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उदयनाचार्य]
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[ उदयप्रभदेव
का वर्णन इन्होंने ही किया था। प्रतिहारेन्दुराज एवं राजानक तिलक उद्भट के दो टीकाकार हैं जिन्होंने क्रमशः 'लघुविवृत्ति' एवं 'उगटविवेक' नामक टीकाओं का प्रणयन किया है।
आधारग्रन्थ-१. संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास-डॉ० मा० वा. काणे २. भारतीय साहित्यशास्त्र भाग-१-आ० बलदेव उपाध्याय ३. अलंकारों का ऐतिहासिक विकास-भरत से पद्माकर तक ( शोधप्रबन्ध ) राजवंश सहाय 'हीरा'
उदयनाचार्य-भारत के प्रसिद्ध दार्शनिकों में उदयनाचार्य का नाम आता है। ये मैथिल नैयायिक थे तथा इनका जन्म दरभंगा से २० मील उत्तर कमला नदी के निकटस्थ 'मंगरौनी' नामक ग्राम में एक सम्भ्रान्त ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका समय ९८४ ई० है । 'लक्षणावली' नामक अपनी कृति का रचना-काल उदयनाचार्य ने ९०६ शकाब्द दिया है जो ई० स० का ९८४ ई० है । इनके अन्य ग्रन्थ हैं'न्यायवात्तिक-तात्पर्य-टीका-परिशुद्धि', 'न्यायकुसुमान्जलि' तथा 'आत्मतत्त्वविवेक' । सभी ग्रन्थों की रचना बौद्ध दार्शनिकों द्वारा उठाये गए प्रश्नों के उत्तर-स्वरूप हुई थी। 'न्यायकुसुमाम्जलि' में ईश्वर की सत्ता को सिद्ध कर बौद्ध नैयायिकों के मत का निरास किया गया है। इस ग्रन्थ का प्रतिपाद्य 'ईश्वर-सिद्धि' ही है। इसकी रचना कारिका एवं वृत्ति शैली में हुई है। स्वयं उदयनाचार्य ने अपनी कारिकाओं के ऊपर विस्तृत व्याख्या लिखी है जो लेखक की पौढ़ता का परिचायक है। हरिदास भट्टाचार्य ने इस पर अपनी व्याख्या लिखकर ग्रन्थ के गूढार्य का उद्घाटन किया है। बौद्ध विद्वान् कल्याणरक्षित-कृत 'ईश्वरभङ्गकारिका' (८२९ वि० सं०) का खण्डन 'न्यायकुसुमान्जलि' में किया गया है तथा उक्त बौद्ध दार्शनिक के अन्य दो अन्यों-'अन्यापोहविचारकारिका' तथा 'श्रुतिपरीक्षा'-तथा धर्मोत्तराचार्य नामक अन्य बौद्ध दार्शनिक रचित 'अपोहनामप्रकरण' एवं 'क्षणभङ्गसिद्धि' के मत के निरास के लिए 'आत्मतत्त्वविवेक' की रचना हुई थी। उपर्युक्त ( दोनों) बौद्ध दार्शनिकों द्वारा उठाये गए प्रश्नों के उत्तर आ० उदयन के ग्रन्थों में प्राप्त हो जाते हैं। उदयनाचार्य ने 'प्रशस्तपादाष्य' ('वैशेषिक-दर्शन' का ग्रन्थ) के ऊपर 'किरणावली' नामक व्याख्या की रचना की है और इसमें भी बौद्ध-दर्शन का खण्डन किया है। 'न्यायकुसुमाञ्जलि' भारतीय-दर्शन की पक्तिय कृतियों में आती है और यह उदयनाचार्य की सर्वश्रेष्ठ रचना है।
आधारग्रन्थ-क-भारतीयदर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय ख-न्यायकुसुमान्जलि (हिन्दी व्याख्या ) आ० विश्वेश्वर ।।
उदयप्रभठेव-ये ज्योतिषशास्त्र के आचार्य हैं। इन्होंने 'आरम्भसिद्धि' या 'व्यवहारचर्या' नामक ग्रन्थ की रचना की है। इनका समय १२२० के आसपास है। इस ग्रन्थ में लेखक ने प्रत्येक कार्य के लिए शुभाशुभ मुहूर्तों का विवेचन किया है। इस पर हेमहंसगणि ( रत्नेश्वरसूरि के शिष्य ) ने वि० सं० १५१४ में टीका लिखी थी। इस ग्रन्थ में कुल ग्यारह अध्याय हैं जिनमें सभी प्रकार के मुहूर्तों का वर्णन है। व्यावहारिक दृष्टि से 'आरम्भसिद्धि' मुहुर्त्तचिन्तामणि के समान उपयोगी है ।
सन्दर्भग्रन्थ-भारतीय ज्योतिष-डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री