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२८४ ]
[प्राचाराग-सूत्रम् तत्त्वार्थ की श्रद्धा होना सम्यग्दर्शन है । तत्त्व वही है जो तीर्थक्कर देवों ने निरावरण केवलज्ञान और केवलदर्शन के द्वारा चराचर जगत् को उपदेश दिया है। तीर्थकरों ने क्या कहा है सो सूत्र द्वारा कहा जाता है
से बेमि जे अईया, जे य पडुप्पन्ना, जे य श्रागमिस्सा अरहंता भगवंतो ते सव्वे एवमाइक्खन्ति, एवं भासन्ति, एवं परणविंति एवं परूविति सव्वे पाणा, सव्वे भूया, सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता न हंतव्वा, न अजावेयव्वा, न परिघितब्बा, न परियावेयव्वा न उद्दवेयव्वा। एस धम्मे सुद्धे, निइए, सासए, समिञ्च लोयं खेयण्णेहिं पवेइए तंजहा-उट्ठिएसु वा, अणुट्ठिएसु वा, उवट्ठिएसु वा अणुवट्ठिएसु वा, उवरयदंडेसु वा अणुवरयदंडेसु वा, सोवहिएसुवा, अणोवहिएसु वो संजोगरएसु वा, असंजोगरएसु वा, तचं चेयं, तहा चेयं, अस्सि चेयं पवुच्चइ ।
संस्कृतच्छाया- तद् ब्रवीमि ये अतीताः ये च प्रत्युत्पन्नाः ये चागामिनोऽर्हन्तो भगवन्तः ते सर्वे एवमाचक्षते, एवं भाषन्ते, एवं प्रज्ञापयन्ति, एवं प्ररूपयन्ति, सर्वे प्राणिनः, सर्वे भूताः, सर्वे जीवाः, सर्वे सत्वाः न हन्तव्याः, नाज्ञापयितव्याः, न परिग्राह्याः, न परितापयितव्याः, नापद्रावयितव्याः । एष धर्मः शुद्धः नित्यः शाश्वतः समेत्य लोकं खेदज्ञैः प्रवेदितः तद्यथा उत्थितेषु वानुत्थितेषु वा, उपस्थितेषु वा अनुपस्थितेषु वा, उपरतदण्डषु वा, अनुपरतदण्डेषु वा, सोपधिकेषु वा, अनोपधिकेषु वा, संयोगरतेषु वा, असंयोगरतेषु वा तथ्यम् चैतत्, तथा चैतदस्मिन्नेव चेतत् प्रोच्यते ।।
शब्दार्थ-से बेमि वही मैं कहता हूँ । जे अईया जो भूतकाल के । जे य पदुप्पन्ना= जो वर्तमान काल के । जे य आगमिस्सा और जो भविष्य काल के । अरहंता-अर्हन्त । भगवंतो= भगवान् हैं । ते सव्वे वे सभी। एवम्-इस प्रकार | प्राइक्खंति-कहते हैं। एवं भासन्ति इस प्रकार बोलते हैं । एवं पगए विति-इस प्रकार समझाते हैं । एवं परूविंति इस प्रकार वर्णन करते हैं कि । सव्वे पाणः सभी द्वीन्द्रियादि प्राणी । सव्वे भूया वनस्पति इत्यादि सभी भूत । सव्वे जीवा-पंचेन्द्रियादि सभी जीव । सव्वे सत्ता-पृथ्वीकाय आदि सभी सत्वों को । न हन्तव्वा= मारना नहीं । न अजावेयव्वा उन पर हुकूमत करना नहीं । न परिचित्तव्वा उन्हें दास की तरह कब्जे में रखना नहीं । न परियायव्वा-उन्हें संताप देना नहीं । न उद्दवेयव्वा उन्हें प्राणरहित करना नहीं । एस धम्मे यही धर्म । सुद्ध-शुद्ध है । निइए=नित्य है । सासए शाश्वत है । लोयं= लोक को। समिच्च-जानकर । खेयएणेहि-दुखों को जानने वाले हितकारी तीर्थंकरों द्वारा ।
सस्कृत
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