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विमोक्ष नाम अष्टम अध्ययन
-चतुर्थीदेशकः( मर्यादा और दृढ संकल्प )
गत तृतीय उद्देशक में समतायोग की और वृत्तिसंयम की विवेचना की गई थी । वृत्तिसंयम के लिये वस्त्रपात्रादि की मर्यादा और साथ ही उसे निभाने का दृढ़ संकल्प अनिवार्य है। अतएव इस उद्देशक में वृत्ति-संयम को व्यावहारिक और रचनात्मक बनाने के लिए मर्यादा और दृढ़ संकल्प की समीक्षा की जाती है
जे भिक्खु तिहिं वत्थेहिं परिवुसिए पायचउत्थेहि, तस्स णं नो एवं भवइ-चउत्थं वत्थं जाइस्सामि, से अहेसणिजाई वत्थाई जाइजा, अहापरिग्गहियाइं वत्थाई धारिजा, नो धोइजा, नो धोयरत्ताइं वत्थाई धारिजा, अपलिग्रोवमाणे गामंतरेसु श्रोमचेलिए, एवं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं । .. संस्कृतच्छाया यो भिक्षुः त्रिभिर्वस्त्रैः पर्युषितः पात्रचतुर्थः तस्य नैवं भवति चतुर्थ वस्त्रं याचिष्ये, सः यथैषणीयानि वस्त्राणि याचेत, यथापरिगृहीतानि धारयेत् नो धोवेत् न धौतरनानि वस्त्राणि धारयेत्, अगोपयन् प्रामान्तरेषु (व्रजेत्) अवमचेलिकः एतत् वस्त्रधारिणः सामग्रियं भवति। ... शब्दार्थ-जे भिक्खु-जो अभिग्रहधारी भिक्षु । पायचउत्थेहिं पात्र चतुर्थ । तिहिं वत्थेहि तीनवस्त्र रखने की मर्यादा करके । परिवुसिए रहा हुआ है। तस्स-उसे । नो एवं भवइ=ऐसा विचार नहीं आता है । चउत्थं चोथा । वत्थं वस्त्र । जाइस्सामि मांगूगा । से वह साधु । अहेसणिजाई-एषणीय । वत्थाई वस्त्र । जाइजा को याचे । अहापरिग्गहियाई जैसे मिले वैसे । वत्थाई वस्त्र । धारिजा धारण करे । नो धोइज्जा वस्त्र न धोवे । धोयरत्ताई-धोये हुए
और रंगे हुए । वत्थाई वस्त्र । नो धारिज्जा धारण न करे। गामंतरेसु-एकगांव से दूसरे गांव जाते हुए मार्ग में । अपलिअोवमाणे वस्त्रों को छिपाने की जरूरत न हो ऐसे । अोमचेलिए= अल्प वस्त्र रखे । एयं-यह । खु-निश्चय ही। वत्थधारिस्स-वस्त्रधारी साधक की । सामग्गिय= सामग्री है।
भावार्थ-जिस अभिग्रहधारी भिक्षु साधक ने एकपात्र और तीन वस्त्र रखने की मर्यादा की है उसे ऐसा विचार कभी नहीं होता है कि मैं चोथे वस्त्र की याचना करूँगा। कदाचित् उस साधक के
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