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अष्टम अध्ययन प्रथमोद्देशक ]
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यह उनकी अज्ञानता है । सच्चा साधक कभी कदाग्रही नहीं होता है। कदाग्रह सत्य का प्रबल बाधक है । साधक को कदाग्रह में कभी नहीं पड़ना चाहिए। साधक का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने ही सिद्धान्तों को सम्पूर्ण सत्य समझकर उन पर पूर्ण सत्यता का आरोप न करे वरन् विशाल सत्य के समुद्र में से जितना जान पाया हूँ वह यह है इस प्रकार जनताको उपदेश करे। कदाचित् अन्य वादी उसके साथ विवाद में उतरे तो हित-बुद्धि से उन्हें समझाने के लिए उनके साथ प्रेम से चर्चा करें। दूसरों को समझाते हुए स्वयं कहीं कदाग्रह में न फँस जाय यह ध्यान रखना चाहिए। सर्वज्ञानी सर्वदर्शी प्रभु महावीर का सिद्धान्त एकान्तवाद का प्रबल खंडन करता है । जो एकान्त का आग्रह रखता है वह सत्य को नहीं पा सकता है । इस समन्वय के सिद्धान्त को समझ कर परस्पर के विवादों का समाधान करना चाहिए। यदि ऐसी योग्यता न हो तो मौन रहना अच्छा है लेकिन विवाद में पड़कर कदाग्रह में फँस जाना अच्छा नहीं है ।
हा ! जैनदर्शन कितना उदार है ! कितना महान् इसका आदर्श है ! कैसे उच्चकोटि के इसके सिद्धान्त हैं ! सर्वज्ञ, सर्वदर्शी प्रभु महावीर का स्याद्वाद सिद्धान्त कितना व्यापक और कितना हितावह है ! इस परम कल्याणमय सिद्धान्त के अनुशीलन से हृदय की संकुचितता नष्ट हो जाती है और विश्वव्यापकता प्राप्त होती है। इसके अनुशीलन से सब प्रकार के द्वन्द्व, संघर्ष एवं कलहों का अन्त हो जाता है और विश्वप्रेम की परमपावनी सरिता सर्वत्र प्रवाहित होती है।
सव्वत्थ सम्मयं पावं, तमेव उवाइकम्म एस महं विविगे वियाहिए, गामे वा अदुवा रणे, नेव गामे नेव रणे धम्ममायाणह पवेइयं माहणेण महमया, जामा तिन्नि उदाहिया जेसु इमे आयरिया संबुज्झमाणा समुट्ठिया, जे णिव्वुया पावेहिं कम्मेहिं अणियाणा ते वियाहिया ।
ग्रामे वा
अथवा
संस्कृतच्छाया - सर्वत्र सम्मतं पापं तदेवोपातिक्रम्य, एष मम विवेको व्याख्यातः, Sरण्ये, नैव प्रामे नैवारण्ये धर्म्ममाजानीत | प्रवेोदितं माहणेन ( भगवता ) मतिमता यामास्त्रय उदाहृताः, येषु इमे श्रार्याः सम्बुध्यमानाः समुत्थिताः, ये निर्वृत्ताः पापेषु कर्मसु अनिदानास्ते व्याख्याताः ।
शब्दार्थ — सन्वत्थ - सर्वत्र | पावं पाप । सम्मयं = अभिप्रेत हो रहा है - स्वीकृत हो रहा है । तमेव = उसीको । उवाइकम्म = लांघकर मैं रहा हूँ । एस = यह । महं= मेरा । विवेगे = विवेक । वियाहिए=कहा गया है । गामे वा = ग्राम में । अदुवा = अथवा । रणे = जंगल में | नेव गामे = न तो ग्राम में । नेव रणे = न जंगल में | धम्मं धर्म । श्रायाह = समझो | मइमया - केवलज्ञानी | माहणेण=भगवान् ने । पवेइयं = यह कहा है । तिन्नि-तीन । जामा = व्रत | उदाहिया = कहे हैं। जेसु-जिन में । इमे आयरिया ये आर्यपुरुष । संबुज्झमाणा=बोध पाकर । समुट्ठिया= जागृत होते हैं । जे= जो । पावेहिं कम्मे हिं= पापकर्मों से । णिव्बुया = निवृत्त हुए हैं | ते = वे । अणियाणा = निदानरहित । वियाहिया कहे गये हैं ।
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