनाथ शिरोमणि के गुरु वासुदेव सार्वभौम के अनुज रत्नाकर विद्यावाचस्पति के पौत्र थे। इनके पिता का नाम काशीनाथ विद्यानिवास था जो अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान थे। विश्वनाथ पञ्चानन ( भट्टाचार्य ) ने न्याय-वैशेषिक के ऊपर दो अन्यों की रचना की है 'भाषापरिच्छेद' एवं 'न्यायसूत्रवृत्ति'। भाषापरिच्छेद-यह