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सम्यक्त्व नाम चतुर्थ अध्ययन — तृतीयोद्देशक—
( तपश्चरण )
इस अध्ययन के प्रथम उद्देशक में सम्यक्त्व का निरूपण करते हुए हिंसा को उसका आधार कहा है। द्वितीय उद्देश में अन्यवादियों का खंडन करके हिंसा की प्रबल युक्तियों से और सचोट रूप से स्थापना की है तथा हिंसा के प्रति प्रचण्ड विरोध दिखलाया गया है। इस प्रकार दो उद्देशकों द्वारा हिंसा की समीक्षा करने के पश्चात् अहिंसा के साधन रूप में तपश्चरण अनिवार्य है अतएव इस उद्देशक तपश्चरण का वर्णन करते हैं। अहिंसा की साधना के लिए तपश्चर्या की अनिवार्य आवश्यकता होती है। tara हिंसा के पश्चात् तप का वर्णन किया जाता है । अथवा पहिले दो उद्देशकों में हिंसा का वर्णन किया गया है उसे जानकर जो साधक अहिंसा को अपनाता है वह भविष्य में कमों का उपार्जन नहीं करता। लेकिन उसके पुराकृत कर्म शेष रहते हैं अतएव पूर्वकृत कर्मों को नष्ट करने के लिए तपश्चरण का विधान किया गया है ।
तपश्चर्या आत्म शुद्धि के लिए आवश्यक है । जिस प्रकार अग्नि में तपाने से स्वर्ण विशुद्ध बन जाता है— उसका मल दूर हो जाता है इसी प्रकार तपश्चर्या द्वारा आन्तरिक मैल दूर होता है और आत्मा पवित्र बनता है । चित्त वृत्तियों की मलिनता आत्म-दर्शन के लिए गाढ़ आवरण रूप है। इस
वरण को दूर करने के लिए तपश्चरण की आवश्यकता है। आध्यात्मिक रोगों की शान्ति के लिए तपश्चर्या एक अमोघ रसायन है। इस रसायन के सेवन से रोग दूर हो जाते हैं और आत्मा शुद्ध, बुद्ध
मुक्त हो जाता है। रोगों की विभिन्नता के कारण औषधियों में और उनके सेवन में विभिन्नता हो ही जाती है इसीलिए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने तपश्चरण के बारह भेद बताये हैं। जो रोगी जिस रोग से पीड़ित हो उसे उसके अनुकूल औषधि का सेवन करना चाहिए। ऐसा करने से ही रोग दूर होते हैं. और स्वास्थ्य लाभ होता है । इसी तरह बारह प्रकार के तपश्चरणों से आत्मा के आन्तरिक दुर्गणों को नष्ट करने से आत्मा को चिरकाल के लिए स्वास्थ्य - शाश्वत सुख प्राप्त हो जाता है। रसायन सेवन करने वाले को पथ्य का पालन अवश्य करना पड़ता है इसी तरह तपरूपी रसायन के सेवन के लिए क्या पध्य है, यह सूत्रकार दिखाते हैं:
उवेहिणं बहिया य लोगं, से सव्वलोगम्मि जे केइ विराणू, अणुवी पास निक्खित्तदंडा, जे केइ सत्ता पलियं चयंति, नरा मुयच्चा धम्मविउत्ति अंजू, प्रारंभजं दुक्खमिति णच्चा, एवमाहु समत्तदंसिणो, ते सव्वे पावाइया दुक्खस्स कुसला परिणमुदाहरति इय कम्मं परिणाय सव्वसो ।
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