________________
अष्टाध्यायी के वृत्तिकार]
( ४१ )
[ आचार्य जयदेव
अष्टाध्यायी के अन्य वृत्तिकारों की सूची२०–विश्वेश्वर सूरि-'व्याकरणसिद्धान्तसुधानिधि' २१-ओरम्भट्ट-व्याकरणदीपिका २२-स्वामी दयानन्द सरस्वती-अष्टाध्यायी भाष्य २३-अघन नैनार्य-प्रक्रियादीपिका २४–नारायण सुधी-अष्टाध्यायी प्रदीप २५-रुद्रधर-अष्टाध्यायी वृत्ति २६-सदानन्द-तत्त्वदीपिका इनके अतिरिक्त अनेक वृत्तिकार हैं जिनका विवरण मीमांसक जी के ग्रन्थ में है। आधार ग्रन्थ-संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास भाग १-५० युधिष्ठिर मीमांसक
आचार्य जयदेव-इन्होंने 'चन्द्रालोक' नामक लोकप्रिय काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ की रचना की है। ये 'गीतगोविन्द' के रचयिता जयदेव से सर्वथा भिन्न हैं। इन्होंने 'प्रसन्नराघव' नामक नाटक की भी रचना की है। तत्कालीन समाज में ये पीयूषवर्ष के नाम से विख्यात थे। चन्द्रालोकममुं स्वयं वितनुते पीयूषवर्षः कृती। चन्द्रालोक ११२ इनके पिता का नाम महादेव एवं माता का नाम सुमित्रा था-श्रवणयोरयासीदातिथ्यं न किमिह महादेवतनयः । सुमित्रा कुक्षिजन्मनः, प्रसन्नराघव, प्रस्तावना ११४ गीतगोविन्दकार जयदेव के पिता का नाम भोजदेव एवं माता का नाम राधादेवी या रामादेवी था। इनका समय महराज लक्ष्मणसेन का काल है (द्वादशशतक का आरम्भ ) किन्तु चन्द्रालोककार जयदेव का समय अनिश्चित है। संभवतः ये १३ वीं शताब्दी के मध्य चरण में रहे होंगे। 'प्रसन्नराघव' के कुछ श्लोक 'शाङ्गधरपद्धति' में उद्धृत हैं जिसका रचनाकाल १३६३. ई० है। जयदेव ने मम्मट के काव्यलक्षण का खण्डन किया है, अतः वे उनके परवर्ती हैं। इन्होंने 'विचित्र' एवं 'विकल्प' नामक अलंकारों के लक्षण रुय्यक के ही शब्दों में दिये हैं, अतः ये रुय्यक के भी पश्चाद्वर्ती सिद्ध होते हैं। इस प्रकार इनका समय रुय्यक ( १२०० ई०) एवं शाङ्गंधर ( १३५० ई०) का मध्यवर्ती निश्चित होता है। कुछ विद्वान् जयदेव एवं मैथिल नैयायिक पक्षधर मिश्र को अभिन्न सिद्ध करना चाहते हैं पर अब यह निश्चित हो गया है कि दोनों भिन्न व्यक्ति थे और पक्षधर मिश्र का समय १४६४ ई० है। __ 'चन्द्रालोक' काव्यशास्त्र का सरल एवं लोकप्रिय ग्रन्थ है जिसमें २९४ श्लोक एवं १० मयूख हैं। इसकी रचना अनुष्टुप् छन्द में हुई है जिसमें लक्षण एवं लक्ष्य दोनों का निबन्धन है । प्रथम मयूख में काव्यलक्षण, काव्यहेतु, रूढ़, योगिक आदि का विवेचन है । द्वितीय में शब्द एवं वाक्य के दोष तथा तृतीय में काव्य लक्षणों [नाट्यशास्त्र (भरतकृत) में वर्णित ] का वर्णन है । चतुर्थ में दस गुण वर्णित हैं और पंचम मयूख में पांच शब्दालंकारों एवं सो अर्थालंकारों का वर्णन है। षष्ठ मयूख में रस, भाव, रीति एवं वृत्ति तथा सप्तम में व्यंजना एवं ध्वनि के भेदों का निरूपण है । अष्टम मयूख में गुणीभूतव्यंग्य का वर्णन है और अन्तिम दो मयूखों में लक्षण एवं अभिधा का विवेचन हैं।