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प्रथम अध्ययन तृतीय उद्देशक ]
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मरण से छूटने के लिए और दुख से छुटकारा पाने के लिए स्वयं अप्काय की हिंसा करता है, अन्य से करवाता है, करते हुए अन्य को अनुमोदन देता है । यह हिंसा उपके अहित और अज्ञान को बढ़ाने वाली होती है।
से तं संबुज्झमाणे प्रायाणीयं समुट्ठाए सोचा भगवो, अणगाराणं वा अन्तिए, इहमेगेसि णायं भवति, एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु गरए इच्चत्थं गढिए लोए जमिणं विरूवरूवेहि सत्थे उदयकम्मसंमारंभे गं, उदयसत्थं समारंभमाणा अगणे अणेगरूवे पाणे विहिसइ (२४)
संस्कृतच्छाया-सतत् सम्बुध्यमानः आदानीय समुत्थाय श्रुत्वा भगवतोऽनगाराणां वान्तिके इहैकेषां ज्ञातं भवति एष खलु ग्रन्थः, एष खलु मोहः, एष खलु मारः एष खल नरकः इत्येवमर्थ गृद्धो लोकः सदिम विरूपरूपैः शस्त्रैः उदकर्मसमारम्भेरणोदकशख समारभमापोऽन्याननेकरूपान् प्रासिनो हिनस्ति ।
शब्दार्थ-से-वह अपकाय को सचिच मानने वाला । तं अपकाय के आरम्भ को अहित रूप । संबुज्झमाणे-जानता हुआ । आयाणीयं प्राय मोक्षमार्ग को । समुट्ठाए अंगीकार करके । सोचा भगवनो-साक्षात् भगवान् का उपदेश सुनकर । अणगाराणं वा अंतिए-निर्ग्रन्थ साधुओं से सुनकर । इह इस मनुष्य जन्म में । एगेसिं-कितनेक व्यक्तियों को । सायं भवति यह ज्ञात हो जाता है कि । एस-अपकाय का यह समारंभ । खलु-निश्चय से । गंथे-आठ कर्मों की गांठ है। एस खलु मोहे-यही मोहरूप है। एस खलु मारे यही मरण का कारण है। एस खलु णरए यही नरक का कारण है । इच्चत्यं संसार के खानपान और कीर्ति में । गढिए मुर्छित होकर । लोए प्राणी । जमिणं इस पृथ्वीकाय को । विरूवरूवेहि सत्यहि-विविध शस्त्रों से। उदयकम्मसमारंभेण अपकाय का प्रारंभ करने से । उदयसत्थं समारंभमाणा-अप्काय के शस्त्रों का प्रयोग करके हिंसा करते हुए । अरणे अणेगरूवे अन्य अनेक प्रकार के । पाणे आणियों की । विहिंसइ-हिंसा करते हैं।
भावार्थ-सर्वज्ञ देव अथवा श्रमण जनों से आत्मविकास के लिये आदरणीय ज्ञान दर्शन एवं चारित्र को प्राप्त करके कितनेक जीव यह समझते हैं कि यह हिंसा आठ प्रकार के कर्मों के बन्धन का कारण है, मोह का कारण है, जन्म-मरण का हेतु है और नरक में ले जाने का कारण है । किन्तु जो प्राणी खानपान कीर्ति लालसा आदि में अति गद्ध हैं वे भिन्न २ प्रकार के शस्त्रों द्वारा अपकाय के समारम्भ से अपकाय के जीवों की हिंसा करते हुए अन्य जीवों की भी हिंसा करते हैं।
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