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शीतोष्णीय नाम तृतीय अध्ययन
-प्रथम उद्देशक
दो अध्ययनों का वर्णन किया जा चुका है अब तृतीय अध्ययन प्रारम्भ होता है । गत प्रथम अध्ययन में शत्रपरिज्ञा का वर्णन करते हुए षट्काय की रक्षा रूप पंचमहाव्रत अंगीकार करने का कहा गया है । तत्पश्चात् द्वितीय अध्ययन में अङ्गीकृत महाव्रतों की सम्यग आराधना के हेतु कषायादि लोक को अथवा इन्द्रिय लोक को या कीर्ति-कामना रूप लोकसंज्ञा (लौकैषणा) को पराजित करके आत्म-विजय का डंका बजाने का उपदेश दिया गया है । जो मुमुक्षु परम तत्त्व की साधना के लिए संयम-मार्ग अङ्गीकार करता है उसे अपने मार्ग में अच्छे या बुरे, अनुकूल या प्रतिकूल संयोगों का अवश्यमेव मुकाबला करना पड़ता है। ऐसे संयोगों के उपस्थित होने पर विकास-मार्ग की ओर प्रगति करने वाले साधक का क्या कर्तव्य है यह इस तृतीय अध्ययन में प्ररूपित किया गया है।
___ इस अध्ययन का नाम "शीतोष्णीय" है । शीतोष्णीय इस नाम में "शीत" और "उष्ण" ऐसे दो शब्दों का समास हुआ है। साधारण लोकभाषा में शीत शब्द का अर्थ ठंढा और उष्ण शब्द का अर्थ गरम है। यहाँ आगम में केवल इतना ही अर्थ अपेक्षित नहीं है परन्तु इससे विशेषार्थ लिया गया है। यहाँ प्रयुक्त शीतोष्ण शब्दों का अर्थ शीत और उष्ण प्रकृति वाले परीषहों से है । हिम तुषार आदि द्रव्यशीत और अग्नि आदि द्रव्य उष्ण को छोड़कर यहाँ भाव-शीत और भाव-उष्ण का ग्रहण समझना चाहिए। भाव-शीत और भाव-उष्ण का स्वरूप स्पष्ट करने के लिए नियुक्ति में इस प्रकार कहा गया है:
सायंपरीसहपमायुवसमाविरई सुहं च उरहं तु ।
परीसहतवुज्जम कसाय-सोगवेयारई दुक्खं ॥ अर्थात्-परीषह, प्रमाद, उपशम (मोहनीय का उपशम), विरति ( हिंसादि से निवृत्ति ) और सातावेदनीयजन्य सुख ये भाव-शीत हैं और परीषह, तप में उद्यम, कषाय, शोक, वेद अरति और दुःख ये भाव-उष्ण हैं।
शंका-इस गाथा में परीषह को शीत में भी गिनाया गया है और उष्ण में भी कहा गया है और शीत एवं उष्ण परस्पर विरोधी हैं तो परीषह दोनों में कैसे गिनाया गया है ?
__समाधान-इसका समाधान यह है कि श्रागम में बावीस परीषह बताये गये हैं। उनमें स्त्रीपरीषह और सत्कार परीषह भावमन के अनुकूल होने से शीत हैं और शेष बीस परीषह मन के प्रतिकूल होने से उष्ण हैं। शीत परीपह भाव-शीत में गिने गये हैं और उष्ण परीषह भाव उष्ण में गिने गये हैं इसलिए दोनों में परीषह गिनाये गये हैं । इसमें विरोध नहीं है । विरोध तो,तब होता जब एक ही परीपह शीत में भी कहा गया होता और वही उष्ण में भी कहा जाता। यहां तो भिन्न २ परोषहों के लिये उभयत्र परीषह सामान्य पद का प्रयोग किया गया है इसलिये विरोध की शंका निर्मल है।
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