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माध]
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[माघ
सुप्रभदेवनामा ॥१॥ कालेभितं तथ्यमुदकंपथ्यं तथागतस्येव जनः सचेताः। विनानुरोधात् स्वहितेच्छयव महीपतीयंस्य वचश्चकार ॥२॥ तस्याभवछत्रक इत्युदात्तः क्षमी मृदुधर्मपरस्तनुजः। यं वीक्ष्यवैयासमजातशत्रोवंचो गुणग्राहिजनः प्रतीये ॥३॥ सर्वेण सर्वाश्रय इत्यनिन्द्यमानन्दभाजा जनितं जनेन । यश्च द्वितीयं स्वयमद्वितीयो मुख्यः सतां गौणमवापनाम ॥४॥ श्रीशब्दरम्यकृतसगंसमाप्तिलक्ष्म लक्ष्मीपतेश्चरितकीर्तनमात्र चाह । तस्यात्मजः सुकविकीर्तिदुराशपादः काव्यं व्यधत्त शिशुपालवधाभिधानम् ॥ ५॥
माघ का जन्म गुजरात राज्य के भीनमाल नामक स्थान में हुआ था। 'शिशुपालवध' की कतिपय प्राचीन प्रतियों में इसका उल्लेख प्राप्त होता है-"इतिधीभिन्नमालवास्तव्यदत्तकसूनोमहाधयाकरणस्य माघस्य कृती शिशुपालवधे महाकाव्ये".:"। विद्वानों का अनुमान है कि यही भिन्नमाल या भीनमाल कालान्तर में श्रीमाल हो गया था। प्रभाचन्द्र रचित 'प्रभावकरचित' में माघ श्रीमाल निवासी कहे गये हैं। प्रभाचन्द्र ने श्रीमाल के राजा का नाम वर्मलात एवं मन्त्री का नाम सुप्रभदेव लिखा है। यह स्थान अभी भी राजस्थान में श्रीमाली नगर के नाम से विख्यात है, तथा गुजरात की सीमा के अत्यन्त निकट है। माघ ने जिस रैवतक पर्वत का वर्णन किया है वह राजस्थान में ही है । इन सारे प्रमाणों के आधार पर विद्वानों ने इन्हें राजस्थानी श्रीमाली ब्राह्मण कहा है। अस्ति गुर्जरदेशोऽन्यराज्जराजन्यदुर्जरः । तत्र श्रीमालमित्यस्ति पुरं मुखमिव क्षतेः ॥ तत्रास्ति हास्तिकाश्वीयापहस्तिनरिपुवजः ।। नृपः श्रीवर्मलाताख्यः शत्रुमर्मभिदक्षमः । तस्य सुप्रभदेवोऽस्ति मन्त्री मिततयाः किल ॥ प्रभाकरचरित । १४।५-१०
माष के स्थितिकाल के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद है; फलतः इनका समय सातवीं शताब्दी से ग्यारहवीं शताब्दी के बीच माना जाता रहा है। राजस्थान के बसन्तपुर नामक स्थान में राजा वर्मलात का एक शिलालेख प्राप्त हुआ है, जिसका समय ६२५ ई० है। यह समय माघ के पितामह का है। यदि इसमें पचास वर्ष जोड़ दिया जाय तो माष का समय ६७५ ई. के निकट माना जा सकता है । 'शिशुपालवध' के द्वितीय सर्ग में एक श्लोक प्राप्त होता है, जिससे माष के काल-निर्धारण में बड़ी सहायता मिलती है। अनुत्सूत्रपदन्यासा सवृत्तिः सनिबन्धना । शब्दविद्येव नो भाति राजनीतिरपस्पशा ॥ २॥११४ । यहाँ कवि ने राजनीति की विशेषता बताते समय उद्धव के कथन में राजनीति एवं शब्दविद्या दोनों का प्रयोग एक साथ श्लिष्ट उपमा के रूप में किया है । इसमें काशिकावृत्ति (-६५० ई० ) तथा उस पर जिनेन्द्रबुद्धि रचित न्यासअन्य ( ७०० ई.) का संकेत है। इससे यह सिद्ध होता है कि 'शिशुपालवध' की रचना ७०० ई० के बाद हुई है। सोमदेव कृत 'यशस्तिलकचम्पू' ( ९५९ ई० ) में माष का उल्लेख प्राप्त होता है, तथा 'ध्वन्यालोक' में 'शिशुपालवध' के दो श्लोक उद्धृत हैं। (३२५३,५।२६ )। 'शिशुपालवध' पर भारवि एवं भट्टि दोनों का प्रभाव लक्षित होता है। अतः इस दृष्टि से इनका समय सप्तम शताब्दी का उत्तराद्धं जान पड़ता है।
माषर्कत एकमात्र प्रन्य, शिशुपालवध' है जिसमें श्रीकृष्ण द्वारा शिशुपाल के वध की कथा २० सों में कही गयी है। इस महाकाव्य की कथावस्तु का आधार