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तृतीय अध्ययन चतुर्थोद्देशक ]
[ २७७
यः क्रोधदी स मानदशी, यो मानदी स मायादशी, यो मायादी स लोभदशी, यः लोभदशी स प्रेमदशी, यः प्रेमदशी स द्वेषदर्शी, यो द्वेषदर्शी स मोहदी, यः मोहदशी स गर्भदशी, यः गर्भदर्शी स जन्मदशी, यो जन्मदशी स मारदशी, यो मारदशी स नरकदशी, यो नरकदर्शी स तिर्यग्दी , यो तियग्दी सो दुःखदर्शी। स मेधावी अभिनिवर्तयेत् क्रोधञ्च, मानञ्च, मायाञ्च, लोभञ्च, प्रियञ्च, द्वेषञ्च, मोहञ्च, गर्भञ्च, जन्म च, मारञ्च, नरकञ्च तिर्यञ्चञ्च, दुःखञ्च । एतत्पश्यकस्य दर्शनमुपरतशस्त्रस्य, पर्यन्तकरस्य, प्रादानं निषेध्य स्वकृतभित् । किमस्ति उपाधिः पश्यकस्य न विद्यते ? नास्ति इति ब्रवीमि ।
शब्दार्थ-जेजो। कोहदंसी-क्रोध को जानता और छोड़ता है। से वह । माणदंसी=मान को जानता और छोड़ता है । जे जो । माणदंसी-मान को छोड़ता है । से मायादंसी वह माया को छोड़ता है । जे मायादंसी-जो माया को छोड़ता है। से लोभदंसी वह लोभ को छोड़ता है । जे लोभदंसी-जो लोभ को छोड़ता है। से पिजदंसी वह राग को छोड़ता है। जे पिजदंसी-जो राग को छोड़ता है। से दोसदंसी-वह द्वेष को छोड़ता है । जे दोसदंसी-जो द्वेष को छोड़ता है । से मोहदंसी वह मोह को छोड़ता है । जे मोहदंसी-जो मोह को छोड़ता है। से गब्भदंसी वह गर्भ को त्यागता है। जे गभदंसी-जो गर्भ को त्यागता है । से जम्मदंसी वह जन्म को त्यागता है । जे जम्मदंसी-जो जन्म को त्यागता है । से मारदंसी वह मृत्यु को त्यागता है । जे मारदंसी जो मृत्यु को त्यागता है। से नरयदंसी वह नरक को त्यागता है। जे नरयदंसी-जो नरक को त्यागता है । से तिरियदंसी-वह तिर्यंच गति को छोड़ता है। जे तिरियदंसी जो तिर्यश्च गति को छोड़ता है। से दुक्खदंसी वह दुख को छोड़ता है । से मेहावी= वह बुद्धिमान् । कोहं च क्रोध को। माणं च-मान को । मायं च-माया को । लोहं च-लोभ को। पिज्जं च-राग को। दोसं च-द्वेष को। मोहं च-मोह को। गम्भं च-गर्भ को । जम्म च-जन्म को । मारं च-मृत्यु को । नरयं च-नरक को । तिरियं च तियंच को | दुक्खं च और दुख को । अभिनिवट्टिजा=दूर करे । एवं यह । उवरयसत्थस्स-द्रव्य-भाव-शस्त्र से रहित । पलियंतकरस्स-कर्म व संसार का अन्त करने वाले । पासगस्स सर्वज्ञ महावीर का । दसणं कथन है। आयाणं कर्मास्रवों को । निसिद्धा-रोककर । सगडभि अपने कर्मों को दूर करना चाहिए। पासगस्स केवली भगवान् के । किं-क्या । उवाही-उपाधि । अत्थि है या । न विजइ-नहीं है ? नत्थि नहीं है । त्ति बेमि=ऐसा मैं कहता हूँ ।
भावार्थ-जो क्रोध को जानता और छोड़ता है वह मान को जानता और छोड़ता है; जो मान का त्याग करता वह माया का त्याग करता है; जो माया का त्याग करता है वह लोभ का त्याग करता है; जो लोभ का त्याग करता है वह राग को छोड़ता है; जो राग को छोड़ता है वह द्वेष को छोड़ता है। जो द्वेष को छोड़ता है वह मोह को छोड़ता है, जो मोह को छोड़ता है वह गम से मुक्त होता है जो
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