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अष्टाध्यायी के वृत्तिकार ]
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[अष्टाध्यायी के वृत्तिकार
८-चुल्लिभट्टि (सं० ७०० से पूर्व)-जिनेन्द्रबुद्धि विरचित 'न्यास' (भाग १ पृ० ९) एवं उसकी टीका में (तन्त्रप्रदीप ) इनके 'शब्दावतार' नामक ग्रन्थ का उल्लेख है।
९-निलूर-(सं० ७०० से पूर्व ) 'न्यास' में ( भूमिका भाग पृ० ९) इनका उल्लेख मिलता है।
१०, ११-जयादित्य तथा वामन-( ६५०-७०० संवत् )।
दोनों की संयुक्त वृत्ति का नाम 'काशिका' है । 'काशिका' के प्रारम्भिक पाँच अध्यायों को जयादित्य ने तथा शेष तीन अध्यायों को वामन ने लिखा है । इसमें अनेक ऐसे वृत्तिकारों के नाम हैं जिनका पहले कोई विवरण प्राप्त नहीं था। इसमें प्राचीन वृत्तियों के आधार पर अनेक सूत्रों की व्याख्या की गयी है । 'काशिका' की अनेक व्याख्यायें लिखी गयी हैं जिनमें जिनेन्द्रबुद्धि रचित 'काशिका विवरण पन्जिका' नामक ग्रन्थ अत्यन्त प्रसिद्ध है। यह 'न्यास' के नाम से विख्यात है।
जिनेन्द्रबुद्धि बौद्ध थे और इनका समय ७ वीं शताब्दी है। 'न्यास' के ऊपर मैत्रेयरक्षित ने 'तन्त्रप्रदीप' ( १२ वीं शती), मल्लिनाथ ने न्यासोद्योत ( १४ वीं शती), महामिश्र ने 'व्याकरणप्रकाश' (१५ वीं शती) तथा रत्नमति ने भी टीकाएं लिखी हैं।
१२-विमलमति-(सं० ७०२) इन्होंने 'भागवृत्ति' नामक 'अष्टाध्यायी' की वृत्ति लिखी है जो सम्प्रति अप्राप्य है। इसके अनेक उद्धरण 'पदमन्जरी' 'भाषावृत्ति' 'दुर्घटवृत्ति' 'अमरटीकासर्वस्व', 'शब्दकौस्तुभ' तथा 'सिद्धान्तकौमुदी' प्रभृति ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं।
१३-मैत्रेयरक्षित ( सं० ११६५)-इन्होंने 'अष्टाध्यायी' की दुर्घट वृत्ति लिखी है।
१४–पुरुषोत्तमदेव-(सं० १२०० से पूर्व ) इन्होंने 'भाषावृत्ति' नामक वृत्तिग्रन्थ लिखा है।
१५–शरणदेव-(सं० १२३० ) इन्होंने 'अष्टाध्यायी' के ऊपर 'दुर्घट' नामक वृत्ति की रचना की है। इनकी व्याख्या विशेष सूत्रों पर ही है। सम्प्रति यह वृत्ति उपलब्ध है तथा 'शब्दकौस्तुभ' सदृश अर्वाचीन ग्रन्थों में इसके विचारों का खण्डन किया गया है। इसमें शतशः दुःसाध्य प्रयोगों के साधुत्व का निदर्शन है। ग्रन्थ का रचनाकाल १२३० संवत् ( शकाब्द १०९५) दिया हुआ है।
१६-भट्टोजिदीक्षित (सं० १५१०-१६००)-इन्होंने 'शब्दकौस्तुभ' नामक वृत्ति लिखी है। (दे० भहोजिदीक्षित )।
१७-अप्पयदीक्षित-इनकी वृत्ति का नाम 'सूत्रप्रकाश' है जो हस्तलेख के रूप में है। [दे० अप्पयदीक्षित] ।
१८-नीलकण्ठ वाजपेयी (सं० १६००-१६५० )-इनकी वृत्ति का नाम 'पाणिनीयदीपिका' है। सम्प्रति यह ग्रन्थ अनुपलब्ध है।
१९-अन्नभट्ट ( सं० १६५०)-इन्होंने 'पाणिनीयमिताक्षरा' नामक वृत्ति लिखी है जो प्रकाशित हो चुकी है।