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[प्राचाराङ्ग-सूत्रम्
सावजणवज्जाणं वयणाणं जो न याणइ विसेस ।
वत्तुंपि तस्स न खमं किमंग पुण देसणं काउं ? जिसे सावध और निरद्य वचनों का विवेक नहीं है उसे बोलना भी उचित नहीं है तो देशना (उपदेश ) देने की तो क्या बात है ?
जिस उपदेशक को पागम का पूरा ज्ञान हो, जिसमें तर्क शक्ति प्रबल हो और जो युक्तियों और हेतुओं द्वारा स्वपक्ष प्रतिपादन कर सकता हो वही उपदेश दे सकता है। तर्क द्वारा समझने वालों को तर्क से समझावे, आगम से समझने वालों को पागम से समझावे । वही सिद्धान्त का आराधक होता है। कहा भी है
जो हेउवायपक्खम्मि हेउो, आगमम्मि श्रागमित्रो ।
सो ससमयपरणवो सिद्धंतविराहो अरणो ॥ अर्थात्-हेतुवाद के पक्ष में हेतु देने वाला, आगम के पक्ष में आगम-प्रमाण देने वाला ही स्वसिद्धान्त का प्ररूपक होता है अन्य तो सिद्धान्त का विराधक होता है। तर्कसंगत पक्ष में तर्क का प्रयोग आगमसंगत पक्ष में आगम का प्रयोग करना ही योग्य है । इस प्रकार की योग्यता वाला उपदेशक सञ्चा उपदेष्टा हो सकता है। वही पराक्रमी पुरुष अपने उपदेशों द्वारा संसार के ऊर्ध्व, निम्न और तिर्यग्भाग में रहे हुए, सांसारिक बन्धनों में जकड़े हुए प्राणियों को मुक्त करता है । ऐसा पुरुष ही प्रशंसा के योग्य है।
से सव्वश्रो सव्वपरिगणाचारी ण लिप्पइ छणपएण वीरे। से मेहावी अणुग्घायणखेयपणे जे य बन्धपमुक्खमन्नेसी, कुसले पुण नो बद्धे नो मुक्के।
संस्कृतच्छाया-स सर्वतः सर्वपरिज्ञाचारी न लिप्यते क्षणपदेन वीरः । स मेधावी अणोद्घातनखेदज्ञो यश्च बन्धप्रमोक्षमन्वेषी । कुशलः पुनः न बद्धः न मुक्तः ।
शब्दार्थ-से वीरे वह वीर पुरुष । सव्वो हमेशा । सव्वपरित्राचारी=सर्व ज्ञान और क्रिया रूप परिज्ञा का आचरण करता हुआ । छणपएण-हिंसा से । ण लिप्पइ-लिप्त नहीं होता है । जे अणुग्घायणखेयन्ने जो कर्म को दूर करने में निपुण है । बंधपमुक्खमन्नेसी-कर्मों के बन्धन से मुक्त होने का उपाय ढूँढने वाला है । से मेहावी वही पण्डित है । कुसले केवली भगवान् । नो बद्ध =न तो बँधे हुए हैं । नो मुक्के और न मुक्त हैं।
भावार्थ-ऐसे वीर सत्पुरुष अपने जीवन में ज्ञान और क्रिया का ऐसा सद्-व्यवहार करते हैं जिससे हिंसाजन्य पाप से वे लिप्त नहीं होते हैं । जो मनुष्य कर्मों के आवरण को दूर करने में निपुण हैं और बन्धन मुक्त होने के उपायो का अन्वेषण करते हैं वही सचमुच पंडित हैं । केवली भगवान् जैसे कुशल साधक न तो मुक्त हैं और न बद्ध ही हैं ( वे साधना पूर्ण कर चुके हैं इसलिए उनके लिए बन्धमोक्ष जैसा प्रश्न ही विशेषतः नहीं रहता है ) ।
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