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[प्राचाराग-सूत्रम् उपायों द्वारा, अपने तथा अपने कुटुम्बियों के लिए प्रारम्भ में प्रवृत्ति करते हैं। उन गृहस्थों के घरों से मधुकर-वृत्ति से आहारादि प्राप्त करने का साधुओं के लिए निर्देश किया गया है। जिस प्रकार भ्रमर फूलों को कष्ट नहीं पहुंचाता हुआ अनेकों फूलों में से मर्यादा पूर्वक रस ग्रहण करता है इसी प्रकार साधु मी अनेक घरों में से थोड़ा थोड़ा आहार ग्रहण करते हैं जिससे किसी को कष्ट भी नहीं होता और सरलता से संयमी-जीवन का निर्वाह भी हो जाता है। यही बात सूत्र द्वारा फरमाते हैं:
जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं लोगस्स कम्मसमारंभा कजंति, तंजहाअप्पणो से पुत्ताणं, धूयाणं, सुण्हाणं, नाईणं,धाईणं, राईणं, दासाणं, दासीणं, कम्मकराणं, कम्मकरीणं श्राएसाए पुढो पहेणाए सामासाए, पायरासाए, संनिहिसंनिचो कन्जइ, इहमेगेसि माणवाणं भोयणाए।
संस्कृतच्छाया-यैरिदं विरूपरूपैः शस्त्रैः लोकाय कर्मसमारम्भाः क्रियन्ते, तद्यथा-मात्मने तस्य पुत्रेभ्यो दुहितृभ्यः, स्नुषाभ्यो ज्ञातिभ्यो धात्रीभ्यो राजभ्यो दासेभ्यो दासीभ्यः, कर्मकरेभ्यः, कर्मकरीभ्यः आदेशाय पृथक् प्रहेण काय श्यामाशाय प्रातराशाय सनिधिसनिचयः क्रियते इहै केषां मानवानाम् भोजनाय ।
शब्दाथे-जमिणं जिन गृहस्थों द्वारा। विरूवरूवेहिं अनेक प्रकार के। सत्थेहि शत्रों द्वारा। लोगस्स-अपने शरीरादि के लिए। कम्मसमारम्भा पचन-पाचनादि कर्मों के समारम्भ । कज्जति=किये जाते हैं । तंजहा=जैसे । से वह । अप्पणो अपने । पुत्ताणं-पुत्रों के लिए। धूयाणं-पुत्रियों के लिए । सुशहाणं-पुत्र-वधुओं के लिए । नाईणं ज्ञाति जन के लिए। धाईणं धाइयों के लिए। दासाणं दासों के लिए। दासीणं-दासियों के लिए। कम्मकराणं= नौकरों के लिए । कम्मकरीणं-नौकरानियों के लिए। आएसाए महमानों के लिए । पुढो पहेणाए-पुत्रादिकों में अलग २ विभक्त करने के लिए । सामासाए शाम के भोजन के लिए । पायरासाए प्रातःकाल के भोजन के लिए । इहं-इस लोक में । एगेसिं माणवाणं किन्हीं मनुष्यों को । भोयणाए जिमाने के लिए । संनिहि संनिचयो संग्रह | कजइ=किया जाता है ।
भावार्थ-हे जम्बू ! गृहस्थ जन अपने लिए तथा अपने पुत्र, पुत्री, बहू, कुटुम्बी, ज्ञातिजन, धाई, दास, दासी, नौकर-चाकर, महमान आदि के लिए तथा अपने कुटुम्बियों में विभक्त करने के लिए, प्रातःकाल और सायंकाल उपभोग करने के लिए विविध प्रकार के शस्त्रों द्वारा आहारादि बनाते हैं और उनका संग्रह करके रखते हैं।
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार ने संयमियों के लिए वृत्ति-अन्वेषण का विधान किया है। अहिंसा के अखण्ड अाराधक को अपनी देहपालना के लिए क्या करना चाहिए, यह इस सूत्र में बताया
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