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मृच्छकटिक ]
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[ मृच्छकटिक
आकृष्ट करने में असफल होकर उसकी हत्या कर देता है और उल्टे चारुदत्त पर हत्या nt अभियोग लगाकर उसे प्राणदण्ड की राजाज्ञा करा देता है । राजा का साला होने के कारण राजपदाधिकारियों, यहाँ तक कि न्यायाधीश पर भी उसका प्रभाव है । उसके स्वभाव में स्थिरता किंचित् मात्र भी नहीं दिखाई देती और यह भी ज्ञात नहीं होगा कि वह कब क्या नहीं कर देगा। उसके इस अविवेकी तथा दुराग्रही स्वभाव के कारण उसके विट एवं चेट भी सदा उससे शंकित रहते हैं। वह विट को दीवार पर भी गाड़ी चढ़ा देने का मूर्खतापूर्ण आदेश देता है । वह गाड़ी में स्त्री को भी देखकर भयभीत हो जाता है और इसलिए दुःख प्रकट करता है कि एक स्त्री की हत्यारूपी वीरतापूर्ण कार्य को देखने के लिए उसकी माता विद्यमान नहीं है ।
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वह मूर्ख होते हुए भी धूर्त है और षड्यन्त्र में अपनी चतुरता प्रदर्शित करता है । वह चतुराई से विट को भगाकर वसन्तसेना की हत्या कर देता और जब विट उसके इस क्रूर कर्म की भत्सना करता है तो वह उल्टे उस पर ही हत्या का झूठा आरोप लगाकर उसे भयभीत कर देता है। वह चेट को बांध भी देता है और वह किसी प्रकार छूटकर उसके रहस्य का उद्घाटन करता है तो वह विट को आभूषण का प्रलोभन देकर न्यायाधीश के समक्ष उसे आभूषण चुरा लेने का अभियोग लगा देता है । इस प्रकार चारुदत्त के विपरीत अमानुषिक गुणों से समन्वित दिखाकर लेखक ने इसे खलनायक का रूप दिया है। इस प्रकरण के अन्य पात्रों में मैत्रेय विट, शर्विलक, रोहसेन, धूता आदि भी हैं, जिनका अपना निजी वैशिष्टय है । इस प्रकरण में कवि ने समाज के विविध वर्गों के व्यक्तियों का चरित्रांकन कर संस्कृत में सर्वथा नवीन शैली की कृति प्रस्तुत की है। अधिकांशतः निम्न श्रेणी के पात्रों का चरित्र वर्णित करने के कारण यह प्रकरण यथार्थवादी हो गया है। इसमें मुख्य पात्रों की भाँति गौण पात्रों की भी चारित्रिक विशेषताओं के उद्घाटन में समान रूप ते ध्यान दिया गया है और सभी पात्रों का सफल रेखाचित्र उतारा गया है । इसके पात्रों की विशेषता यह है कि उनका निजी व्यक्तित्व है और वे 'टाइप' न होकर 'व्यक्ति' हैं । प्रो० राइडर के अनुसार इसके पात्र सार्वदेशिक हैं और वे संसार के किसी भी कोने में दिखाई पड़ते हैं । ( अधिक विवरण के लिए दे० शूद्रक ) ।
रस - 'मृच्छकटिक' एक प्रकरण है जिसमें गणिका वसन्तसेना के प्रेम का वर्णन करने के कारण श्रृङ्गार रस अंगी है। इसमें कार रस के उभय पक्षों-संयोग एवं विप्रलम्भ में से संयोग की ही प्रधानता है । शृङ्गार रस का स्थायीभाव रति वसन्तसेना
के ही हृदय में अंकुरित होती है और चारुदत्त इसका आलम्बन होता है । उद्दीपन के रूप में प्रेम की अनेक घटनाओं का चित्रण है तथा पंचम अंक का प्रकृति-वर्णन एवं वर्षा का सुन्दर चित्रण उद्दीपन के ही अन्तर्गत आता है। इसमें वसन्तसेना के विरहवर्णन में वियोग का भी रूप प्रदर्शित किया गया है तथा हास्य एवं करुण रस की भी योजना की गयी है । शूद्रक के हास्य-वर्णन की अपनी विशेषता है जो संस्कृत साहित्य में विरल है । इसमें हास्य गंभीर, विचित्र तथा व्यंग्य के रूप में मिलता है । कवि ने हास्यास्पद चरित्र एवं हास्यास्पद परिस्थितियों के अतिरिक्त विचित्र वार्तालापों एवं