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[आचाराङ्ग-सूत्रम्.
क्रियाएँ विरोधी हैं। सच्चा साधक लोकयश की कामना नहीं करता । वह तो मोक्ष के सिवाय और सभी कामनाओं का लय कर देता है। वह इधर-उधर कहीं नहीं भटकता । उसका मोक्ष-लक्ष्य सदा ध्रुव के समान उसकी दृष्टि के सामने रहता है । वह स्त्री आदि में आसक्त नहीं होता है और सावध अनुष्ठानों से उदासीन होता है।
इस प्रकार साधक बहिर्मुखता का त्याग करता है और अन्तर्दृष्टि का विकास करता है। मोक्ष के अतिरिक्त अन्य सभी मार्गों से वह अपनी दृष्टि फेर लेता है । जैसे ध्रुव कांटे की सूई सदा उत्तर की ही ओर रहती है उसी तरह उसकी दृष्टि भी सदा सर्वदा मोक्ष की ओर ही होती है।
से वसुमं सव्वसमन्नागयपन्नाणेणं अप्पाणेणं अकरणिजं पावकम्मं तं नो भन्नेसी जं सम्मति पासहा तं मोणंति पासहा, जं मोणंति पासहा तं सम्मति पासहा, न इमं सकं सिढिलेहिं अहिजमाणेहिं, गुणासाएहिं वंकसमायरेहिं पमत्तेहिं गारमावसंतेहिं । मुणी मोणं समायाए धुणे सरीरगं, पंतं लूह सेवंति वीरा सम्मत्तदंसिणो एस श्रोहन्तरे मुणी तिण्णे मुत्ते विरए वियाहिए त्ति बेमि।
___ संस्कृतच्छाया-स वसुमान् सर्वसमन्वागतप्रज्ञानेन आत्मना अकरणीयं पापकर्म तन्नान्वेषति, यत्सम्यागति पश्यत तन्मौनामति पश्यत, यन्मानमिति पश्यत तत्सम्यगिति पश्यत, नेदं शक्यं शिथिलैः, श्राद्रीक्रियमाणैः, गुणास्वादैः वक्रसमाचारैः, प्रमत्तैः, अगारमावसद्भिः । मुनिः मौनं समादाय धुनीयात्शररिक, प्रान्तं, रूक्षं सेवन्ते वीराः सम्यक्त्वदर्शिनः । एष ओघन्तरः मुनिः तीर्णः मुक्तः विरतः व्याख्यात इति ब्रवीमि ।
. शब्दाथे-से वह । वसुमं संयम-धन वाला साधक । सव्वसमन्नागयपन्नाणेणं सभी तरह से उत्तम प्रकार से ज्ञान प्राप्त की हुई। अप्पाणेणं आत्मा से। अकरणिज्ज नहीं करने योग्य । पावकम्म-पापकर्म है। तं-उसे । नो अन्नेसी-नहीं करता है-दृष्टि भी नहीं डालता है। जंजिसको । सम्मंति-सम्यक्त्व । पासहा-जानो। तं-उसे । मोणं-मुनिधर्म । पासहा-जानो। जं जो। मोणंति-मुनिधर्म। पासहा जानो । तं-उसे । सम्मति सम्यक्त्व । पासहा=जानो। सिढिलेहि धैर्यहीन । अद्दिजमाणेहि-ममता से आर्द्र । गुणासाएहि विषयासक्त । वंकसमायरेहि= मायावी । पमत्तेहि प्रमादी। गारमावसंतेहिं घर में रहने वाले साधकों द्वारा । इमं यह सम्यक्त्व या मुनित्व । न सकं नहीं पाला जा सकता है। मोणं-मुनिधर्म को । समायाए धारण करके । मुणी-मुनि । सरीरगं शरीर को । धुणे कसे-कृश करे । वीरा=वीर । समत्तदंसिणो= सम्यक्त्वदर्शी । पंतं हल्का । लूहं लूखा आहार । सेवंति करते हैं। एस=ऐसा मुनि । ओहंतरे संसार को तिरता है । तिएणे-वह संसार-सागर से तीर्ण-तुल्य है । मुत्तेमुक्त हो गया है। विरए आरम्भ से मुक्त । वियाहिए कहा गया है । त्ति वेमि=ऐसा मैं कहता हूँ।
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