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अष्टाध्यायी ]
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[ अष्टाध्यायी के वृत्तिकार
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भाषा, तत्कालीन प्रचलित वैदिक शाखाओं तथा सामग्रियों की जानकारी के लिए 'अष्टाध्यायी' एक खुले हुए सांस्कृतिक कोश का कार्य करती है । इनका व्याकरण इतना व्यवस्थित; वैज्ञानिक, लाघवपूर्ण एवं सर्वांगपूर्ण है कि सभी व्याकरण इसके समक्ष निस्तेज हो गए एवं उनका प्रचलन बन्द हो गया । [ दे० पाणिनि ]
आधार ग्रन्थ - १. अष्टाध्यायी ( काशिका सहित ) - चौखम्बा २. अष्टाध्यायी ( आंग्ल अनुवाद ) - एस० राय ३. अष्टाध्यायी ( हिन्दी भाष्य ) भाग १, २, श्रीब्रह्मदत्त जिज्ञासु भाग ३ डॉ० प्रज्ञाकुमारी ४. संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास भाग १, २पं० युधिष्ठिर मीमांसक ५. पाणिनिकालीन भारतवर्ष - डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल ६. पाणिनि - परिचय - डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल ७. पतञ्जलिकालीन भारतडॉ० प्रभुदयाल अग्निहोत्री ८. द स्ट्रकचर ऑफ अष्टाध्यायी - पवाटे ९. पाणिनि, हिज प्लेस इन संस्कृत लिटरेचर - गोल्डस्टुकर १०. पाणिनीयव्याकरण का अनुशीलनडॉ० रामशंकर भट्टाचार्य ११. पाणिनीय धातुपाठ समीक्षा - डॉ० भगीरथ प्रसाद त्रिपाठी ।
अष्टाध्यायी के वृत्तिकार - 'अष्टाध्यायी' के गूढ़ार्थ को स्पष्ट करने के लिए अनेक वृत्तियाँ लिखी गयी हैं, उनका विवरण इस प्रकार है
१ - पाणिनि - स्वयं पाणिनि ने अपने शब्दानुशासन पर स्वोपज्ञ वृत्ति लिखी थी जिसका निर्देश 'महाभाष्य' ( १|४|१ ), 'काशिका' ( ४|१|११४ ) तथा ' महाभाष्यदीपिका' में है ।
२ - श्वोभूति - (वि० पू० २९०० वर्ष ) जिनेन्द्रबुद्धि के 'न्यास' से ज्ञात होता है कि इन्होंने 'अष्टाध्यायी' की वृत्ति लिखी थी। इनका उल्लेख 'महाभाष्य' (१।१।५६ ) में भी है ।
३–व्याडि ( वि० पू० २९०० वर्ष ) – जिनेन्द्रबुद्धि के वचन से ज्ञात होता है कि इन्होंने 'अष्टाध्यायी' की किसी वृत्ति का प्रणयन किया था ।
४ – कुणि – (वि० पू० २००० से भी प्राचीन ) - भर्तृहरि, कैयट तथा हरदत्त प्रभृति वैयाकरणों ने इनकी वृत्ति का उल्लेख किया है । ( 'महाभाष्य', १|१|३८ )
५ - माथुर ( वि० पू० २००० वर्ष से प्राचीन ) - भाषावृत्तिकार पुरुषोत्तमदेव ने 'माथुरी वृत्ति' का उल्लेख किया है ( अष्टाध्यायी वृत्ति १ ।२।५७ ) तथा 'महाभाष्य' ( ४ | ३ | १०१ ) में भी इसका निर्देश है ।
'६ – वररुचि—ये वार्तिककार वररुचि से भिन्न एवं उनके परवर्ती हैं । ये सम्राट् विक्रमादित्य के सभासद् तथा उनके धर्माधिकारी भी थे । इनके ग्रन्थ हैं - ' तैत्तिरीयप्रातिशाख्यव्याख्या', 'निरुक्तसमुच्चय', 'सारसमुच्चय', 'प्रयोगविधि', 'लिङ्गविशेषविधि', 'कातन्त्र उत्तराधं', 'प्राकृत प्रकाश', 'कोश', 'उपसर्गसूत्र', 'पत्रकौमुदी' तथा 'विद्यासुन्दरप्रसंग काव्य' ।
७- - देवनन्दी - ( वि० पू० ५०० वर्ष ) इन्होंने 'शब्दावतारन्यास' नामक 'अष्टाध्यायी' की टीका लिखी है, किन्तु सम्प्रति अनुपलब्ध है । इनके अन्य ग्रन्थ हैं - 'जैनेन्द्रव्याकरण’, ‘वैद्यकग्रन्थ’, ‘तत्त्वार्थसूत्रटीका', 'धातुपाठ', 'गणपाठ' तथा 'लिङ्गानुशासन' ।