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पाणिनि ]
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[ पाणिनि
कम १८ सगं अवश्य होंगे । त्वया सहाजितं यच्च यच्च संख्यं पुरातनम् । चिरायचेतसि पुरुस्तरुणीकृतमद्यते ॥ इत्यष्टादशे । दुर्घट वृत्ति ४।३।२३, पृ० ८२ । पाणिनि के श्लोक अत्यन्त सरस एवं काव्य के उच्च गुण से सम्पन्न हैं। निरीक्ष्य विद्युत्रयनैः पयोदो मुख निशायामभिसारिकायाः । धारानिपातैः सह किन्नु वान्तश्चन्द्रोऽयमित्यातंतरं ररास ॥ बिजली रूपी नेत्र से, रात्रि के समय अभिसारिकाओं को देख कर बादल को यह सन्देह हुआ कि हमारी धारा सम्पात से क्या चन्द्रमा तो पृथ्वी पर नहीं गिर गया है। ऐसा सोच कर ही बादल गर्जना करते हुए रो रहे हैं । पाणिनि का समय - - इनके काल-निर्णय के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है । डॉ० पीटर्सन के अनुसार अष्टाध्यायीकार पाणिनि एवं वल्लभदेव की 'सुभाषितावली' के कवि पाणिनि एक हैं और इनका समय ईस्वी सन् का प्रारम्भिक भाग है । वेबर एवं मैक्समूलर ने वैयाकरण एवं कवि पाणिनि को एक मानते हुए इनका समय ईसा पूर्व ५०० वर्ष माना है । डॉ० ओटोबोथलक ने 'कथासरित्सागर' के आधार पर पाणिनि का समय ३५० ई० पू० निश्चित किया है, पर गोल्डस्ट्रकर एवं डॉ० रामकृष्ण भंडारकर के अनुसार इनका समय ७०० ई० पूर्व है । डॉ० बेलवल्कर ने इनका समय ७०० से ६०० ई० निर्धारित किया है और डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल पाणिनि का समय ५०० ई० पू० मानते हैं । इन सबों के विपरीत पं० युधिष्ठिर मीमांसक का कहना है कि पाणिनि का आविर्भाव वि० पू० २९०० वर्ष हुआ था । मैक्समूलर ने अपने काल-निर्णय का आधार 'अष्टाध्यायी' ( ५।१।१८ ) में उल्लिखित सूत्रकार शब्द को माना है जो इस तथ्य का द्योतक है कि पाणिनि के पूर्व ही सूत्रग्रन्थों की रचना हो चुकी थी । मैक्समूलर ने सूत्रकाल को ६०० ई० पू० से २०० ई० पू० तक माना है, किन्तु उनका काल-विभाजन मान्य नहीं है । वे पाणिनि और कात्यायन को समकालीन मान कर, पाणिनि का काल ३५० ई० पू० स्वीकार करते हैं क्योंकि कात्यायन का भी यही समय है । गोल्डस्ट्रकर ने बताया है कि पाणिनि केवल 'ऋग्वेद', 'सामवेद' ओर 'यजुर्वेद' से ही परिचित थे, पर आरण्यक उपनिषद्, प्रातिशाख्य, वाजसनेयीसंहिता, शतपथ ब्राह्मण, अथर्ववेद तथा दर्शन ग्रन्थों से वे अपरिचित थे । किन्तु डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल ने इस मत का खण्डन कर दिया है। उनका कहना है कि 'स्पष्ट ही यह मत उस विवेचन के बाद जो पाणिनीय साहित्य के विषय में हमने किया है, ग्राह्य नहीं माना जा सकता । पाणिनि को वैदिक साहित्य के कितने अंश का परिचय था, इस विषय में विस्तृत अध्ययन के आधार पर थीमे का निष्कर्ष है कि ऋग्वेद, मैत्रायणीसंहिता, काठकसंहिता, तैत्तिरीय संहिता, अथर्ववेद, संभवतः सामवेद, ऋग्वेद के पदपाठ और पैप्पलाद शाखा का भी पाणिनि को परिचय था, अर्थात् यह सब साहित्य उनसे पूर्व युग में निर्मित हो चुका था ( धीमे, पाणिनि और वेद, १९३५ पृ० ६३ ) । इस संबंध में मार्मिक उदाहरण दिया जा सकता है । गोल्डस्ट्रकर ने यह माना था कि पाणिनि को उपनिषत् साहित्य का परिचय नहीं था, अतएव उनका समय उपनिषदों की रचना के पूर्व होना चाहिए। यह कथन सारहीन है, क्योंकि सूत्र ११४१७९ में पाणिनि ने उपनिषत् शब्द का प्रयोग ऐसे अर्थ में किया है, जिसके विकास के लिए