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संक्षिप्त रूप देने एवं व्यवस्थित करने के लिए ही हुआ था। इन्हें चार भागों में विभक्त किया गया है-श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र एवं शुल्बसूत्र ।।
१ श्रौतसूत्र-इसमें श्रुतिप्रतिपादित यज्ञों का क्रमबद्ध वर्णन होता है। ऐसे यज्ञों के नाम हैं-दर्श, पूर्णमास, पिण्डपितृयाग, आग्रयणेष्टि, चातुर्मास्य, निरूढपशु, सोमयाग, सत्र ( १२ दिनों तक चलने वाला यज्ञ), गवामयन ( एक वर्ष तक समाप्त होने वाला यज्ञ), वाजपेय, राजसूय, सौत्रामणी, अश्वमेध, पुरुषमेध, एकाहयाग, अहोन ( दो दिनों से लेकर ग्यारह दिनों तक चलने वाला यज्ञ)। धार्मिक दृष्टि से इन ग्रन्थों का अधिक महत्व है। प्रत्येक वेद के पृथक् पृथक् श्रौतसूत्र हैं। ऋग्वेद के दो श्रोतसूत्र हैंआश्वलायन एवं शाखायन । आश्वलायन श्रौतसूत्र में बारह अध्याय हैं। इसके लेखक आश्वलायन हैं। शाङ्खायन श्रौतसूत्र में १८ अध्याय हैं। इसका सम्बन्ध शाखायन ब्राह्मण से है । यजुर्वेद का केवल एक ही श्रौतसूत्र है जिसे कात्यायन श्रौतसूत्र कहते हैं। इसमें २६ अध्याय हैं तथा शतपथ ब्राह्मण में निर्दिष्ट यज्ञों के क्रम का अनुवर्तन है । इस पर कर्काचार्य ने विस्तृत भाष्य लिखा है। कृष्णयजुर्वेद के कई श्रौतसूत्र हैंबोधायन, आपस्तम्ब, हिरण्यकेशीय, सत्याषाढ़, बैखानस, भारद्वाज एवं मानव श्रौतसूत्र । सामवेद के श्रौतसूत्र हैं-लाव्यायन-इसका सम्बन्ध कौथुमशाखा से है । जैमिनीय श्रौतसूत्र-यह जैमिनि शाखा से सम्बद्ध है। ब्राह्मायण श्रौतसूत्र-इसका सम्बन्ध राणायनीय शाखा से है । अथर्ववेद का श्रौतसूत्र है वैतान । इसमें अनेक अंशों में गोपथब्राह्मण का अनुसरण किया गया है। ___ गृह्यसूत्र-इसमें गृहाग्नि में सम्पन्न होने वाले यज्ञ, उपनयन, विवाह और श्राव मादि का विवरण प्रस्तुत किया जाता है। सभी वेदों के पृथक् पृथक् गृह्यसूत्र हैं । ऋग्वेद के दो गृह्यसूत्र हैं-आश्वलायन एवं शाखायन गृह्यसूत्र । प्रथन में चार अध्याय हैं तथा प्रत्येक अध्याय कई खण्डों में विभक्त है। इसमें गृह्यकर्म एवं संस्कार वर्णित हैं तथा वेदाध्ययन का महत्व प्रतिपादित किया गया है। शाङ्खायन में ६ अध्याय हैं। इसमें आश्वलायन के ही विषय वर्णित हैं तथा कहीं-कहीं गृह-निर्माण और गृह प्रवेश का भी वर्णन है। इसके लेखक सुयज्ञ हैं । ऋग्वेद का तृतीय गृह्यसूत्र कौषीतक है। इसके रचयिता का नाम शाम्बव्य या शाम्भव्य है जो कुरुदेशवासी हैं। इसमें विवाहसंस्कार, जातशिशु का परिचय, उपनयन, वैश्वदेव, कृषिकर्म तथा श्राद्ध का वर्णन है। यजुर्वेद का एकमात्र गृह्यसूत्र है पाटस्कर गृह्यसूत्र । इसमें तीन काण्ड हैं। प्रथम काण्ड में आवसथ्य अग्नि का आधान, विवाह तथा गर्भधारण से अन्नप्राशन तक के संस्कार वर्णित हैं। द्वितीय काण्ड में चूड़ाकरण, उपनयन, समावत्तंन, पञ्चमहायज्ञ, श्रावणकर्म तथा सीतायज्ञ का वर्णन है। तृतीय काश में श्राद्ध एवं अवकीणं प्रायश्चित आदि विषय वर्णित हैं। इसकी कई टीकाएं हैं। टीकाकारों के नाम हैं-कर्क, जयराम, गदाधर, हरिहर तथा विश्वनाथ । 'कृष्णयजुर्वेद' के गृह्यसूत्र हैं बौधायन, आपस्तम्ब, भारद्वाज एवं काठक गृह्यसूत्र । आपस्तम्ब गृह्यसूत्र में २३ खड हैं जिनमें विवाह, उपनयन, उपकर्मोत्सर्जन, समावत्तंन, मधुपेक तथा सीमन्तोन्नयन आदि विषयों का वर्णन है। सामवेद के तीन गृह्यसूत्र है-गोभिल, खादिर तथा जैमिनीय गृह्यसूत्र । गोभिल