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बालचन्द्रसूरी]
( ३०५ )
[बाष्कलमन्त्रोपनिषद्
किन्तु किसी प्रकार युट टल जाता है। तृतीय अंक को 'लङ्केश्वर अंक' की अभिधा प्राप्त है । इस अंक में सीता को प्राप्त नहीं करने के कारण दुःखित रावण को प्रसन्न करने के लिए सीता-स्वयंवर की घटना को रंगमंच पर प्रदर्शित किया जाता है । जब राम द्वारा धनुषभंग एवं सीता के वरण का दृश्य दिखाया जाता है तो उसे देखकर रावण क्रोधित हो उठता है; पर वास्तविक स्थिति को जानकर उसका क्रोध शमित हो जाता है । चतुर्थ अंक को 'भार्गव भंग' अंक कहा गया है। इसमें राम-परशुराम के संघर्ष का वर्णन है। देवराज इन्द्र मातलि के साथ परशुराम-राम-संघर्ष को आकाश से देखते हैं और राम की विजय पर प्रसन्न होते हैं। पंचम अंक का नाम 'उन्मत्तदशानन' अंक है। इस अंक में सीता के वियोग में रावण की व्यथा वर्णित है। वह सीता की काष्ठ-प्रतिमा बनाकर मन बहलाते हुए दिखाया गया है। षष्ठ अंक 'निर्दोष दशरथ' के नाम से अभिहित है। इस अंक में शूर्पणखा तथा मायामय अयोध्या को कैकेयी और दशरथ का रूप धारण करते हुए दिखाया गया है। इन्हीं के द्वारा राम के वन-गमन की घटना प्रदर्शित की गयी है । रत्नशिखण्ड द्वारा राजा दशरथ को राम बनवास की घटना का ज्ञान होता है। सप्तम अंक 'असमपराक्रम' के रूप में कथित है । इसमें राम और समुद्र के संवाद का वर्णन है। समुद्र के किनारे बैठे हुए राम के पास रावण द्वारा निर्वासित उसका भाई विभीषण आकर मिलता है। तत्पश्चात् समुद्र पर सेतु बाँधा जाता है और राम लंका में प्रवेश करते हैं । अष्टम अंक को 'वीरविलास' कहा गया है । इस अंक में राम-रावण का घमासान युद्ध वर्णित है । मेघनाद तथा कुम्भकर्ण मारे जाते हैं और रावण, माया के द्वारा, राम की सेना के समक्ष सीता का कटा हुआ मस्तक फेंक देता है। पर वह सफल नहीं हो पाता। नवम अंक में रावण का वध वणित है। अन्तिम अंक का नाम 'सानन्द रघुनाथ' है। इसमें सीता की अग्निपरीक्षा एवं विजयी राम का पुष्पक विमान द्वारा अयोध्या आगमन का वर्णन है। सकल अयोध्यावासी राम का का स्वागत करते हैं और रामचन्द्र का राज्याभिषेक किया जाता है।
इस नाटक में कवि ने कथानक का अनावश्यक विस्तार किया है। राम से सम्बद्ध घटनाओं की अपेक्षा रावण से सम्बद्ध घटनाएं अधिक हैं। सम्पूर्ण गन्थ में स्रग्धरा एवं शार्दूलविक्रीडित छन्दों का अधिक प्रयोग है। यह ग्रन्थ नाट्यकला की दृष्टि से सफल नहीं है पर काव्यत्व के विचार से महत्त्वपूर्ण है। कार्यान्विति की योजना अत्यन्त सफलता के साथ की गयी है किन्तु कथानक में गत्यात्मकता का अभाव है।
बालचन्द्रसूरी-( १३ शतक ) इन्होंने 'वसन्तविलास' नामक महाकाव्य का प्रणयन किया है। इसमें राजा वस्तुपाल का जीवनचरित वर्णित है, जिसे कवि ने उनके पुत्र (वस्तुपाल) के मनोरंजनार्थ लिखा था। प्रबन्धचिन्तामणि के अनुसार यह काव्य वस्तुपाल को इतना अधिक रुचिकर हुमा कि उन्होंने इस पर कवि को एक सहस्र सुवर्ण मुद्राएं दी तथा उन्हें आचार्य पद पर अभिषिक्त किया।
बाष्कलमन्त्रोपनिषद्-यह नव-प्राप्त उपनिषद है। इसकी एकमात्र पाण्डुलिपि २० सं० सा०