________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
द्वितीय अध्ययन षष्ठ उद्देशक ]
[१६३
को दूर करके तत्त्वों की ओर आकर्षित करने वाली कथा आक्षेपणी कथा कहलाती है । इस कथा के चार उपमेद हैं-(१) केश लोच आदि प्राचार के द्वारा अथवा प्राचार के प्रतिपादन द्वारा श्रोताओं को अर्हन्त के शासन की ओर आकृष्ट करना श्राचार-आक्षेपणी कथा है (२) दोष लगने पर प्रायश्चित्त या व्यवहार सूत्र का व्याख्यान करना व्यवहार-आक्षेपणी कथा है (३) जिन्हें जिन-वचन में कहीं शंका हो उन्हें मधुर वचनों द्वारा समझा कर या प्रज्ञप्तिसूत्र का व्याख्यान करके श्रोताओं को जिन-शासन की ओर आकृष्ट करना प्रज्ञप्ति आक्षेपणी कथा है (४) सात नयों के अनुसार जीवादि तत्त्वों का व्याख्यान करके अथवा दृष्टिवाद का व्याख्यान कर तत्त्वबोध कराना दृष्टिवाद-आक्षेपणी कथा है। आक्षेपणी कथा में स्वमतमण्डन की प्रधानता
(२) विक्षेपणी मिथ्याहां मतं यत्र पूर्वापरविरोधकृत् ।
तनिराक्रियते सद्भिः सा च विक्षेपणी मता ॥ अर्थात्-मिथ्यादृष्टियों के मत में पूर्वापर विरोधी बातें बताकर प्रमाणयुक्त वचनों द्वारा उनका निराकरण करना विक्षेपणी कथा है । इस कथा में कुमार्ग-खण्डन की प्रधानता के साथ सत्पक्ष का प्रतिपादन किया जाता है।
विक्षेपणी कथा के चार प्रकार हैं-(१) जिन-शासन के गुणों को प्रकाशित करके एकान्तवाद के दोषों का निरूपण करना (२) पर-सिद्धान्त का पूर्वपक्ष के रूप में कथन करके स्वकीय सिद्धान्त की प्रमाण-पुरस्सर स्थापना करना (३) परसिद्धान्त में जो विषय जिनागम के समान निरूपित हैं उनका दिग्दर्शन कराते हुए विपरीत बातों में दोषों का निरूपण करना (४) पर-सिद्धान्त में कथित जिनागम से विपरीत वादों का निरूपण करके जिनागम के समान विषयों का कथन करना। ये चार विक्षेपणी कथा के प्रकार हैं।
(३) संवेदनी यस्याः श्रवणमात्रेण, भवेन्मोक्षाभिलाषिता ।
भव्यानां सा च विद्वद्भिः प्रोक्ता संवेदनी कथा । अर्थात्-जिस कथा के सुनने मात्र से भव्य जीवों को मोक्ष की अभिलाषा हो वह कथा विद्वानों के द्वारा संवेदनी कथा कही गई है । इस कथा के चार भेद हैं:
(१) इहलोक-संवेदनी-इस लोक के दुख का वर्णन करना-जैसे मानव-जीवन जल के बुबुद् के समान चञ्चल और जन्म-मरणादि के दुखों से व्याप्त है । ऐसे कथन से संसार से विरक्ति होकर भव्य-जीवों को मोक्ष की अभिलाषा होती है अतः यह इहलोक-संवेदनी कथा है।
(२) परलोक-संवेदनी-स्वर्गादि में होने वाले दुख, ईर्षा, भय आदि का वर्णन करना । इससे जागृत होने वाली मोक्षाभिलाषा के कारण यह परलोक-संवेदनी कथा है।
(३) स्वशरीर-संवेदनी-अपने शरीर की अशुचि और क्षणभङ्गुरता का प्रतिपादन करना। जैसे-यह शरीर अत्यन्त अपवित्र है, मल-मूत्र का थैला है। यह स्वशरी-संवेदनी कथा है।
... (४) परशरीर-संवेदनी-मृत-शरीर का कथन करके विरक्ति उत्पन्न करना तथा मोक्षाभिलाषा जागृत करना परशरीर-संवेदनी कथा है।
For Private And Personal