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[ आचाराङ्ग-सूत्रम्
रखते हो तो कभी दूसरों को पीड़ा न दो और सुख चाहते हो तो दूसरों को सुख दो । यही दुख से मुक्त होने और सुख को प्राप्त करने का उपाय है । पर-पीडाकारी प्रवृत्ति का परि-त्याग ही परिज्ञा कहलाती है । इसी का नाम सञ्चा विवेक है । पर-पीड़ाकारी प्रवृत्ति से निवृत्ति करना यही तो ज्ञान का फल है। जिस ज्ञान का फल विरति रूप नहीं है वह ज्ञान नट के ज्ञान के समान मात्र विडम्बना रूप ही है । ज्ञ-परिज्ञा
और प्रत्याख्यान-परिज्ञा के द्वारा पर-पीड़ाकारी प्रवृत्ति का परित्याग करने से क्रमशः समस्त कर्मद्वन्द्वों का क्षय हो जाता है। संसार का अन्त हो जाता है और परम व चरम पुरुषार्थ-मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जे ममाइयमइं जहाइ से चयइ ममाइयं, से हु दिट्ठपहे मुणी जस्स नत्थि ममाइयं, तं परिनाय मेहावी विइत्ता लोग, वंता लोगसन्नं से मइमं परिकमिजासि त्ति बेमि ।
संस्कृतच्छाया-यो ममायितमति जहाति स त्यजति ममायितं । स खल दृष्टपथो मुनिर्यस्य नास्ति ममायितं । तत्परिज्ञाय मेधावी विदित्वा लोकं वान्त्वा लोकसंज्ञा सः मतिमान् पराक्रमेत ।
शब्दार्थ-जेजो। ममाइयमई-ममत्व बुद्धि को। जहाइ छोड़ता है। से वह । ममाइयं ममत्व-परिग्रह को। चयइत्यागता है । जस्स-जिसके । ममाइयं ममत्व । नत्थि नहीं है । से हु=वही निश्चय से । दिट्ठपहेमोक्षमार्ग को जानने वाला । मुणी-मुनि है। तं यह । परिन्नाय जानकर । मेहावी-बुद्धिमान् मुनि । लोगं लोक के स्वरूप को। विइत्ता जानकर । लोगसन्नं लोकसंज्ञा को । वंता छोड़कर । से मइमं वह बुद्धिमान् । परिक्कमिजासि=संयम में पराक्रम करे । त्ति बेमि ऐसा मैं कहता हूँ। - भावार्थ हे जम्बू ! जो ममत्व-बुद्धि का त्याग कर सकता है वही ममत्व को छोड़ सकता है और जिसे ममत्व नहीं है वही मोक्ष के मार्ग को जानने वाला मुनि है । ऐसा जानकर चतुर मुनि लोक के स्वरूप को जानकर और लोक की संज्ञाओं का त्याग कर विवेकपूर्वक संयम के मार्ग में विचरण करे, ऐसा मैं कहता हूँ।
विवेचन-इस सूत्र में ममता का परित्याग करने का कहा गया है। ममता का जन्म ममत्वबुद्धि से होता है । यही कारण है कि जब तक ममत्व-बुद्धि रहती है वहाँ तक पदार्थों के त्याग का वास्तविक उद्देश्य पूर्ण नहीं होता। पदार्थों का संयोग न होने पर भी यदि चित्तवृत्ति में उन पदार्थों के प्रति ममत्वबुद्धि है तो पदार्थों के अभाव में भी ममता का दोष लगता है इसके विपरीत बाह्यदृष्टि से कोई व्यक्ति परिग्रही नजर आता हो परन्तु वस्तुतः उन पदार्थों पर ममत्व बुद्धि न हो तो वह परिग्रह-त्यागी समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए हम देख सकते हैं कि एक दरिद्र भिखारी है। उसके पास बाह्य पदार्थों का अभाव है किन्तु इसीसे हम उसको अपरिग्रही या त्यागी नहीं कह सकते हैं। इसका कारण यह है कि उसकी ममत्व-बुद्धि का नाश नहीं हुआ है । उसकी चित्तवृत्ति पर से ममता नहीं हटी है। पदार्थों के अभाव
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