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[आचाराग-सूत्रम्
क्रियाएँ दुख को उत्पन्न करती हैं । इस तरह यह संसार दुखागार बन जाता है। श्रारम्भ जन्य दुखों को जानकर सदा निरारम्भ रहना चाहिए । सदा पात्मजागृति के लिये प्रयत्नशील रहना चाहिए ।
जो भावनिद्रा से सुषुप्त प्राणी हैं वे विषय-कषायादि से लिप्त रहकर भयङ्कर यातनाएँ सहन करते हैं । मायावी और सकषायी प्राणी पुनः पुनः गर्भ में आते हैं और जन्म-मरण के चक्र में परिभ्रमण करते रहते हैं । प्रमाद और कषायों के कारण विषयों में प्रवृत्ति होती है। यह विषयों का आकर्षण भयङ्कर दुखों का उत्पादक बनता है। अपने माने हुए विषयों के सुख में तृप्ति न मिलने के कारण प्राणी विषयों के संसर्ग को चिरकाल तक टिकाये रखने के लिए लालायित रहता है अतएव वह मृत्युसे डरता है। इसके विपरीत जो प्राणी अात्मस्वरूप को पहिचानता है वह शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श रूप विषयों में राग-द्वेष नहीं कर सकता है । वह इन जड़वस्तुओं से अपने आपको अलिप्त मानता है अतः उनमें श्रासक्ति नहीं रखता है। जो जन्म-मरण से डरता है वह प्राणी इन विषय-कषायों में कभी प्रवृत्ति नहीं कर सकता। जिसे आत्म-स्वरूप की विमल झाँकी के दर्शन हो चुके हों उसे मृत्यु का डर नहीं डरा सकता है। वह हँसते हँसते मृत्यु का श्रालिंगन करता है। इसका कारण यह है कि वह मृत्यु के स्वरूप को और संसार के पदार्थों के स्वरूप को भलीभांति जान चुकता है । जो मृत्यु के स्वरूप को जानता है वह उससे निर्भय रहता है । सम्यग्ज्ञान होनेकी वजह से वह पदार्थों को उनके असली स्वरूप में देखता है अतएव वस्तु-स्वरूप समझ कर वह समभाववृत्ति धारण करता है जिससे वह जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है। वह मृत्युञ्जय बन जाता है। अतएव भावनिद्रा सेजागृत बनकर आरम्भ, विषय और कषायों से सदा बचना चाहिए। ये ही संसार और संसार के दुखों के कारण है अतएव मुमुक्षुओं को और शाश्वत सुखाभिलाषियों को इनसे बचकर सदा सावधान रहना चाहिए ।
अप्पमत्तो कामेहिं, उवरो पावकम्मेहि, वीरे धायगुत्ते खेयन्ने, जे पजवजायसत्थस्स खेयरणे से असत्थस्स खेयन्ने, जे असत्थस्स खेयन्ने से पजवजायसत्थस्स खेयन्ने, अकम्मस्स ववहारो न विजइ, कम्मुणा उवाही जायइ ।
संस्कृतच्छाया-अप्रमत्तः कामेषुः, उपरतः पापकर्मभ्यः, वीरः गुप्तात्मा खेदज्ञः, यः पर्यवजातशस्त्रस्य खेदज्ञः सोऽशस्त्रस्य खेदज्ञः ,योऽशस्त्रस्य खेदज्ञः सः पर्यवजातशस्त्रस्य खेदज्ञः, अकर्मणः व्यवहारो न विद्यते कर्मणा उपाधिर्जायते ।
शब्दार्थ-खेयने जो पुरुष दूसरों को होने वाले दुखों को जानता है। वीरे वह वीर । आयगुत्ते-आत्म-संयम रखने वाला । कामेहि विषयों में । अप्पमत्तो नहीं फंसता हुआ। पावकम्मेहिं पापकर्मों से । उवरो-दूर रहता है । जे–जो। पजवजायसत्थस्स=विषयोपभोग के अनुष्ठान को शस्त्ररूप । खेयन्ने जानता है । से-वह । असत्थस्स-संयम को । खेयन्ने जानता है। जे जो । असत्थस्स-संयम को । खेयन्ने-जानता है । से वह । पजवजायसत्थस्स विषयोपभोग के अनुष्ठान को शस्त्ररूप । खेयन्ने जानता है । अकम्मस्स-कर्म-रहित पुरुष के । ववहारो सांसारिक व्यवहार । न विजइ नहीं रहता है । कम्मुणा-कर्म से ही । उवाही उपाधि । जायइ= पैदा होती है।
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